सलमान और अनुष्का को दांव-पेंच सिखाने वाली शबनम शेख कुश्ती की हैं महारथी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-02-2024
Shabnam Sheikh, who taught tricks to Salman and Anushka, is a wrestling expert.
Shabnam Sheikh, who taught tricks to Salman and Anushka, is a wrestling expert.

 

छाया कावेरी

जब एक लड़की उसके जेंडर को अपनी हार नही बनने देती तब 'लडकी कुश्ती जैसा मैदानी खेल नहीं खेल सकती...', 'लड़कियों को बिना परदे के बाहर नहीं जाना चाहिये...', 'अधिक पढाई करके एक लड़की क्या करेंगी, उसका क्या फायदा...' इन जैसी कई दीवारें टूटने लगती हैं.ऐसे सवाल पूछने से समाज डरता है.हाँ! डरता ही हैं! क्योंकि, जब वह समाज से नहीं डरती तब समाज उससे डरने लग जाता है.ऐसी ही कहानी है आंबीजलगांव (तालुका : कर्जत, जिला : अहमदनगर) की शबनम शब्बीर शेख की, जो देश में कुश्ती के मैदान की योद्धा मानी जाती हैं.

शबनम का जन्म 27 जून 1996 को जम्मू में हुआ.पिता शब्बीर साराभाई शेख सेना में अधिकारी थे, जबकि मां रिजवाना बेगम गृहस्ती देखती थीं.शबनम तीन भाई-बहनों में तीसरी संतान हैं.शबनम के पिता शुरू से चाहते थे कि उनकी बेटी बहादुर, आत्मनिर्भर बने.मानवीय रूढ़ियों को तोड़े.

ऐसा रहा कुश्ती में पीएचडी तक का सफर

अपने अब्बू के ट्रांसफर के कारण शबनम ने अपनी स्कूली शिक्षा अंबाला (पंजाब), उधमपुर (जम्मू-कश्मीर), श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) और अहमदाबाद (गुजरात) के आर्मी स्कूलों से प्राप्त की.पिता के सेवानिवृत्त के बाद शबनम ने आंबीजळगाव के 'न्यू इंग्लिश स्कूल' से पढ़ाई की.

बाद में उन्होंने कर्जत के 'दादा पाटिल कॉलेज' में 11वीं कक्षा में विज्ञान विभाग में प्रवेश लिया.हालांकि, छोटे से गाँव आंबीजळगाव से कर्जत जाने वाली बसेस की तादाद कम थी.इसके चलते शबनम को कॉलेज की पढ़ाई में दिक्कत आने लगीं. हालाँकि, पिता का इरादा लड़की को हर हाल में पढ़ाने का था.शिक्षा के दौरान भी शबनम ने कुश्ती का अभ्यास जारी रखा.

शब्बीर शेख की शुरू से इच्छा थी कि परिवार की महिलाओं और लड़कियों को तालीम मिले. वे शिक्षित हों.इसके चलते, शब्बीर ने शबनम की मां रिजवाना बेगम को शादी के बाद एमएससी करवाया.

शबनम आगे की पढ़ाई के लिए औरंगाबाद (संभाजीनगर) पहुंची. उन्होंने वहां पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी से बीपीई (बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन) की पढ़ाई पूरी की.इसके बाद उन्होंने पंजाब के 'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पटियाला' से कोचिंग डिप्लोमा पूरा किया.

औरंगाबाद के 'डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय' से उन्होंने एमपीएड (मास्टर ऑफ फिजिकल एजुकेशन) की पढाई की-इसके बाद उन्होंने पीएचडी में प्रवेश पाने के लिए 'पीईटी' परीक्षा दी-

एक ओर जहां समाज की कई लड़कियां हिजाब पहनने के बाद घर के बाहर निकलती है, शबनम रेसलिंग, कें पोशाक में सात साल की उम्र से कुश्ती कर रही हैं.उनके पिता स्वयं कुस्ती की ट्रेनिंग दिया करते थे.शबनम कहती है, “'मेरे अब्बू ही मेरे पहले गुरु हैं.”

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घर से मिली कुश्ती की विरासत

शबनम के दादा सदरभाई शेख इलाके के मशहूर पहलवान थे.शबनम के परदादा भी पहलवान थे.उनके समय से ही घर में कुश्ती का अखाड़ा था.शबनम का बचपन अपने दादा, पिता, चाचा और बड़े भाइयों को मिट्टी में कुश्ती का अभ्यास करते बीता.उस अखाड़ा में इलाके के अन्य पुरुष भी अभ्यास करने आते थे.

खेलनी पड़ी कबड्डी, और कहना पड़ा अलविदा

'महिला पहलवान' बनने के लिए शबनम को अपने रिश्तेदारों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा.कुश्ती के पोशाक को लेकर लोग उन्हें और उनके परिवार से अपनी नाराजगी ज़ाहिर किया करते.

शबनम ने खेल के क्षेत्र में सीधे तौर पर कुश्ती से नहीं बल्कि कबड्डी के खेल से शुरुआत की. कबड्डी के साथ अपने अनुभव के बारे में बात करते हुए हैं, "शुरुआत में मैंने कबड्डी में हात आजमाया.

यह खेल सांघिक होने की वजह से कई बार मुझे मौका नहीं मिलता था.जब मैं अपने भाइयों को कुश्ती करते देखती, तो सोचती अगर मैं कुश्ती लड़ूँ तो जीत सकती हूं, यही मेरी जीत होगी.अगर मैं हार भी गई, तो नाकामी भी मेरी होगी... मैंने अपने पिता से कुश्ती लड़ने की इच्छा व्यक्त की.उन्होंने मेरी इच्छा पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।.

तब शुरू हुआ जीत का सिलसिला

शबनम के पिता की एक शर्त थी.वो ये कि, 'पहले दो साल तक शबनम सिर्फ प्रैक्टिस करे.फिर तैयारी के साथ मैदान में उतरे.' शबनम ने पिता और दो बड़े भाइयों के मार्गदर्शन में अपनी प्रैक्टिस शुरू की.

भाइयों के साथ रोज सुबह चार बजे दस किलोमीटर दूर अपने खेत से नींबू लाने की कम्पीटीशन शुरू हो गई.कुश्ती की बारीकियां सीखी और दो साल बाद लुधियाना (पंजाब) में अपनी पहली कम्पीटीशन खेली.वह टूर्नामेंट में दूसरे स्थान पर रही.यहीं से उन्होंने जीत का सिलसिला शुरू किया.

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दस साल की उम्र में कम्पीटीशन के लिए किया सफर

शबनम बताती हैं, "एक बार मेरे गांव में, मेरे अब्बू को दिल्ली में एक कम्पीटीशन के बारे में पता चला.तब मै महज 10 साल की थी.उन्होंने मुझे पता लिखा हुआ एक कागज और ट्रेन का टिकट दिया और मुझे सफर के लिए शुभकामनाएं दीं.

उस वक्त मेरे मन में सवाल आते थे,'मेरे माता-पिता मेरे साथ क्यों नहीं आते?' लेकिन मेरे पिता मुझे हमेशा कहा करते थे कि, जीवन में कुछ लड़ाइयाँ अकेले लड़नी पड़ती हैं.'' 

शबनम बनी पहली 'महाराष्ट्र केसरी'

शबनम ने 2010 में आयोजित ' महिला महाराष्ट्र केसरी' का खिताब जीता.उन्होंने 2009 से लगातार तीन साल 'शिर्डी केसरी' में स्वर्ण पदक, 2011 में 'लातूर' में स्वर्ण पदक, लगातार छह वर्षों तक 'महाराष्ट्र राज्य कुस्तीगीर परिषद' प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता है.

उन्होंने चार अंतर-विश्वविद्यालय प्रतियोगिताओं, 10 राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं और 15 से अधिक राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भी भाग लिया है.राष्ट्रीय स्तर की 'महान भारतकुमारी कुश्ती प्रतियोगिता' में शबनम केवल मुस्लिम समुदाय से नही,महाराष्ट्र से भी पहली विजेता हैं.उन्होंने अपने खेल से केवल राज्य स्तर ही नहीं, देश और दुनिया की कम्पीटीशन जीते है.

माँ बाप का भरपूर साथ

शबनम तरक्कीपसंद लड़की है.उसे पारम्परिक रिवाज रास नहीं आते.जैसे परदा करना.उनके पिता उनसे कहते: "तुम्हें इस बाहरी परदे की ज़रूरत नहीं.अच्छे और बुरे लोगों के बीच अंतर करने वाला परदा हमेशा नज़र के सामने रखना!".

 शबनम कहती हैं, "लोग मेरे माँ-बाप से सवाल किया करते थे. एक लड़की को कुश्ती जैसे खेल नहीं खेलना चाहिए. उसे रोज़ा रखना सिखाओ.उसे इबादत करना सिखाओ. कुश्ती खेलने के लिए क्या तुम्हे लडके नहीं हैं, जैसे सैंकड़ो सवाल पूछा करते.लेकिन मेरे वालिदैनने समाज का प्रेशर मेरे ऊपर नहींआने दिया.

न कभी उन्होंने समाज के दबाव में अपनी राय बदली.कभी इन बातो का असर मेरे खेल पर नहीं पड़ने दिया.मुझे हमेशा मेरे माता-पिता और अपने बड़े भाइयों का समर्थन मिला.”

मैं बेटी को उसके सारे अधिकार दूंगी...

शबनम की मां रिजवाना बेगम कहती हैं, "मेरे दो नहीं, बल्कि तीन 'बेटे' हैं! मेरे भाइयों ने मुझे हमारे माँ-बाप की जायदाद का हिस्सा नहीं दिया.लेकिन, मैं अपनी बेटी - शबनम के साथ यह अन्याय नहीं होने दूंगी.उसका अधिकार एक बेटी के रूप में, मैं उसे वह सब कुछ दूंगी जिसकी वह हकदार है.शबनम ने पूरे देश में हमारा नाम ऊंचा किया है.एक मां के रूप में मुझे उस पर हमेशा गर्व रहेगा." 

