दयाराम वशिष्ठ
गुजरात के भुज से 100 किलोमीटर दूर गांव बारहा में जन्मे 72 वर्षीय मोहम्मद अली खत्री का नाम उन शिल्पकारों में शामिल है, जो अपनी कारीगरी के बलबूते देश विदेश में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं.यही नहीं, उनकी काबिलियत से खुश होकर भारत सरकार की ओर से उन्हें शिल्प गुरु अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है.
वर्ष 1988 में राष्ट्रपति अवार्ड सम्मानित होने से लेकर अब तक कई बार विभिन्न आयोजनों पर इन्हें सम्मान मिल चुका है.हस्तशिल्प क्षेत्र में वर्ष 2002में शुरू शिल्प गुरु पुरस्कार ऐसे सर्वश्रेष्ठ सिद्धहस्त हस्तशिल्पियों को दिया जाता है, जिन्होंने इस क्षेत्र में गुरु की भूमिका निभाते हुए संबंधित कला को आगे बढ़ाने के लिए बेहतरीन कार्य किया हो.
मोहम्मद अली खत्री हस्तशिल्प को बढावा देने वालों में एक हैं.
कभी खुद थे ट्रेनर आज दे रहे देश विदेश में ट्रेनिंग
मोहम्मद अली खत्री ने 12वर्ष की उम्रमें काम धंधे की तलाश में जाम नगर पहुंचे,जहां से उन्होंने इस सफर की शुरुआत की.शुरूआती दौर में कलर व बंधेज यानिगांठ बांधकर डिजाइन बनाने का काम सीखा.अब उन्हें विदेशों में कारीगरी के बारे में ट्रेनिंग देने के लिए भेजा जाता है.अब तक वे 10से अधिक देशों में जाकर अपनी कारीगरी के बारे में वहां के लोगों को सिखा चुके हैं.
मोहम्मद अली खत्री कहते हैं, “विदेश भेजकर वहां के लोगों को ट्रेनिंग देने के पीछे सरकार की मंशा है कि भारत के इस क्रॉफ्ट के बारे में जानने से यहां के शिल्पकारों को बढ़ावा मिल सके.सरकार के इस कदम से उनके इस कारोबार को भी बढ़ावा मिला है.
पहली बार अमेरिका का सफर करने पर हुई बेहद खुशी
काम की बदौलत वर्ष 2002में उन्हें सरकार की ओर से अमेरिका जाने का मौका मिला.पहली बार उन्होंने हवाई जहाज का सफर किया तो बेहद खुशी हुई.अमेरिका पहुंचने के बाद उन्होंने वहां के लोगों को इस कारीगरी के बारे में ट्रेनिंग दी.
पत्नी नूर बानो मोहम्मद खत्री को मिला राष्ट्रीय शिल्पकार पुरस्कार
मोहम्मद अली खत्री का पूरा परिवार हस्तशिल्प कारोबार से जुड़ा है.इनकी पत्नी नूर बानो मोहम्मद खत्री को भी वर्ष 2022में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने राष्ट्रीय शिल्पकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
इन्हें वर्ष 2017का बंधनी सिल्क में उत्तम कार्यों को यह पुरस्कार प्रदान किया गया.बेटे सलमान मोहम्मद ने बताया कि उनके पिता ने 35साल पहले सूरजकुंड मेला में स्टॉल लगाई थी.इसके बाद से हर साल यहां मेले में उनकी स्टॉल लगाई जाती है.
300 रूपए में चलाना होता था घर खर्च
72 वर्षीय मोहम्मद अली खत्री ने बीते दिनों की याद तरोताजा करते हुए कहा, “एक समय था जब काम सीखने के दौरान उन्हें 300रुपये मजदूरी मिलती थी. इससे ही उन्हें घर खर्च चलाना होता था.
20 साल की उम्र में ही उन्होंने जाम नगर के शोरूम पर लेबर के रूप में काम करना शुरू कर दिया.इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. बंधनी यानि छोटी गांठों को बांधने वाले कारीगर और सुंदर पैटर्न बनाने के लिए उन्हें अलग अलग रंगों में रंगने की एक विधि है.इसे बनाने के लिए आमतौर पर नाखूनों से बांधा जाता था.
कुछ स्थानों पर कारीगर कपड़े को आसानी से तोड़ने के लिए नुकीली कील वाली धातु की अंगूठी पहनते हैं.
गरीब व विधवा महिलाएं काम सीख कर पा रही रोजगार
मोहम्मद अली खत्री ने बताया कि यह काम महिलाएं आसानी से कर लेती हैं.गरीब व विधवा महिलाओं को घर खर्च चलाने के लिए पैसों की सख्त जरूरत होती है.उन्होंने समाज गरीब व विधवा महिलाओं को बढावा देने के उद्देश्य से उन्हें काम सीखाकर कमाने लायक बनाया.
अब तक 600 से अधिक महिलाएं उनके यहां काम सीख चुकी हैं, जो अच्छा पैसा कमा रही हैं.सरकार भी इसे बढ़ावा देने के लिए महिलाओं को मानदेय देकर ट्रेनिंग कराती रहती है.उनका मानना है कि महिलाओं का घर से बाहर निकलकर कमाना मुश्किल होता है. ऐसे में काम सीखने के बाद महिलाएं अपने घर पर ही अच्छी कमाई कर सकती है.
उन्होंने बताया कि कठोर परिश्रम और सच्ची लगन से जीवन में किसी भी मनचाहे मुकाम को हासिल किया जा सकता है.लक्ष्य छोटे-छोटे तय करना चाहिए.धीरे-धीरे बड़े लक्ष्य की तरफ बढ़ना चाहिए.इससे आसानी से कामयाबी पाई जा सकती है.यही सफलता का मूलमंत्र है.
मेला में आने का उद्देश्य माल बेचना नहीं, अपितु ऑर्डर लेना होता है
मोहम्मद अली खत्री ने बताया कि अब तक वे 50से अधिक मेलों में स्टॉल लगा चुके हैं.इनमें उनका मकसद माल बेचना नहीं होता, अपितु यहां मेले के दौरान एक्सपोर्टर विजिट करने आते हैं.ऐसे में उनका उद्देश्य होता है एक्सपोर्टर से संपर्क स्थापित कर बिजनेस को बढ़ावा देना होता है.
पूरे भारत समेत 10 से अधिक देशों का कर चुके हैं भ्रमण
कारीगरी में महारथ हासिल करने के बाद मोहम्मद अली खत्री ने पूरे भारत का भ्रमण करने के साथ साथ 10से अधिक देशों में जाने का मौका मिला.इनमें जर्मन, अमेरिका, जापान, दुबई, ब्राजील, मैक्सिको समेत कई देश शामिल हैं.