आवाज़ द वॉयस, नई दिल्ली
देश की तरक़्क़ी, अमन और स्थिरता तभी संभव है जब हिंदू और मुसलमान मिलजुलकर रहें. यह बात जमीअत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने संगठन की दिल्ली शाखा की आम सभा को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि “फिरकापरस्ती ने इस मुल्क को हमेशा पीछे धकेला है. हमारे बुज़ुर्गों ने कभी दो-क़ौमी नज़रिये को स्वीकार नहीं किया, बल्कि हमेशा एक साझा भारतीयता की हिमायत की.”
मुसलमान इस देश के मूल निवासी
मौलाना मदनी ने अपने भाषण में इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत के मुसलमान इस देश के मूल निवासी हैं. वे बाहर से आए हुए लोग नहीं, बल्कि यहीं के बाशिंदे हैं. उन्होंने कहा – “हमारे पूर्वजों ने इसी मिट्टी पर इस्लाम कबूल किया था. हमारी जातियां और सामाजिक ढांचा हिंदू भाइयों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। हम अलग नहीं, बल्कि इसी समाज का हिस्सा हैं.”
उन्होंने चेतावनी दी कि असम जैसे राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाना, उनके घरों को बुलडोज़ करना और 1971 की नागरिकता की बुनियाद को नकारने की कोशिशें केवल राजनीतिक फायदे के लिए की जा रही हैं. लेकिन जमीअत उलमा-ए-हिंद ने हर मोर्चे पर कानूनी लड़ाई और सामाजिक संघर्ष के ज़रिए इन नाइंसाफ़ियों का डटकर मुकाबला किया है.
जमीअत का आम इजलास
दिल्ली के आईटीओ स्थित जमीअत उलमा-ए-हिंद मुख्यालय में आयोजित इस आम इजलास में राजधानी और देशभर से बड़ी संख्या में उलमा, इमाम, मदरसों के ज़िम्मेदारान और आम नागरिकों ने शिरकत की. सभा की शुरुआत क़ारी मोहम्मद साजिद फ़ैज़ी की तिलावत-ए-क़ुरआन से हुई. मौलाना मोहम्मद मुस्लिम क़ासमी ने अध्यक्षता की, जबकि संचालन की ज़िम्मेदारी मुफ्ती अब्दुर्राज़िक मज़ाहिरी ने निभाई.
जमीअत की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य मुफ्ती अशफ़ाक़ आज़मी ने संगठन की ऐतिहासिक सेवाओं का ज़िक्र करते हुए समाज के हर तबके से जमीअत से जुड़ने की अपील की.
फिरकापरस्ती से मुल्क को नुक़सान
मुख्य अतिथि के तौर पर मौलाना अरशद मदनी ने देश के मौजूदा हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि “फिरकापरस्ती और नफ़रत की सियासत से इस मुल्क को सिर्फ़ नुकसान हुआ है. आज भी कुछ ताक़तें देश को तोड़ने और मुसलमानों को हाशिए पर डालने की कोशिश कर रही हैं.” उन्होंने असम के मुख्यमंत्री की नीतियों को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि यह केवल विभाजनकारी राजनीति का हिस्सा है, जिसका मक़सद सामाजिक ताने-बाने को कमज़ोर करना है.
देशभर से उलमा की भागीदारी
इस कार्यक्रम की खास बात यह रही कि इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से आए जमीअत उलमा के वरिष्ठ पदाधिकारियों और उलमा ने हिस्सा लिया. इनमें मुफ्ती सैयद मआसूम साक़िब (नाज़िम उमूमी, जमीअत उलमा-ए-हिंद), मुफ्ती मोहम्मद इस्माईल (सदर, जमीअत उलमा मालेगांव), मौलाना अब्दुर्रशीद (नाज़िम आला, असम), मौलाना मुहम्मद अब्बास (नाज़िम आला, बिहार), क़ारी इसरारुल हक़ क़ासमी, क़ारी दिलशाद क़मर, मुफ्ती निज़ामुद्दीन, मुफ्ती इसरारुल हक़, मुफ्ती कफ़ीलुर्रहमान, मौलाना अब्दुल्लाह आदि के नाम प्रमुख रहे.दिल्ली के विभिन्न जिलों से आए उलमा, इमाम और समाजसेवियों की भारी मौजूदगी ने इस इजलास को सर्वसमावेशी स्वरूप दिया.
समापन और दुआ
रात करीब 10 बजे इजलास का समापन मौलाना अरशद मदनी की रूहानी और भावुक दुआ के साथ हुआ। उन्होंने देश में अमन-चैन, एकता और इंसाफ़ की बहाली के लिए विशेष दुआ की.
यह इजलास केवल धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय एकता का स्पष्ट संदेश था. ऐसे समय में जब नफ़रत और ध्रुवीकरण की राजनीति समाज को बाँटने की कोशिश कर रही है, जमीअत उलमा का यह कार्यक्रम नई उम्मीद, जागरूकता और इंसाफ़ की आवाज़ बनकर सामने आया.