सेराज अनवर/ पटना
बिहार का एक मुस्लिम गांव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत को आत्मसात कर रहा है. राज्य के गया ज़िला स्थित भदेजा पपीता का हब है. पपीता की खेती कर यहां के मुस्लिम किसान लाखों का टर्नओवर कर रहे हैं. किसान अब अपनी आमदनी बढाने के लिए खेती का ट्रेंड बदल रहें है.किसानों ने पिछले कुछ वर्षों से अधिक मुनाफा पहुंचाने वाली फसलों की खेती की तरफ रुख करना शुरू कर दिया है.
पपीता भी उन्हीं फसलों में शामिल है. इसकी खेती में किसानों को लागत से 10 गुणा अधिक मुनाफा होता है.मानपुर प्रखंड के भदेजा गांव के किसान मोहम्मद इरफान इन दिनों पपीता की खेती के कारण चर्चा में है.उनकी 23 कट्ठा जमीन इस वक़्त सोना उगल रही है. इस गांव में दो दशक पहले खेत के मेढ़ पर पपीता लगाया जाता था.
इससे किसानों को अच्छा फायदा हुआ. फायदा देख किसान ने धान,गेहूं और सब्जी की खेती छोड़कर पपीता की खेती से जुड़ गए. शुरुआत के दिनों में एक दो किसान ही पपीता की खेती करते थे, लेकिन आज यहां 50 से अधिक किसान इसकी खेती से जुड़ गए हैं.आज की तारीख़ में यहां लगभग 25 बीघा में देशी पपीता की खेती हो रही है.किसान मुहम्मद इरफान और गुलाम मुस्तफा के मुताबिक पूरे गांव में 70 हजार से ज्यादा पपीते के पेड़ लगाए गए हैं.
इरफ़ान ने दिखाया रास्ता
गया शहर से सटे मानपुर थाना क्षेत्र में स्थित भदेजा मुस्लिम बहुसंख्यक गांव है.गांव की करीब 80 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है.खेती-किसानी में मुसलमानों की संख्या 95 फीसदी से ज्यादा है, खासकर पपीते की खेती में यहां के छोटे-बड़े किसानों के पास एक कट्ठा से लेकर 15 बीघे तक जमीन है. जमीन पर पपीते के पौधे लगाए गए हैं. किसान मुहम्मद इरफान और गुलाम मुस्तफा के मुताबिक पूरे गांव में 70 हजार से ज्यादा पपीते के पेड़ लगाए गए हैं.
हालांकि, इसकी देखभाल करना आसान नहीं है क्योंकि बेमौसम बारिश, तूफान और ओलावृष्टि के कारण क्षेत्र को जंगली जानवरों और चोरों से सुरक्षित रखने के लिए कड़ी निगरानी और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है.किसान इरफान ने 23 कट्ठा जमीन पर देसी प्रजाति का पपीता लगाया हुआ है. इसकी खूब डिमांड हो रही है. गया के मार्केट में यह आसानी से 35-40 रुपये प्रति किलो थोक भाव में बिक जाता है.
जबकि 23 कट्ठा में लगभग 1500 क्विंटल पपीता का उत्पादन होता है. इरफान पेशे से एसी मैकेनिक भी हैं. इरफान ने बताया कि उनके पिता ने 25 साल पहले पपीता की खेती शुरू की थी. शुरुआत में खेत की मेढ़ पर पपीता के पौधे लगाए थे. इससे अच्छी आमदनी हुई, तो धीरे धीरे रकबा बढ़ता गया और आज हम 23 कट्ठा जमीन पर पपीता की खेती कर रहे हैं. एक पौधे से 30-40 किलो पपीता का उत्पादन होता है.
इरफान के मुताबिक़ पपीता की खेती की अच्छी कमाई देखकर गांव के अन्य किसानों ने भी ट्रेंड बदला है और वह पपीता की खेती से जुड़ गये हैं. आज गांव के 50 से अधिक किसान इसकी खेती करते हैं. उनका कहना है कि हमारा गांव जिले का एकमात्र गांव हैं,जहां बडे़ स्तर पर पपीता की बागवानी की जाती है. इरफान ने बताया कि भदेजा का यह लोकल पपीता काफी मीठा है. पपीता तैयार होने में लगभग एक साल लग जाता है. गया का जलवायु भी इसकी खेती के लिए कारगर है. अगस्त सितंबर महीने में नर्सरी तैयार होने के बाद इसकी रोपाई की जाती है और लगभग दो साल तक इसमें फल आता है.
