आवाज़ द वॉयस/ नई दिल्ली
भारत के जटिल धार्मिक और सामाजिक परिदृश्य में संवाद की एक नई राह खुलती दिख रही है.जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ बातचीत का पुरजोर समर्थन कियाऔर धार्मिक रूप से संवेदनशील मुद्दों पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयानों का गर्मजोशी से स्वागत किया.मदनी के इस बयान को दोनों प्रमुख समुदायों के बीच दशकों से चली आ रही दूरी को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
एक विशेष बातचीत में, इस्लामिक विद्वान मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि उनकी संस्था पहले ही संवाद के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित कर चुकी है.उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भले ही "मतभेद हैं", फिर भी उन्हें कम करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए.
मदनी ने बताया, "बहुत सारे अगर-मगर हैं.मेरी संस्था ने प्रस्ताव पास किया है कि संवाद होना चाहिए.मतभेद हैं, लेकिन हमें उन्हें कम करना है.हम बातचीत के सभी प्रयासों का समर्थन करेंगे.हाल ही में, आरएसएस प्रमुख ने ज्ञानवापी, मथुरा और काशी को लेकर जो बयान दिए हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए.हम हर तरह की बातचीत का समर्थन करेंगे."
भागवत के बयान का मदनी ने किया स्वागत
यह पहली बार नहीं है जब आरएसएस प्रमुख ने इन संवेदनशील मुद्दों पर अपनी राय रखी है.इससे पहले, मोहन भागवत ने कहा था कि राम मंदिर ही एकमात्र ऐसा आंदोलन था जिसे संघ ने आधिकारिक रूप से समर्थन दिया था.
उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि संघ के सदस्य व्यक्तिगत रूप से काशी और मथुरा आंदोलनों के लिए प्रयास कर सकते हैं.भागवत ने भारत में इस्लाम की स्थायी उपस्थिति को भी स्वीकार किया था.इसके अलावा, उन्होंने जनसंख्या संतुलन बनाए रखने के लिए हर भारतीय से तीन बच्चों की वकालत की थी, और धर्मांतरण व अवैध प्रवासन को जनसंख्या असंतुलन के लिए जिम्मेदार ठहराया था.
मौलाना मदनी ने भागवत के इन बयानों को सराहना योग्य बताया.उन्होंने कहा कि इस तरह की पहल से समाज में सद्भाव और भाईचारा बढ़ेगा.यह दृष्टिकोण दर्शाता है कि दोनों पक्ष अब टकराव के बजाय सुलह और शांतिपूर्ण समाधान की ओर देख रहे हैं.
राजनीतिक भाषा के स्तर पर मदनी की तीखी आलोचना
बातचीत के दौरान, मौलाना मदनी ने हाल के वर्षों में भारतीय राजनीति में संवाद के स्तर में आई गिरावट पर भी तीखी आलोचना की.उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से लेकर विपक्षी नेताओं और राज्यों के प्रमुखों तक, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने "अनुचित" और "आपत्तिजनक" भाषा का इस्तेमाल किया है.
मदनी ने विशेष रूप से असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की टिप्पणियों पर गहरी आपत्ति जताई, जिन्हें उन्होंने बेहद "अपमानजनक" बताया.उन्होंने कहा, "असम के मुख्यमंत्री की भाषा बेहद आपत्तिजनक है.वे राज्य के संरक्षक हैं,लेकिन जिस तरह की भाषा का वे इस्तेमाल कर रहे हैं वह अनुचित है.हाँ, हम एक-दूसरे से असहमत हैं, लेकिन मैं उनसे आग्रह करता हूँ कि बोलते समय सही शब्दों का इस्तेमाल करें.विभिन्न मुद्दों पर, हमारे मतभेद कम हो सकते हैं."
मदनी ने जोर देकर कहा कि लोकतंत्र में राजनीतिक और सामाजिक विचारों में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन इससे "नफरत" या "शत्रुता" नहीं पैदा होनी चाहिए.उन्होंने कहा, "हमारे विचारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन हम दुश्मन नहीं हैं."
पहलगाम आतंकी हमला: नागरिक समाज की परिपक्वता का प्रमाण
मौलाना मदनी ने पहलगाम आतंकी हमले की साजिश को नाकाम करने के लिए देश के नागरिक समाज की परिपक्वता और संयम की सराहना की.यह हमला, जिसमें पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने 22अप्रैल को 26पर्यटकों (25भारतीय और एक नेपाली) की हत्या कर दी थी, का मकसद भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना था.
मदनी ने कहा, "पहले, जिस तरह से उन शरारती तत्वों ने नाम पूछकर लोगों की हत्या की,मैं अपने देशवासियों का जितना धन्यवाद करूं, कम है, जिन्हें मैं हिंदू और मुस्लिम में बांटना नहीं चाहता.उन्होंने धैर्य दिखाया.यह सच है.अगर यह किसी और देश में होता, तो कौन जानता कि क्या हो जाता.यही भारत की खूबसूरती है."
उन्होंने जोर देकर कहा कि इस शर्मनाक घटना को नाकाम करने में सबसे बड़ी भूमिका देश के नागरिक समाज की रही.उन्होंने समझा कि यह देश में रहने वाले समुदायों के बीच लड़ाई भड़काने की साजिश है और उसे विफल कर दिया.मदनी ने इस घटना को "ऑपरेशन सिंदूर से भी बड़ी उपलब्धि" करार दिया.
ऑपरेशन सिंदूर: राष्ट्र की एकता का प्रतीक
पहलगाम आतंकी हमले के बाद, भारतीय सशस्त्र बलों ने 7मई की सुबह "ऑपरेशन सिंदूर" शुरू किया.इस सटीक सैन्य अभियान में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (PoK) में चलाए जा रहे आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया.भारत ने इसके बाद पाकिस्तान की जवाबी प्रतिक्रिया को भी विफल कर दिया.
मदनी ने कहा कि भारतीय सेना के साथ खड़ा होना नागरिकों का कर्तव्य हैऔर यह काम विपक्ष ने भी ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किया.उन्होंने कहा, "जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ, तब भी जिन लोगों ने अच्छे कार्यों के लिए भी सरकार की आलोचना की थी, उन्होंने इसका समर्थन किया.सेना के साथ खड़ा होना हमारा कर्तव्य है."
ऑपरेशन सिंदूर के बाद, भारतीय सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने एक संयुक्त अभियान में पहलगाम हमले में शामिल तीन आतंकियों को मार गिराया.
29 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में "ऑपरेशन महादेव" के तहत इन आतंकवादियों के मारे जाने की पुष्टि की.शाह ने कहा, "एक संयुक्त ऑपरेशन महादेव में भारतीय सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पहलगाम आतंकी हमले में शामिल तीन आतंकियों को मार गिराया है.
निर्दोष नागरिकों को उनके परिवारों के सामने केवल धर्म पूछकर मार दिया गया.मैं इस बर्बर कृत्य की कड़ी निंदा करता हूं और उन परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया."
मौलाना मदनी के बयान इस बात पर जोर देते हैं कि धार्मिक और राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, भारत के लोग एकजुट हैं.देश के दुश्मनों की साजिशों को नाकाम करने की क्षमता रखते हैं.आरएसएस के साथ संवाद की उनकी पहल भविष्य में एक अधिक समावेशी और शांतिपूर्ण समाज की नींव रख सकती है.यह न केवल धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देगा, बल्कि राष्ट्र निर्माण के साझा लक्ष्यों की दिशा में काम करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा.