क्यों हैं सूफी गायक शंभू का गाना गरीब नवाज की शान में सजदा करने वालों की पहली पसंद

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 23-07-2023
क्यों हैं हिंदू सूफी गायक शंभू का गाना गरीब नवाज की शान में सजदा करने वालों की पहली पसंद
क्यों हैं हिंदू सूफी गायक शंभू का गाना गरीब नवाज की शान में सजदा करने वालों की पहली पसंद

 

मंजूर जहूर/नई दिल्ली 

मध्य प्रदेश के ग्वालियर के 60 वर्षीय हिंदू सूफी गायक और डफली वादक शंभू सोनी ने राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर ख्वाजा को मानने वालों का दिल मोह लिया है. एक अलग धार्मिक पृष्ठभूमि से होने के बावजूद, शंभू की ख्वाजा गरीब नवाज के प्रति भक्ति और प्रेम ने उन्हें गरीब नवाज की शान में सजदा करने वालों से सम्मान और प्रशंसा मिल रही है.
 
इस खास लेख में आप जानेंगें शंभू सोनी की प्रेरक यात्रा जिसने उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज का मुरीद बना दिया.
 
 
ग्वालियर में एक साधारण परिवार में जन्मे शंभू सोनी का पालन-पोषण साधारण माहौल में हुआ. उनके पिता एक छोटे दुकानदार थे और सरल साधनों के बावजूद, शंभू को छोटी उम्र से ही सूफी संगीत का शौक था. उनकी संगीत प्रतिभा स्पष्ट थी और उन्होंने गायन और पारंपरिक सूफी संगीत वाद्ययंत्र डफली बजाने के अपने जुनून को आगे बढ़ाने का फैसला किया.
 
शंभू ने "आवाज द वाॅयस" से कहा कि '30 साल की उम्र में मैंने भारत के सबसे सम्मानित सूफी संतों में से एक, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के घर अजमेर जाने का जीवन बदलने वाला निर्णय लिया.
 
तब से मैं हर सुबह दो घंटे के लिए दरगाह पर 'पयेट्री' साइड पर कव्वाली प्रस्तुत कर रहा हूं. इन वर्षों में वह दरगाह के आध्यात्मिक माहौल का एक अभिन्न अंग बन गए हैं और उनके भावपूर्ण प्रदर्शन ने अनगिनत लोगों के दिलों को छू लिया.
 
हिंदू आस्था से संबंधित होने के बावजूद, शंभू सोनी की ख्वाजा गरीब नवाज  में उनका सच्चा विश्वास है. उनका विश्वास धार्मिक सीमाओं से परे है और वह दरगाह को आध्यात्मिक एकता और सद्भाव के एक पवित्र स्थान के रूप में देखते हैं.
 
शंभू की आस्था धार्मिक मतभेदों से बंधी नहीं है. बल्कि यह सूफीवाद की समावेशी और सार्वभौमिक प्रकृति का एक प्रमाण है जो संपूर्ण मानवता की एकता पर जोर देता है. अपने भाव-विभोर करने वाले प्रदर्शन के माध्यम से शंभू सोनी ने प्रेम, शांति और भाईचारे के संदेश को बढ़ावा देते हुए, धर्मों के बीच की खाई को पाट दिया है.
 
सूफी कव्वालियों की उनकी प्रस्तुति सभी धर्मों के भक्तों को प्रभावित करती है, जिससे विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के बीच आध्यात्मिक जुड़ाव और समझ की भावना पैदा होती है.
 
shankar shambhu
 
दरगाह पर शंभू सोनी की उपस्थिति और प्रदर्शन ने एक खास प्रभाव छोड़ा. सूफी संगीत के प्रति उनके समर्पण और ख्वाजा गरीब नवाज के प्रति उनकी इबादत ने उन्हें दरगाह में आने वाले लोगों का प्यार और सम्मान दिलाया है. गरीब नवाज को मानने वालों को उनके संगीत में सांत्वना और प्रेरणा मिलती है, क्योंकि यह उन्हें अपने भीतर से जुड़ने और आध्यात्मिकता की गहरी भावना का अनुभव करने की अनुमति देता है.
 
दरगाह के संरक्षकों (खुदाम) ने भी दरगाह के आध्यात्मिक माहौल में शंभू सोनी के योगदान को स्वीकार किया है और उसकी सराहना की है. वे उनकी गायकी की ईमानदारी और प्रामाणिकता को पहचानते हैं, जो धार्मिक सीमाओं से परे है और सूफीवाद के सार का उदाहरण है. शंभू का अपनी कला के प्रति समर्पण और ख्वाजा गरीब नवाज के प्रति उनकी अकादित ने उन्हें संरक्षकों के बीच एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बना दिया है.
 
नौशाद अली की कहानी
 
शंभू सोनी के अलावा, उत्तर प्रदेश के कानपुर के एक युवा मुस्लिम गायक नौशाद अली की कहानी, दरगाह में समावेशिता और एकता की एक और परत जोड़ती है. पेशे से प्रॉपर्टी डीलर नौशाद दरगाह के शाहजहां मस्जिद मैदान में देशभक्ति और सार्वभौमिक भाईचारे के गीत प्रस्तुत करते हैं.
 
उनका संगीत भक्तों के बीच गूंजता है और वह भी शांति और सद्भाव के संदेश पर जोर देते हैं. नौशाद को वहां से जो भी 'नजराना' (धन) मिलता है उसे वो जरूरतमंदों के बीच वितरित करते हैं जिसे वो ख्वाजा गरीब नवाज की शिक्षाओं का उदाहरण मानते है, जिन्होंने मानवता के लिए करुणा और सेवा पर जोर दिया था.
 
 
हिंदू सूफी गायक शंभू सोनी और नौशाद अली की समावेशी भावना इस बात के ज्वलंत उदाहरण हैं कि कैसे आध्यात्मिकता धार्मिक सीमाओं को पार कर सकती है और लोगों को शांति और सद्भाव की साझा यात्रा में एकजुट कर सकती है.
 
अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर उनका प्रदर्शन सूफीवाद के सार का प्रतीक है - एक ऐसा मार्ग जो प्रेम, करुणा और सभी प्राणियों की एकता को गले लगाता है. ये कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि सच्ची आस्था की कोई सीमा नहीं होती और संगीत में विविध समुदायों के बीच समझ और एकता का पुल बनाने की शक्ति है.
 
अक्सर मतभेदों से विभाजित दुनिया में, शंभू सोनी और नौशाद अली की कहानियाँ अधिक सामंजस्यपूर्ण और समावेशी भविष्य के लिए आशा और प्रेरणा की किरण के रूप में काम करती हैं.