सालबेग मजार पर क्यों रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ, मुस्लिम भक्त सालबेग की दिलचस्प कहानी

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 25-05-2024
The interesting story of Lord Jagannath and his Muslim devotee Sala Bega
The interesting story of Lord Jagannath and his Muslim devotee Sala Bega

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया को भगवान जगन्‍नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं. पुरी में जगन्‍नाथ मंदिर से 3 सजेधजे रथ रवाना होते हैं. इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्‍नाथजी का रथ होता है. यात्रा के दौरान भगवान जगन्‍नाथ का रथ एक मुस्लिम भक्‍त सालबेग की मजार पर कुछ देर के लिए जरूर रुकता है.

 
पुराने किस्‍से कहानियों में बताया गया है कि एक बार जगन्‍नाथजी का यह मुस्लिम भक्‍त सालबेग अपने भगवान के दर्शन करने के लिए मंदिर नहीं पहुंच सका था. फिर उसके मरने के बाद जब उसकी मजार बनी जो जगन्‍नाथजी का रथ खुदबखुद उसकी मजार पर रुक गया और कुछ देर के लिए आगे नहीं बढ़ पाया. फिर उस मुस्लिम सालबेग की आत्‍मा के लिए शांति प्रार्थना की गई तो उसके बाद रथ आगे बढ़ पाया. तब से हर साल रथयात्रा के दौरान रास्‍ते में पड़ने वाली सालबेग की मजार पर जगन्‍नाथजी का रथ जरूर रुकता है.
 
भगवान जगन्नाथ और सालबेग की कहानी
 
17 वीं सदी में, जहाँगीर कुली खान लालबेग, जिन्हें लालबेग के नाम से भी जाना जाता है, मुगल सम्राट जहांगीर के शासनकाल (1607-1608) के दौरान बंगाल के सूबेदार थे. ओडिशा में एक सैन्य भ्रमण के दौरान उनकी मुलाकात स्नान से लौट रही एक सुंदर ब्राह्मण महिला से हुई.
 
वह विधवा थी, लेकिन लालबेग उसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध होकर उसे अपने घर वापस ले गया. दोनों में प्यार हो गया और उन्हें एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने सालबेग रखा. यहीं पर किंवदंती एक दिलचस्प मोड़ लेती है. जैसे ही वह बड़ा हुआ, सालबेग अपने पिता के अभियानों में शामिल हो गया.
 
दुर्भाग्यवश, लालबेग युद्ध में मारा गया और सालबेग गंभीर रूप से घायल हो गया. भगवान जगन्नाथ की भक्त उनकी माँ ने उनके बचने के लिए प्रार्थना की और उनके बेटे ने असाधारण रूप से स्वस्थ होकर जीवनयापन किया. इस चमत्कार ने साला बेगा को भगवान जगन्नाथ का परम भक्त बना दिया.
 
 
ऐसे जगन्नाथ के भक्त बन गए सालबेग 
 
सालबेग भगवान विष्णु की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने अपनी मां से जगन्नाथ के बारे में सीखा. उनकी लगन उन्हें पुरी ले गयी, लेकिन मुस्लिम आस्था के कारण उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया. इससे विचलित हुए बिना, सालबेग ने वृंदावन की पैदल तीर्थयात्रा की और साधुओं की संगति में एक तपस्वी का जीवन व्यतीत किया. ऐसा कहा जाता है कि वह कृष्ण के सम्मान में भजन गाते थे. फिर भी, वह भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए लालायित थे. 
 
किंवदंती के अनुसार, यात्रा में भाग लेने के लिए ओडिशा लौटते समय साला बेगा बीमार पड़ गए. उन्होंने भगवान जगन्नाथ से दर्शन देने की प्रार्थना की. रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर की ओर अपनी वार्षिक यात्रा शुरू कर चुकी थी, तभी अचानक रथ सालबेग की झोपड़ी के सामने रुक गया. यह आगे नहीं बढ़ा.
 
मुस्लिम भक्त के दर्शन करने के बाद ही रथ अपनी यात्रा पर आगे बढ़ा. उस पहली बार, कोई भी यह नहीं बता सका कि क्या हुआ, सिवाय इसके कि यह अनुमान लगाया जा सके कि ईश्वरीय हस्तक्षेप ने अंतरधार्मिक सद्भाव के उस क्षण को व्यवस्थित किया था.
 
 
किंवदंती के अनुसार जब रथ ने सालबेग के घर के सामने अपना अलिखित पड़ाव डाला, तो पुरी के राजा और मंदिर के पुजारी चिंतित हो गए. तभी मुख्य पुजारी को स्वप्न आया जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने प्रिय बालक की प्रतीक्षा करते हुए दिखाई दिए. यह सालबेग के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था.
 
घटना के बाद मंदिर के पुजारियों ने सात दिनों तक रथ पर ही सभी अनुष्ठान संपन्न किये. सातवें दिन के अंत में जगन्नाथ का एक मुस्लिम भक्त दर्शन के लिए पहुंचा. इस बार, किसी ने भी सालबेग को भगवान को सम्मान देने से नहीं रोका.
 
 
सालबेग को 17वीं शताब्दी की शुरुआत के सबसे महान ओडिया धार्मिक कवियों में से एक के रूप में याद किया जाता है.
 
हालाँकि वे जन्म से मुसलमान थे, लेकिन भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी भक्ति और उनके द्वारा लिखे गए भजनों ने उन्हें हिंदू देवता के लिए भक्ति संगीत के क्षेत्र में अमर बना दिया. उनके भजन आज भी गाए जाते हैं और उनकी कहानी सभी धर्मों के लोगों के लिए प्रेरणा है .
 
अब हर साल रथ सालबेग की मजार के सामने रुकता है. यह सरल कार्य इस बात का एक गहरा उदाहरण है कि कैसे मनुष्य और ईश्वर के बीच अटूट विश्वास जाति, पंथ और धर्म के विभाजन को दूर कर सकता है.