कोलकाता की धड़कनों में गूंजते रहे भूपेन हज़ारिका के सुर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-09-2025
Bhupen Hazarika's voice resonated in the heartbeat of Kolkata
Bhupen Hazarika's voice resonated in the heartbeat of Kolkata

 

शम्पी चक्रवर्ती पुरकायस्थ

भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जो समय और सीमाओं से परे होते हैं.असम में जन्मे और पले-बढ़े महान गायक, संगीतकार और फिल्मकार भूपेन हज़ारिका के लिए, कोलकाता सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि उनके कलात्मक जीवन का दिल था.यह वह शहर था जिसने उन्हें एक छात्र से अखिल भारतीय सांस्कृतिक प्रतीक में बदल दिया.

भूपेन हज़ारिका पहली बार 1940के दशक के अंत में एक युवा छात्र के रूप में कोलकाता आए थे.प्रेसीडेंसी कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान, वे शहर के जीवंत सांस्कृतिक माहौल से तुरंत जुड़ गए.

आकाशवाणी कोलकाता से गाने का मौका मिलने के बाद, उनकी आवाज़ पूरे भारत में फैल गई.यहीं उन्होंने हेमंत मुखर्जी, सलिल चौधरी, सुधीन दासगुप्ता जैसे महान संगीतकारों के साथ गहरी दोस्ती बनाई.इस दोस्ती ने असमिया लोकगीतों की धुन को आधुनिक बंगाली संगीत शैली के साथ मिलाकर एक नया संगीत तैयार किया.

1950और 1960के दशक में उन्होंने बंगाली फिल्मों में संगीतकार के रूप में अपनी शुरुआत की.1961में फिल्म "धुपछाया" के संगीत निर्देशन ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई.बाद में फिल्म "चमेली मेमसाहब" के गीतों ने उन्हें पूरे देश में मशहूर कर दिया.उन्होंने न केवल धुनों की रचना की, बल्कि अपने लिखे गीतों को अपनी दमदार आवाज़ में गाकर लाखों दिलों को जीता.

भूपेन हजारिका और कोलकाता में उनका घर

संगीत: मनोरंजन नहीं, बदलाव का हथियार

भूपेन हज़ारिका ने सिर्फ मनोरंजन के लिए गीत नहीं बनाए.वे संगीत को सामाजिक बदलाव का एक शक्तिशाली माध्यम मानते थे.1960और 1970के दशक में जब कोलकाता में जन आंदोलन चल रहे थे, उनके विरोध गीतों ने युवा पीढ़ी को प्रेरित किया.

उनके मानवतावादी गीत जैसे "मानुष-मानुष, जीवन-जीवन" ने न केवल असम में, बल्कि कोलकाता की सड़कों पर भी एक आंदोलन का रूप ले लिया.यह गीत जुलूसों, सभाओं और विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गूंजता था, यह संदेश देते हुए कि संगीत लोगों की सार्वभौमिक भाषा है.

जब उन्होंने हुगली नदी के किनारे खड़े होकर "गंगा अमर माँ" गाया, तो यह गीत कोलकाता के लोगों के लिए सिर्फ एक नदी के बारे में नहीं था, बल्कि एक सभ्यता की शुरुआत के बारे में था.भूपेन हज़ारिका इस नदी की धारा की तरह बंगाली संस्कृति में पूरी तरह से समा गए थे.

एक घर, जो विरासत बन गया

कोलकाता के दक्षिण में स्थित एक ऐतिहासिक हवेली आज भी भूपेन हज़ारिका की यादों को सँजोए हुए है.इस घर में, जो उनका दूसरा घर बन गया था. उन्होंने अपनी कई लोकप्रिय रचनाएँ बनाईं.यहीं पर उन्होंने उस समय के प्रमुख कवियों, लेखकों और संगीतकारों के साथ घंटों विचार-विमर्श किया.स्थानीय निवासियों का कहना है कि वे अक्सर खिड़की के पास बैठकर संगीत की रचना करते थे.

आज यह घर भूपेन प्रेमियों के लिए एक तीर्थस्थल बन गया है.कलाकार और संस्कृति प्रेमी यहाँ आकर उनकी स्मृतियों को याद करते हैं.हालाँकि, घर की मौजूदा हालत चिंताजनक है.लंबे समय से मरम्मत न होने के कारण इसके कुछ हिस्से जर्जर हो रहे हैं.सांस्कृतिक समुदाय की यह मांग है कि इस घर को शहर की सांस्कृतिक विरासत के रूप में संरक्षित किया जाए.विभिन्न संगठन पश्चिम बंगाल सरकार से इसे एक स्मारक में बदलने की अपील कर चुके हैं.

एक रिश्ता जो हमेशा ज़िंदा रहेगा

संस्कृति मंत्रालय के एक अधिकारी ने आश्वासन दिया है कि "भूपेन हज़ारिका का यह घर सिर्फ एक निजी आवास नहीं है, यह भारतीय संगीत और संस्कृति की विरासत है.इसके संरक्षण के लिए बहुत जल्द पहल की जाएगी."

भूपेन हज़ारिका के जन्मदिन या पुण्यतिथि पर, उनके प्रशंसक इस घर पर इकट्ठा होते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हैं.उनके गीत गाकर उन्हें याद करते हैं.कोलकाता के हृदय में स्थित यह घर आज भी यह कहता है कि भले ही उनकी आवाज़ शांत हो गई हो, लेकिन उनके गीतों की मिठास और मानवीय संदेश हमेशा बरकरार रहेंगे.

भूपेन हज़ारिका का कोलकाता के साथ यह रिश्ता केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि एक सच्चे भावनात्मक संबंध की निशानी है, जिसने लोक संगीत को लोगों की मुक्ति की भाषा बना दिया.