यहां के पपीता की राष्ट्रीय स्तर पर मांग
यहां का पपीता राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है और इसका मासिक व्यापार 40 लाख तक का होता है. बिहार राज्य के गया जिले के भदेजा गांव ने पपीते के बागानों और खेती के लिए एक नई पहचान बनाई है. गांव में 70,000 से अधिक पपीते के पेड़ हैं. शुरुआत के दिनों में एक दो किसान ही पपीता की खेती करते थे, लेकिन आज यहां 50 से अधिक किसान इसकी खेती से जुड़ गए हैं.
दिलचस्प बात यह है कि पपीते के खेती का मालिकाना हक किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि गांव के कई किसानों का है जो अपनी जमीन पर पपीते की खेती कर लाखों कमाते हैं.भदेजा गांव के पपीते की सप्लाई जिले के अलावा अन्य जगहों पर होती है.त्योहार के मौके पर खासकर रमजान और नवरात्र के मौके पर दूसरे राज्यों में भी सप्लाई होती है.इसके ताजिर बाग से भी सीधे खरीद करते हैं.
यहां का पपीता मशहूर है और यह काफी मीठा भी होता है. इसकी खेती से किसान आत्मनिर्भर हो गए हैं. पपीता एक ऐसा फल है जिसे हर किसी ने खाया होगा.इसके कई फायदे हैं और यह फल बेहद स्वादिष्ट होता है.देसी पपीता इसलिए भी लोकप्रिय है क्योंकि इसकी खेती में बहुत कम उर्वरक आदि का उपयोग होता है. जी हां, पपीता स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ फायदेमंद भी होता है.फल और इसका उपयोग कई बीमारियों में किया जाता है.पपीता हृदय, त्वचा और हड्डियों की धमनियों को मजबूत करने,बालों को मजबूत बनाने और पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में भी सहायक होता है.
मेहनत के साथ अच्छा मुनाफा भी
इरफान ने बताया कि इसकी खेती में मेहनत ज्यादा लगती है. समय-समय पर इसमें दवाई का छिड़काव करना होता है. गर्मी के दिनों में हर तीन से चार दिन में पटवन किया जाता है. साथ ही इस बात का ध्यान रखना होता है कि खेत में पानी जमा न हो, इससे फसल के नुकसान होने का ख़तरा बढ़ जाता है.साथ ही बताया कि वह बगैर किसी सरकारी मदद के इसकी खेती कर रहे हैं और किसी तरह के नुकसान होने पर कोई सहायता नहीं मिलती है.
हालांकि हम पपीता की खेती से हर साल पांच लाख का मुनाफा कमा लेते हैं.ठंड के मौसम में भी किसानों को पपीते की देखभाल के लिए खेत में रात गुजारनी पड़ती है. इसके लिए किसानों ने अपने बगीचे में मचिरी की लकड़ी का एक टॉवर जैसा बिस्तर बनाया है. जिस पर वे रात बिताते हैं. अपने स्वयं के बगीचे, पपीते के बागान और खेती में रहने और देखरेख करने के लिए विशिष्ट वातावरण होना चाहिए. मुहम्मद इरफान बताते हैं कि पपीते की खेती फायदेमंद है क्योंकि अगर इसकी सही से देखभाल की जाए और सफेद कीड़े न लगें तो एक पेड़ से एक क्विंटल तक फल मिलता है.
पपीते का वजन 1 किलो से लेकर 5 किग्रा.तक होता है. मुहम्मद इरफान के मुताबिक, पौधे की खेती बारिश के मौसम में की जाती है. फिर पौधा तैयार होने के बाद उसे उखाड़कर रोपाई की जाती है.पौधे का निचला हिस्सा मिट्टी से उठाकर एक जल निकासी नाली बनाई जाती है.जिसके बाद कई बार सिंचाई की जाती है.खाद का उपयोग उर्वरक के रूप में भी किया जाता है.
पूरे वर्ष पौधे विकसित होते हैं और फल देते हैं और पपीते की खेती सर्दियों के मौसम में तैयार होती है. एक बार पेड़ लगाने पर कम से कम दो साल तक फल मिलता है.यहां के किसानों की मानें तो उन्हें कृषि विभाग से कोई मदद नहीं मिलती.जिस साल फसल खराब होती है.उन्हें बड़ा आर्थिक नुकसान होता है, लेकिन इसका कोई मुआवजा नहीं मिलता किसान ग़ुलाम मुस्तफ़ा कहते हैं कि आने वाले वर्षों में उम्मीद है कि पपीता की खेती में वृद्धि होगी.इसका मुख्य कारण यह है कि शिक्षित युवा भी अपनी पुरानी आजीविका खेती की ओर लौट आए हैं.