सबसे पहले कब हुआ था मॉक ड्रिल का अभ्यास, क्या था मक्सद?

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 07-05-2025
When was the mock drill practiced for the first time, what was the purpose?
When was the mock drill practiced for the first time, what was the purpose?

 

अर्सला खान /नई दिल्ली

 
पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. इस बीच भारत के गृह मंत्रालय ने देश भर में मॉक ड्रिल के आदेश जारी किए हैं. इस आदेश के मुताबिक, देश भर में कुल 244 स्थानों पर 7 मई (बुधवार) को मॉक ड्रिल कराई जाएगी. गांव से लेकर शहरों तक यह पूर्वाभ्यास किया जाना है, जिसमें आपातकालीन स्थितियों में लोगों की प्रतिक्रिया की जांच की जाएगी. साथ ही ये देखा जाएगा कि सायरन बजने और ब्लैकआउट जैसी स्थितियों में लोगों की प्रतिक्रिया कैसी होती है?

इसके अलावा कंट्रोल रूम के कामकाज की भी टेस्टिंग होती है. यह ड्रिल ऐसे समय में की जा रही है जब पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जंग को लेकर आशंकाएं गहरी होती जा रही हैं, लेकिन ऐसे सवाल ये भी है कि सबसे पहले मॉक ड्रिल कब और कैसे हुई? लोगों में इसका क्या असर देखने को मिल था?
 
 
पहले कब किया गया था मॉक ड्रिल का अभ्यास

7 मई को होने वाली दुनिया की सबसे बड़ी मॉक ड्रिल से पहले साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के समय भी देश भर में मॉक ड्रिल किया गया था. उस वक्त देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. इसके बाद अब पहली बार देश में ऐसी मॉक ड्रिल दोबारा कराई जा रही है. एक रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1971 में युद्ध से कुछ दिन पहले ही देश भर के शहरों में युद्ध पूर्वाभ्यास कराया गया था. इस ड्रिल में हवाई हमले की चेतावनी देने वाले सायरन बजाए गए थे. रात में शहरों की लाइट्स बंद कर दी गई थीं ताकि दुश्मन के हमलों से बचा जा सके. जनता को बंकरों या सेफ जगहों पर ले जाने की भी ट्रेनिंग हुई थी. उन्हें बमबारी या हवाई हमलों की स्थिति से बचने की भी ट्रेनिंग दी गई थी.
 
 
किन इलाकों में हुई थी मॉक ड्रिल? 

ये मॉक ड्रिल ज्यादातर पाकिस्तान से सटे इलाकों में किए गए थे. इनमें पश्चिम बंगाल, पंजाब, जम्मू-कश्मीर जैसै राज्य और दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े शहर शामिल थे. अब 54 साल बाद एक बार फिर इस तरह का आदेश जारी हुआ है. 
 
 
क्या था मॉक ड्रिल का मक्सद?

उस दौरान नागरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मॉक ड्रिल की गई थी. साथ ही मॉक ड्रिल का उद्देश्य नागरिकों को हवाई हमले या अन्य हमलों की स्थिति में शांत रहने, सुरक्षित आश्रय लेने और प्रशासन द्वारा जारी किए गए निर्देशों का पालन करने के लिए तैयार करना था. उस वक्त भी यह मॉक ड्रिल गांव स्तर तक आयोजित की गई थी, जिसमें अग्निशमन सेवाएं, होम गार्ड और सिविल डिफेंस संगठन ने सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था. 
 
 
Crash Blackouts का भी हुए था इस्तेमाल

साल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान भी क्रैश ब्लैकआउट का इस्तेमाल किया गया था. क्रैश ब्लैकआउट की स्थिती में शहरों में अचानक बिजली गुल होती है, रात के समय संभावित हवाई हमलों के दौरान पता लगने से बचने के लिए सभी दिखाई देने वाली लाइटें बंद कर दी जाती हैं.
 
इस रणनीति का युद्ध के दौरान सभी को रात में (सूर्यास्त से पहले) अपने खिड़कियों और दरवाजों को भारी काले पर्दों, कार्डबोर्ड या पेंट से ढकना पड़ता है. इसका उद्देश्य आम नागरिकों को बमबारी के दौरान प्रकाश की किसी भी झलक को बाहर जाने से रोकना होता है.
 
ताकि दुश्मन का विमान देख न पाए और हमले से बचा जा सके.  साथ ही क्रैश ब्लैकआउट के दौरान स्ट्रीट लाइट को बंद कर दिया जाता है. प्रकाश को नीचे की ओर मोड़ने के लिए ढाल दिया जाता है. ट्रैफ़िक लाइट और वाहन हेडलाइट की बीम को नीचे की ओर मोड़ने के लिए स्लॉटेड कवर के साथ लगाया जाता है. 
 
आम भाषा में कहें तो युद्ध के दौरान ब्लैकआउट से शहरों, कस्बों और अन्य आबादी वाले क्षेत्रों में रोशनी को जानबूझकर बंद या मंद कर देने से है, ताकि हवाई बमबारी या निगरानी के दौरान दुश्मन के विमानों को वे कम दिखाई दें.