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कुश्ती में पीएच.डी पाने वाली पहली महिला

शबनम ने पीएचडी के लिए 'महाराष्ट्र में ग्रामीण और शहरी महिला पहलवानों की भावनात्मक परिपक्वता का तुलनात्मक अध्ययन विषय चुना.उन्होंने पूरे राज्य का भ्रमण किया.इस विषय पर गहन शोध किया.

आज शबनम 'कुश्ती' खेल में पी.एच.डी. (डॉक्टरेट) करने वाली भारत की पहली महिला बन गई हैं.'कुश्ती' में पीएचडी करते समय अक्सर शबनम को जानबूझ कर शर्मिंदा करने की कोशिश की जाती थी.

उन्हें यह पीएचडी न मिल पाए. हालांकि शबनम बिना डगमगाए हर बार अपनी बात पे मजबूती से डटी रही.इसके चलते शबनम यह खिताब पाने वाली एकमात्र 'यंगेस्ट महिला पहलवान' बन गईं. 

अभी क्या कर रही है शबनम

साल 2017 में शबनम को भारत के 'कुश्ती महिला संघ' के जूनियर कोच के रूप में चुना गया था.फिल्म 'सुल्तान' के लिए अनुष्का शर्मा और सलमान खान को कुश्ती की ट्रेनिंग दी.शबनम कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.

वर्तमान में भारत के 'कुश्ती महिला संघ' में 'वरिष्ठ प्रशिक्षक' के रूप में काम करती हैं.भारत को अब तक 'विश्व महिला कुश्ती प्रतियोगिता' में कभी सफलता नहीं मिली थी.हालांकि, 2023 में आयोजित 'अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप' में शबनम के मार्गदर्शन में देश ने 'महिला कुश्ती' में कुल सात पदक जीते.इनमें से तीन स्वर्ण पदक हैं.डॉ. शबनम शेख को आज 'इंटरनेशनल रेसलिंग-कोच' के नाम से जाना जाता है.

आज भी करना पड़ता है कठिनाइयों का सामना

शबनम कहती हैं, "मुझे पिछले साल गुजरात में आयोजित राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए 'महाराष्ट्र टीम' के कोच के रूप में चुना गया था.चौबीस घंटे पहले मेरा नाम रद्द कर दिया गया! , मुझे इस बारे में कोई आईडिया नहीं दी गई थी.

बाद में मुझे पता चला कि हाय  कमेटी   ने मेरा नाम रद्द कर मेरी जगह कमेटी के करीबी व्यक्ति का नाम जोड़ दिया.आज भी कई बार ऐसा होता है.कई जगहों पे मै हकदार होते हुए भी मुझे मौका नहीं दिया जाता.; क्योंकि मैं आत्मसम्मान के साथ जीती हूं! जब कोई मुझसे यह पूछता है कि, 'तुम्हें यह सब कैसे मिला?' तो मैं उन्हें गर्व से बता सकती हूं कि, 'मैंने इसे अपनी मेहनत से कमाया है.'

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कुश्ती अभिशाप या वरदान?

शबनम कहती हैं, "कुश्ती ने मुझे पहचान दी. कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है, 'क्या कुश्ती मेरे लिए अभिशाप है या वरदान?' शुरू में रिश्तेदार, समाज के अन्य लोग मुझे कुश्ती करते देख नफरत करते थे.

बाद में जब प्रतियोगिताएं जीतना शुरू किया, तो लोग मेरी सफलता की खबर विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने 'स्टेटस' पर पोस्ट करते और कैप्शन लिखते, 'हमारी बहन को या रिश्तेदार को बधाई और शुभकामनाएं'.

मेरे जीतने की खबर पढ़ने के बाद, मैं उस समय सबकी रिश्तेदार हो जाती थी! लेकिन, वे अब भी मेरी पीठ पीछे कुश्ती का विरोध करते हैं! केवल आज वे मेरे सामने सीधे बोलने से झिझकते हैं!"

शबनम कहती हैं, "ज्यादातर समय मुझे शादी के लिए खारिज कर दिया जाता है.मैं कुश्ती खेलती हूं.जो लोग मुझे शादी के लिए देखने आते हैं, वे मेरी ट्रॉफियां देखते हैं और मेरे नाम के आगे 'डॉक्टर' लिखा देखते है, बाद में जब वे घर जाते हैं तब उनका जवाब आता है, 'हमें इतनी पढ़ी-लिखी लड़की नहीं चाहिए.'"      

फिर भी शबनम बिना निराश हुए लगातार अपने काम को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं. भविष्य में अन्य लड़कियों को ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े इसके लिए कड़ी मेहनत कर रही है.शबनम युवाओं को सलाह देती हैं कि चाहे कुछ भी हो, थकना मत.लड़ाई छोड़ना नहीं.उनका सपना लड़कियों के लिए एक कुश्ती सेंटर बनाने का है.

जिन्दगी की कई मुश्किलों से कुश्ती कर उनपर फतह पाने की शबनम की ये कहानी सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान और आँखों में जीत की झलक दिखती है.उनकी बातें धैर्य दर्शाती हैं.उनसे बात करने पर उनकी सकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर में भी तरंगित होने लगती है.