आतंकवाद इंसानियत का दुश्मन: उलेमा, बुद्धिजीवियों और संगठनों की एकजुट आवाज़

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 15-11-2025
Terrorism is the enemy of humanity: A united voice of Ulema, intellectuals and organizations
Terrorism is the enemy of humanity: A united voice of Ulema, intellectuals and organizations

 

आवाज  द वाॅयस/ नई दिल्ली
 
दिल्ली के ऐतिहासिक लाल क़िले के पास हुआ हालिया बम विस्फोट पूरे देश के लिए एक गहरा सदमा है। पुलिस और सुरक्षा एजेंसियाँ जांच का दायरा लगातार बढ़ा रही हैं, लेकिन इस घटना ने भारतीयों के दिलों पर ऐसी टीस छोड़ी है जिससे उबरना आसान नहीं। देश का मुस्लिम समाज भी उतना ही दुखी और मर्माहत है। अलग-अलग मुस्लिम संगठनों, उलेमाओं, बुद्धिजीवियों और सामाजिक नेतृत्व ने एक आवाज़ में इस कायराना हमले की कठोर निंदा की है और स्पष्ट संदेश दिया है कि आतंकवाद का न कोई धर्म होता है, न मज़हब, और न ही वह किसी सभ्यता का प्रतिनिधित्व कर सकता है।

ऑल इंडिया इमाम्स एसोसिएशन के प्रमुख डॉ. इमाम उमर अहमद इलियासी ने इस कार बम विस्फोट को “इंसानियत की हत्या” करार दिया। उन्होंने कहा कि इस्लाम का नाम आतंकवाद से जोड़ना सरासर गलत है। ऐसे संगठनों और तत्वों से इस्लाम का कोई लेना-देना नहीं जिनका उद्देश्य समाज में डर और नफ़रत फैलाना है।
 
इलियासी ने कहा कि कुछ लोग जानबूझकर इस्लाम को बदनाम करने की साज़िश करते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि मुसलमान ऐसे अपराधों की स्पष्ट और कठोर निंदा करते हैं।
जामा मस्जिद के शाही इमाम, अहमद बुख़ारी ने इस हमले को अत्यंत निंदनीय बताते हुए कहा कि देश का मुस्लिम समाज देशभक्ति और एकता की भावना से परिपूर्ण है और ऐसे कठिन समय में देशवासियों के साथ चट्टान की तरह खड़ा है।
 
उन्होंने यह भी कहा कि आतंकवादी किसी भी धर्म या समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते और निर्दोषों की हत्या मानवता के लिए कलंक है। उन्होंने प्रभावित परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि यह दुख सिर्फ उनका नहीं, बल्कि पूरे देश का सामूहिक दुख है।

इंडियन मुस्लिम्स फॉर प्रोग्रेस एंड रिफॉर्म्स (IMPAR) ने दिल्ली विस्फोट को देश की शांति, सामाजिक ताने-बाने और वैश्विक प्रतिष्ठा के लिए गंभीर खतरा बताया। संगठन ने कहा कि इस तरह की हिंसक घटनाएँ न केवल सामाजिक तादात्म्य को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि भारत की आर्थिक प्रगति और सांस्कृतिक उन्नति पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।

IMPAR ने मांग की कि जांच निष्पक्ष, गहन और पारदर्शी होनी चाहिए और सिर्फ हमलावरों पर ही नहीं, बल्कि उनके छिपे हुए साज़िशकर्ताओं, समर्थकों और विचारकों तक भी पहुँचना चाहिए,चाहे वे देश के भीतर हों या बाहर। संगठन ने किसी भी तरह की अनुमान आधारित जांच से बचने और राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की अपील की। इसके साथ ही IMPAR ने सभी धार्मिक और सामुदायिक नेताओं से कट्टरता और अतिवाद की हर संभव रूप से समाप्ति के लिए आत्ममंथन व सुधार का आह्वान किया।

