Story of India's first TV channel: When and who started Doordarshan
अर्सला खान/नई दिल्ली
भारत के मीडिया और मनोरंजन जगत में दूरदर्शन एक ऐसा नाम है जो दशकों तक भारतीय घर-घर में गूंजता रहा. आज भले ही केबल टीवी, ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म और निजी चैनलों का दौर हो, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब देश के करोड़ों लोग केवल दूरदर्शन के सामने बैठकर समाचार, धारावाहिक, खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम देखा करते थे. दूरदर्शन का इतिहास न केवल तकनीकी विकास की कहानी है, बल्कि यह भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावों का भी साक्षी है.
दूरदर्शन की शुरुआत: कब और कैसे
भारत में टेलीविजन की शुरुआत 15 सितंबर 1959 को हुई. इस दिन भारतीय राजधानी दिल्ली में एक छोटे से प्रायोगिक प्रसारण के रूप में ‘टेलीविजन’ नाम की सेवा शुरू की गई. यह प्रसारण यूनेस्को की मदद से भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था. प्रारंभिक दिनों में यह सेवा केवल सप्ताह में दो दिन, आधे-आधे घंटे के लिए चलती थी. इसे भारतीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting) के तहत चलाया गया.
उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि रेडियो के बाद टेलीविजन भारतीय समाज में शिक्षा, जागरूकता और विकास के नए द्वार खोलेगा। यही कारण था कि इस परियोजना को सरकारी सहयोग और तकनीकी मदद मिली. बाद में 15 अगस्त 1965 को दूरदर्शन ने नियमित दैनिक प्रसारण शुरू किया. शुरुआत में इसका उद्देश्य शिक्षा और विकास से जुड़ी जानकारी देना था.
दूरदर्शन का लोगो किसने बनाया
दूरदर्शन का प्रसिद्ध नीले रंग का घुमावदार (स्पाइरल) लोगो आज भी लोगों की यादों में बसा है. यह लोगो 1976 में डिजाइनर देवाशीष भट्टाचार्य (Devashis Bhattacharyya) ने बनाया था. उस समय वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिज़ाइन (NID) अहमदाबाद के छात्र थे. उनके डिज़ाइन को चुनकर दूरदर्शन के लिए आधिकारिक प्रतीक बना दिया गया. यह लोगो ‘आंख’ और ‘गति’ दोनों का प्रतीक था, जो दूरदर्शन के दृष्टिकोण और उसकी बदलती तकनीकी प्रगति को दर्शाता है.
नाम और पहचान
पहले इसका नाम सिर्फ ‘टेलीविजन’ था, लेकिन 1976 में यह आकाशवाणी (All India Radio) से अलग होकर एक स्वतंत्र इकाई बना और इसका नाम ‘दूरदर्शन’ रखा गया. ‘दूरदर्शन’ संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है “दूर से देखना”। यह नाम अपने आप में इसके मकसद को व्यक्त करता था. दूर बैठे लोगों तक सूचना, शिक्षा और मनोरंजन पहुंचाना.
शुरुआती दौर के कार्यक्रम
दूरदर्शन के शुरुआती प्रसारण में शैक्षिक कार्यक्रम, स्कूलों के लिए विज्ञान और कृषि से जुड़ी जानकारी, तथा समाचार बुलेटिन शामिल होते थे. धीरे-धीरे इसने सांस्कृतिक और मनोरंजन के क्षेत्र में भी कदम रखा. 1982 में, जब एशियाई खेल (Asiad Games) दिल्ली में हुए, तब पहली बार भारत में रंगीन प्रसारण शुरू हुआ। यह दूरदर्शन के इतिहास का बड़ा मोड़ था.
इसके बाद ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘रामायण’, ‘महाभारत’, ‘फौजी’, ‘नुक्कड़’ जैसे धारावाहिकों ने घर-घर में दूरदर्शन की पहचान बनाई. रविवार की सुबह ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ देखने के लिए सड़कों पर सन्नाटा छा जाता था। समाचार बुलेटिन ‘संपूर्ण समाचार’, ‘संध्या समाचार’ और लोकप्रिय एंकरों ने दूरदर्शन को विश्वसनीयता दी.
सरकार और दूरदर्शन
दूरदर्शन को शुरू से ही सरकारी स्वामित्व मिला। इसके संचालन और नीतियों पर सरकार का प्रभाव रहा. इसे “जन-जन का चैनल” कहने का कारण भी यही था. यह किसी एक वर्ग या विचारधारा का चैनल नहीं था बल्कि सरकारी सूचना, विकास और जनहित संदेशों को जनता तक पहुंचाने का माध्यम था. ग्रामीण इलाकों में ‘कृषि दर्शन’ जैसे कार्यक्रमों ने किसानों के बीच नई तकनीकों और योजनाओं की जानकारी दी.
तकनीकी और संरचनात्मक विस्तार
शुरुआत दिल्ली से हुई, लेकिन 1970 के दशक में दूरदर्शन ने मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और लखनऊ में भी केंद्र स्थापित किए। 1980 के दशक के मध्य तक यह देश के बड़े हिस्से में पहुंच चुका था. 1990 के दशक में निजी चैनलों के आने के बाद भी दूरदर्शन ने अपनी अलग पहचान बनाए रखी.
आज दूरदर्शन के पास कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चैनल हैं जैसे डीडी नेशनल, डीडी न्यूज़, डीडी इंडिया, डीडी किसान, और दर्जनों क्षेत्रीय भाषाई चैनल। यह न केवल भारत में बल्कि विदेशों में बसे भारतीयों के बीच भी लोकप्रिय है.
समाज पर प्रभाव
दूरदर्शन ने भारत के लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक जीवन को गहराई से प्रभावित किया. इसने समाचार, कला, संगीत, साहित्य, खेल, विज्ञान, स्वास्थ्य और विकास. हर क्षेत्र में लोगों तक नई जानकारियाँ पहुंचाईं. सबसे बड़ी बात यह कि दूरदर्शन ने आम लोगों के बीच एक साझा राष्ट्रीय मंच तैयार किया.
दूरदर्शन की कहानी केवल एक प्रसारण संस्था की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस भारत की भी कहानी है जो धीरे-धीरे आधुनिक तकनीक को अपनाते हुए अपने समाज को शिक्षित और जागरूक बनाना चाहता था. 1959 में एक छोटे से प्रायोगिक प्रसारण से शुरू हुआ यह सफ़र आज एक विशाल नेटवर्क में बदल चुका है.
भले ही आज प्राइवेट चैनल और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म दर्शकों के मनोरंजन के लिए नई-नई पेशकशें कर रहे हों, लेकिन दूरदर्शन की सादगी, भरोसा और राष्ट्रीय जुड़ाव का स्थान कोई और नहीं ले सकता. यह केवल एक टीवी चैनल नहीं, बल्कि पीढ़ियों की यादों का हिस्सा है.