अल्लामा इकबाल: देशभक्ति और एकता की अलख जगाने वाले शायर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-11-2025
Allama Iqbal: The poet who awakened the spirit of patriotism and unity
Allama Iqbal: The poet who awakened the spirit of patriotism and unity

 

डॉ. जफर दारीक कासमी 

अल्लामा मुहम्मद इकबाल की शायरी ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को जागृति, आत्म-पहचान और मातृभूमि के प्रति समर्पण के संदेशों से प्रेरित किया। उन्हें बीसवीं सदी के महानतम कवियों, विचारकों और सुधारकों में से एक माना जाता है।

इकबाल का काव्य-दर्शन बौद्धिक और आध्यात्मिक दोनों था, जो मानवता को आत्म-जागरूकता, गरिमा और नैतिक उत्थान की ओर प्रेरित करता था। अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने भारत की भूमि, संस्कृति, इतिहास, विविधता और नैतिक सुंदरता के प्रति गहरा प्रेम व्यक्त किया।

उनकी प्रसिद्ध कविता "तराना-ए-हिंदी" मातृभूमि के लिए उनके प्रेम की एक कालजयी अभिव्यक्ति है:

    "सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा,

    हम बुलबुलें हैं इस की, ये गुलसिताँ हमारा।"


    (अर्थ: भारत दुनिया का सबसे अच्छा देश है; हम इसकी बुलबुलें हैं, और यह हमारा बगीचा है। — बांग-ए-दरा)

ये पंक्तियाँ उनकी मातृभूमि के साथ उनके भावनात्मक और आध्यात्मिक बंधन को दर्शाती हैं, जो एकता, भाईचारे और राष्ट्रीय गौरव के उनके आदर्श को व्यक्त करती हैं। उनकी प्रारंभिक कविताएँ भारत को उनके प्रेम और गौरव का केंद्र बताती हैं—वह भारत की आत्मा, प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक भव्यता से गहराई से जुड़े थे, और उन्होंने अपनी कविताओं में सच्ची देशभक्ति की भावना भरी।


 मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

इकबाल का मानना था कि राष्ट्रीय पहचान जाति या धर्म के बजाय न्याय, भाईचारे और नैतिक मूल्यों में निहित होनी चाहिए। उनकी कविता "नया शिवाला" (नया मंदिर) इस आदर्श को खूबसूरती से दर्शाती है:

    "मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,

    हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा।"


    (अर्थ: धर्म हमें आपस में लड़ना या नफरत करना नहीं सिखाता है। हम भारतीय हैं, और हमारा देश भारत है। — बांग-ए-दरा, पृ. 95)

यह छंद भारत के विविध समुदायों के बीच सद्भाव के इकबाल के सपने को दर्शाता है—एकता और आपसी सम्मान के माध्यम से सामूहिक प्रगति का दृष्टिकोण।

इमाम-ए-हिंद: राम के प्रति सम्मान

एक मुस्लिम दार्शनिक होने के बावजूद, इकबाल भारत की प्राचीन आध्यात्मिक और दार्शनिक विरासत के प्रति गहरा सम्मान रखते थे। उन्होंने वेदांत, बौद्ध धर्म और हिंदू दर्शन की गहन अंतर्दृष्टि की सराहना की, उन्हें सत्य की मानवता की साझा खोज के रूप में देखा। अपनी कविता "राम" में, उन्होंने भगवान राम को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें 'इमाम-ए-हिंद' (भारत का आध्यात्मिक नेता) कहा:

    "है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,

    अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद।"


    (अर्थ: भारत को भगवान राम के अस्तित्व पर गर्व है; समझदार लोग उन्हें भारत का आध्यात्मिक नेता मानते हैं। — बांग-ए-दरा, पृ. 231)

ये छंद इकबाल की व्यापक सोच और भारत की नैतिक तथा आध्यात्मिक गहराई को पहचानने की उनकी भावना को उजागर करते हैं।

 हिमालय: भारत की शक्ति और भव्यता का प्रतीक

इकबाल की कविता प्रकृति के प्रति एक कलाकार की आँख भी प्रकट करती है। उन्होंने भारत की नदियों, पहाड़ों, पेड़ों और मौसमों को दार्शनिक अर्थों के साथ जीवंत कर दिया। "हिमालय" कविता में, उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से भारत की प्राकृतिक सुंदरता और अमरता का वर्णन किया:

    "ऐ हिमालय! ऐ फ़सील-ए-किश्वर-ए-हिन्दोस्ताँ,

    चूमता है तेरी पेशानी को झुक कर आसमाँ।"


    (अर्थ: हे हिमालय! हे भारत देश की दीवार, आसमान झुककर तेरे माथे को चूमता है। — बांग-ए-दरा, पृ. 14)

इकबाल के लिए, हिमालय न केवल प्राकृतिक भव्यता का प्रतिनिधित्व करता था, बल्कि भारत की शक्ति, स्थिरता और आध्यात्मिक महानता का भी प्रतीक था।

 ज्ञान, चरित्र और एकता का संदेश

इकबाल ने अपनी कविता को नैतिक और बौद्धिक मार्गदर्शन के माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया। उन्होंने भारतीयों से अज्ञानता और दासता से उठकर ज्ञान, आत्म-निर्भरता और नैतिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने "ख़िज़्र-ए-राह" (बांग-ए-दरा, पृ. 307) में ज़ोर दिया कि सच्ची स्वतंत्रता केवल राजनीतिक बदलाव पर नहीं, बल्कि ज्ञान, कर्म और चरित्र पर टिकी है।

1930 में अपने प्रसिद्ध इलाहाबाद संबोधन के दौरान, इकबाल ने घोषणा की थी कि भारत की महानता भौतिक प्रगति या राजनीतिक शक्ति में नहीं, बल्कि उसकी आध्यात्मिक और बौद्धिक शक्ति में निहित है। उन्होंने माना कि यदि भारतीय नैतिकता, न्याय, ज्ञान और आपसी सम्मान के मार्ग पर चलते हैं, तो देश एक बार फिर दुनिया के लिए मार्गदर्शक प्रकाश बनकर उभर सकता है।

इकबाल के विचार में, राष्ट्र की महानता उसके भूगोल में नहीं, बल्कि उसके लोगों के चरित्र, ज्ञान और एकता में निहित है। उनकी शायरी हमें लगातार याद दिलाती है कि भारत का चिरस्थायी गौरव इसकी विविधता और सहिष्णुता पर टिका है—वे मूल्य जो इसे दुनिया की सबसे महान सभ्यताओं में से एक बनाते हैं।