हिंदी और उर्दू दो नहीं, एक ही ज़बान हैं: सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक टिप्पणी ने फिर से जगा दी तहज़ीब की बहस

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 16-04-2025
Hindi and Urdu are not two but one language: Supreme Court's historic comment has rekindled the debate on culture
Hindi and Urdu are not two but one language: Supreme Court's historic comment has rekindled the debate on culture

 

आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली

"भाषा धर्म नहीं होती, न ही वह किसी धर्म की प्रतिनिधि होती है.भाषा एक समुदाय, एक संस्कृति और एक सभ्यता की आवाज़ है."सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत कीगंगा-जमुनी तहज़ीबऔर भाषायी विविधता की आत्मा को भी अभिव्यक्त करती है.

महाराष्ट्र के अकोला ज़िले के पातुर नगर परिषद की एक इमारत के साइनबोर्ड पर उर्दू भाषा के उपयोग को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठने स्पष्ट किया किहिंदी और उर्दू दो अलग-अलग भाषाएं नहीं, बल्किएक ही ज़बान की दो अभिव्यक्तियाँहैं.


"भाषा धर्म नहीं है" – सुप्रीम कोर्ट ने दी स्पष्ट चेतावनी

कोर्ट नेबॉम्बे हाईकोर्टके फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि उर्दू का उपयोगमहाराष्ट्र स्थानीय प्राधिकरण (आधिकारिक भाषा) अधिनियम, 2022का उल्लंघन नहीं करता, खासकर जब वह भाषासंविधान की आठवीं अनुसूची में शामिलहो.

न्यायालय ने कहा:“भाषा संचार का माध्यम है, न कि किसी धर्म या समुदाय की संपत्ति.इसे विभाजन की नहीं, विचारों के आदान-प्रदानकी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए.”


हिंदुस्तानी तहज़ीब और भाषा की साझा विरासत

न्यायमूर्ति धूलिया नेउर्दू को हिंदुस्तानी तहज़ीब का बेहतरीन नमूनाबताते हुए कहा कि यह भाषा उत्तर और मध्य भारत कीसांस्कृतिक एकता और मिश्रित परंपराओंकी पहचान है.

“उर्दू, भारत की छठी सबसे अधिक बोली जाने वाली अनुसूचित भाषा है, और इसकी जड़ें इस भूमि की गहराई में हैं.”

यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब भाषा और लिपि को लेकर देश में लगातार वैचारिक टकराव देखने को मिल रहे हैं.सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि लिपि भाषा को परिभाषित नहीं करती —उर्दू नस्तालिक में है, हिंदी देवनागरी में, परव्याकरण, वाक्यविन्यास और ध्वनि-संरचना में दोनों एक समान हैं.


भाषा-विज्ञानियों और साहित्यकारों का संदर्भ

सुप्रीम कोर्ट नेज्ञानचंद जैन, अमृत राय, रामविलास शर्माऔरअब्दुल हकजैसे भाषाशास्त्रियों का उल्लेख करते हुए कहा कि“राजनीतिक सुविधा भाषाई वास्तविकता नहीं होती.”
हिंदी और उर्दू को संविधान में अलग-अलग भाषाएं भले ही माना गया हो, लेकिन भाषाविदों के अनुसार, ये दोनोंएक ही भाषा की दो शैलियाँहैं – एक 'हिंदुस्तानी'.


संविधान सभा की बहस और 'राष्ट्रीय भाषा' का सवाल

कोर्ट नेसंविधान सभा की ऐतिहासिक बहसोंका उल्लेख करते हुए कहा कि“स्वतंत्र भारत में एक समय ऐसा था जब यह आशा की जा रही थी कि ‘हिंदुस्तानी’ को राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाया जाएगा.”

हालांकि हिंदी और उर्दू के समर्थकों के बीच मतभेद रहे, परंतु भाषा के सवाल परराष्ट्रीय एकताकी भावना हमेशा सर्वोपरि रही.

न्यायालय नेग्रैनविल ऑस्टिनका हवाला देते हुए कहा कि भाषा को लेकर संविधान सभा की बहसें कई बार टूटने की कगार तक पहुंच गई थीं, लेकिन अंततःसमझौता और सह-अस्तित्वकी भावना से रास्ता निकाला गया.


क्या कहता है यह फैसला भारत के सामाजिक ताने-बाने के बारे में?

यह निर्णय केवल एक साइनबोर्ड के मामले तक सीमित नहीं है.यहभारतीय समाज में भाषा के राजनीतिकरण, और उसे धर्म या समुदाय से जोड़ने की प्रवृत्ति के खिलाफ एकमजबूत संवैधानिक स्टैंडहै.

सुप्रीम कोर्ट का संदेश साफ है:

  • भाषा को धर्म से जोड़ना गलत है
  • लिपि भाषा का निर्धारण नहीं करती
  • उर्दू और हिंदी में भाषिक समानता है
  • भाषा भारत की सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता का प्रतीक है