मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
ये अजब वक्त है कि जब दुनिया भर में बहुत सारी सत्ताएं इजरायल का साथ दे रही हैं. जबकि उन्हीं देशों के लोग बड़ी संख्या में इजरायल के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं. यानी लोगों और सत्ताओं के बीच इस मसले को लेकर एक बड़ा प्रतिरोध नजर आता है. साल भर में नरसंहार, हिंसा, हत्या, बलात्कार की शक्तियां बढ़ गई हैं और इस अनैतिक उपक्रम में सत्ताएं राजनीत, धर्म, मीडिया बाजार सभी शामिल हैं. इजरायल की तरफ से किया जा रहा है कार्य इस कायकता का सबसे क्रूर चेहरा है. इन सबके उलट विश्व कविता में गहरा प्रतिरोध, घटती मानवता, सतही काम और गैर बराबरी के उलट मानवीय, करुणा और सहानुभूति, समझ और सरकार, स्थानीयता का इजहार करती है कविता. कविता के मानवीय प्रतिरोध में फिलिस्तीनी कविता की अपनी भूमिका है. फिलिस्तीनी कविता में गवाही, हिस्सेदारी, जिम्मेदारी और यातना एक साथ है. ये बातें समकालीन हिंदी प्रमुख साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने दिल्ली के जवाहर भवन में फिलिस्तीनी कवियों के पाठ पर आधारित किताब “कविता का काम आँसू पोछना नहीं” के विमोचन के अवसर पर कहीं.
वजपेयी ने आगे कहा कि हम लोग (भारतीय) सातवें दशक से फिलिस्तीनी कविता से वाकिफ हुए. महमूद दरवेश हिन्दी रचनात्मक भूगोल का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया. फिलिस्तीनी कवि जो है, वे अपनी ही भूमि में विकसित हैं, वे खुली आंखों से रोज-मर्रा का अपमान, बंदिशें, बाधाएं देखते हैं. फिलिस्तीनी कवि जकरिया मोहम्मद की कविता को पेश किया.
‘‘वह रो रहा था, इसलिए उसे संभालने के लिए मैंने उसका हाथ थामा और आंसू पोछने के लिए मैंने उसे कहा, जब दुख से मेरा गला रुंध रहा था, मैं तुमसे वादा करता हूं कि इंसाफ जीतेगा आखिरकार, और अमन जल्दी कायम होगा...’’
दुनिया ताकतवर के सामने झुक गई है
भारत में फिलिस्तीनी राजदूत अदनान अबू अल हैजा ने कहा कि आज पूरी दुनिया ताकतवर के सामने झुक गई है. इजरायल की तरफ से लगातार हमारे ऊपर हमले हो रहे हैं, जिनमें छोटे-छोटे बच्चे और महिलाओं को टारगेट किया जा रहा है. विश्व बैंक की रिपोर्ट दुनिया का बता रही है, लेकिन दूनिया खामोश हैं, ये दुनिया के लिए चिंता का विषय है.
उन्होंने कहा कि अब तक हमारे 24 हजार से ज्यादा मुसलमानों को मार दिया गया है. इस अवसर पर उन्होंने ने फिलिस्तीन पर अरबी भाषा में कविता पढ़ी.
फिलिस्तिनी कविता के माध्यम से आवाज बुलंद करने की कोशिश
वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा कि फिलिस्तीन में जो हो रहा है, वह नरसंहार से कम तो नहीं है. इसलिए हम लोगों को सोचना होगा कि हमें आवाज उठानी चाहिए, लेकिन वह आवाज हम खुद फिलिस्तीन कविता के माध्यम से इसलिए उठाने की कोशिश की जा रही है कि देश के लोग इजराइल के जुल्म को समझ सकें.
उन्होंने फिलिस्तीनी कवि फतवा तूफान की कविता पढ़कर फिलिस्तीन से जुड़ने की कोशिश कीः
“काफी है मेरे लिए
काफी है उसकी जमीन पर मरना
उसमें दफ्न होना
घुलना और गायब हो जाना उसी मिट्टी में
और फिर खिल पड़ना एक फूल की शक्ल में
जिससे एक बच्चा खेले मेरे वतन का
काफी है मेरे लिए रहना
अपने मुल्क के आगोश में
उसमें रहना करीब मुट्ठी भर मिट्टी की तरह
घास के एक गुच्छे की तरह
एक फूल की तरह”
इस किताब का अनुवाद अशोक वाजपेयी, अपूर्वानंद, यादवेन्द्र, निधीश त्यागी और ऋचा नागर ने किया है.