हुगली के भद्रेश्वर में साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल दास परिवार

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 02-09-2025
Das family is an example of communal harmony in Bhadreshwar of Hooghly,Photo AI generated
Das family is an example of communal harmony in Bhadreshwar of Hooghly,Photo AI generated

 

शम्पी चक्रवर्ती पुरकायस्थ

पश्चिम बंगाल की मिट्टी हमेशा से ही अपनी साझी संस्कृति, भाईचारे और इंसानियत की मिसाल रही है. यहां पीढ़ी दर पीढ़ी लोग एक-दूसरे के साथ खड़े होकर यह संदेश देते आए हैं कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है. इसी परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए है हुगली जिले के भद्रेश्वर के पालपाड़ा क्षेत्र का एक साधारण-सा परिवार – दास परिवार. यह परिवार पिछले कई दशकों से मुसलमानों के पूजनीय सैयद शाह पीर की दरगाह (मजार) की देखरेख कर रहा है.


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पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही जिम्मेदारी

सन 1967 से पालपाड़ा के दास परिवार ने इस मजार की सेवा अपने कंधों पर उठाई हुई है. रोज़ सुबह-शाम इसकी सफ़ाई से लेकर धूप और मोमबत्ती जलाने तक की जिम्मेदारी यही परिवार निभाता है. परिवार के सदस्य पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ यह काम करते हैं. इस सेवा के पीछे केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक गहरी सांप्रदायिक एकता की कहानी छिपी हुई है.

इतिहास की ओर लौटते हुए

करीब 120 साल पहले यह पूरा इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ था. उस दौर में भद्रेश्वर का पालपाड़ा और आसपास का हिंदुस्तान पार्क मुसलमान-बहुल इलाका था. यहां कई पीरों की मजारें बनीं और धीरे-धीरे यह इलाका धार्मिक आस्था का केंद्र बन गया.

फिर आया देश का बंटवारा. उस समय पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) से बहुत से लोग यहां आकर बसे. उनके साथ कई गैर-बंगाली परिवार भी इस क्षेत्र में आकर बस गए. नतीजा यह हुआ कि समय के साथ पालपाड़ा में हिंदुओं की संख्या बढ़ती गई और मुस्लिम परिवार धीरे-धीरे यहां से कम होते चले गए.

इस बीच, साल 1967 में पालपाड़ा के श्रीधामचंद्र दास ने एक मुस्लिम व्यक्ति से यह ज़मीन खरीदी। ज़मीन के साथ ही उन्हें सैयद शाह पीर की मजार की देखभाल की जिम्मेदारी भी सौंपी गई. तभी से यह दास परिवार इस मजार का संरक्षक बन गया.

हिंदू-मुसलमान में भेद नहीं

परिवार के मौजूदा सदस्य देबाशीष दास कहते हैं,"मेरे पिता ने यह ज़मीन और मजार एक मुसलमान व्यक्ति से खरीदी थी. तभी से वे इस मजार की सेवा करते आ रहे. उनके निधन के बाद हमने यह जिम्मेदारी उठाई. आज पूरा परिवार इसे निभा रहा है. हर साल 26 जनवरी को मुस्लिम समुदाय के लोग यहां विशेष प्रार्थना करने आते हैं.

पहले यह मजार कच्ची मिट्टी की थी. अब इसे टिन की छत से ढककर मजबूत बनाया गया है. यहां हिंदू और मुसलमान सब बराबर हैं. किसी भी तरह का बंटवारा कभी नहीं होना चाहिए. जाति-धर्म से ऊपर उठकर सबको इंसानियत का धर्म निभाना चाहिए और यह असली तस्वीर पश्चिम बंगाल में देखने को मिलती है."


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बिना किसी आर्थिक मदद के

इस मजार की देखभाल के लिए दास परिवार कभी भी बाहर से आर्थिक सहायता नहीं लेता. यह बात देवाशीष बाबू गर्व से बताते हैं. “साल भर जो भी लोग मजार पर दक्षिणा चढ़ाते हैं,

हम उसे सुरक्षित रखते हैं . सालाना उत्सवों के दौरान उसे मौलवी साहब को सौंप देते हैं. ईद, शब-ए-बरात और अन्य मौकों पर यहां बड़ी संख्या में मुस्लिम श्रद्धालु आते हैं. यहां तक कि आसपास के हिंदू परिवार भी नियमित रूप से आते हैं, चादर चढ़ाते हैं और धूप-बत्ती जलाते हैं.”

ईद और अन्य त्योहारों पर दास परिवार मजार को रोशनी और सजावट से चमका देता है. यह उनके लिए केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि गहरी आस्था और सम्मान का प्रतीक है.

दिल से जुड़ाव

स्थानीय लोगों का कहना है कि दास परिवार ने इस मजार को अपने परिवार का ही हिस्सा मान लिया है. वे इसे बोझ नहीं, बल्कि प्यार और श्रद्धा से निभाई जाने वाली जिम्मेदारी मानते हैं. यही वजह है कि इलाके के लोग भी इस परिवार को बेहद सम्मान की नज़र से देखते हैं.


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बंगाल की पहचान

यह कहानी बंगाल की उस परंपरा की जीवित मिसाल है, जहां धर्म और जाति की दीवारें इंसानियत के सामने बौनी हो जाती हैं. यहां का सामाजिक ढांचा हमेशा से ही साझा संस्कृति और सौहार्द का गवाह रहा है. आज जब देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिकता और नफरत की आग फैलाई जा रही है, तब भद्रेश्वर का यह छोटा-सा इलाका पूरे समाज को यह संदेश देता है कि"मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।"

दास परिवार की यह अनोखी सेवा बताती है कि जब इंसान दिल से एक-दूसरे को अपनाते हैं, तब धर्म की दीवारें खुद-ब-खुद ढह जाती हैं. हुगली का यह उदाहरण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है.

यह केवल एक मजार नहीं, बल्कि सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है, जहां हिंदू और मुसलमान मिलकर इंसानियत की खुशबू फैलाते हैं. भद्रेश्वर की इस मिसाल से पूरा देश सीख सकता है कि सच्चा धर्म केवल मानवता है.