सिटिज़न्स फॉर फ्रैटर्निटी (CFF) ने भी सामूहिक बयान जारी किया, जिस पर डॉ. नजीब जंग, एस.वाई. कुरैशी, लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) ज़मीर उद्दीन शाह और उद्योगपति सईद मुस्तफा शेरवानी जैसे प्रमुख नाम जुड़े थे।

उन्होंने कहा कि ऐसे अपराधों को किसी भी समुदाय, विशेषकर कश्मीरी भाइयों से जोड़ना अनुचित और असंवेदनशील है। यह हमला भारत और उसकी साझा विरासत पर हमला है, और इसे किसी भी धार्मिक या सांप्रदायिक दृष्टिकोण से देखने की गलती नहीं की जानी चाहिए। मक्का आधारित मुस्लिम वर्ल्ड लीग (MWL) ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की।

इसके महासचिव शेख डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-ईसा ने कहा कि यह एक जघन्य आतंकी कृत्य है और इस्लामी दुनिया का रुख हमेशा से स्पष्ट रहा है—आतंकवाद किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने मृतकों के परिजनों के प्रति संवेदना और घायलों को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएँ दीं।

मुंबई के प्रसिद्ध सूफ़ी विद्वान मुफ्ती मंज़ूर ज़ियाई ने कहा कि यह घटना पूरे देश की अंतरात्मा को झकझोर देने वाली है। उन्होंने कहा कि निर्दोषों की हत्या किसी भी धर्म में वैध नहीं और आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता। उन्होंने युवाओं और सभी नागरिकों से एकता, संयम और भाईचारे का संदेश अपनाने तथा किसी भी अफवाह या नफ़रत फैलाने वाले तत्वों से सावधान रहने की अपील की।

मौलाना कल्बे जव्वाद ने इस विस्फोट को मानवता पर धब्बा बताते हुए कहा कि निर्दोषों की हत्या करने वाले कभी मुसलमान नहीं हो सकते, क्योंकि इस्लाम स्पष्ट रूप से ऐसी हिंसा को हराम ठहराता है। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि चुनाव के समय कुछ ताकतें देश की शांति भंग करने की कोशिश कर सकती हैं, इसलिए जांच को पूरी गंभीरता से किया जाना आवश्यक है।

जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा कि देश को इस समय शांत बने रहने और किसी भी प्रकार की अफवाह पर विश्वास न करने की आवश्यकता है।

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सादतुल्लाह हुसैनी ने भी इस हमले को मानवता के खिलाफ अपराध बताया और कहा कि दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए। प्रतिष्ठित विद्वान मौलाना ज़हीर अब्बास रिज़वी ने सरकार से प्रभावित परिवारों को हर संभव सहायता मुहैया कराने और जांच को पूरी स्वतंत्रता देने की अपील की।

अजमेर शरीफ़ दरगाह के सज्जादानशीन, सैयद सलमान चिश्ती ने इस हादसे को जीवन की नाज़ुकता का एहसास कराने वाला बताया और कहा कि हमें नफ़रत का जवाब प्यार और धैर्य से देना होगा। उन्होंने सभी समुदायों से एकजुट होकर काम करने और शांति बनाए रखने की अपील की। इंटर-फेथ हार्मनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रमुख डॉ. खु्वाजा इफ्तिख़ार ने इस घटना को भारत की संप्रभुता पर हमला बताते हुए कहा कि ऐसे समय में देश को एक आवाज़ बनकर खड़ा होना चाहिए।

सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मेजर मोहम्मद अली शाह ने भी इसे बेहद गंभीर और दुखद बताया तथा कहा कि यदि यह आतंकवादी हमला है तो यह कायरतापूर्ण कृत्य है। अंत में, पुणे के मौलाना तौफीक अशरफी ने कहा कि मासूमों की हत्या करने वाले किसी भी धर्म या इन्सानियत से बाहर होते हैं और ऐसे अपराधियों को कठोर दंड मिलना चाहिए।

इन सब बयानों का सार यही है कि देशभर का मुस्लिम समाज, उसके उलेमा और बुद्धिजीवी एक सुर में कह रहे हैं,आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता, और भारत की एकता, शांति और मानवता की रक्षा ही हमारी साझा जिम्मेदारी है।