देहली में गुम बिजनौरी बुजुर्ग जलालुद्दीन के लिए फरिश्ते बने पवन शर्मा, बोले मैं हिंदू नहीं, हिंदुस्तानी हूं

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 03-05-2024
Pawan Sharma with Jalaluddin
Pawan Sharma with Jalaluddin

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली

 

बिजनौर के एक बुजुर्ग जलालुद्दीन दिल्ली के कश्मीरी गेट स्थित अंतर्राज्यीय बस अड्डे पर बदहवासी में भटक रहे थे. उन्हें यह भी याद नहीं आ रहा था कि जाना कहां है, तब पवन कुमार शर्मा नाम के एक युवक ने उनका हाल जाना और उनकी कहानी के सिरों को जोड़कर बताया कि उन्हें बिजनौर जाना है. उनके पास किराए के लिए पैसे नहीं थे, तो पवन शर्मा ने उन्हें टिकट भी खरीदकर दी.

पेशे से एक लेखक पवन शर्मा ने यह कहानी अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट की है. शर्मा ने लिखा, ‘‘मेरे साथ तस्वीर में दिख रहे बुजुर्ग का नाम जलालुद्दीन है. ये 85 वर्ष के हैं और बिजनौर यूपी के रहने वाले हैं,,,, आज कश्मीरी गेट स्थित आईएसबीटी पर इन्हें फूट-फूट कर रोते हुए देखा तो रहा न गया. मैं इनके पास गया और इनसे पूछा कि बाबा क्या हो गया,,, उनकी आंखों में बेहद दर्द था,,,,उन्हें चुप कराया और पानी पीने को दिया,,,इसके बाद वो बोले मेरा बेटा दुर्घटना में चल बसा है,,, मुझे उसके पास जाना है, अंतिम बार उसका चेहरा देखना चाहता हूं. वो कुछ दिन पहले उनकी पत्नी को उपचार के लिए अरविंद अस्पताल में लाए थे,,, बेटा कहकर गया था कि अब्बू मैं पैसों का इंतजाम करने वापस बिजनौर जा रहा हूं. आप अम्मी का ख्याल रखना,,, आज सुबह गांव से फोन आया कि मेरा बेटा दुर्घटना में चल बसा. पत्नी को अस्पताल में अकेला छोड़ कर गांव जा रहा हूं,,,,मगर,,,, इतना बोलते ही वो अल्लाह का नाम लेते हुए फिर से रोने लगे,,,, मैंने उन्हें चुप कराया और पूछा कि समस्या क्या है,,, आप अपने बेटे के पास जा क्यों नहीं रहे,,, कहो तो बस तक आपको छोड़ आता हूं,,, उन्होंने कहा इसी तरह बस तक छोड़ने के लिए सिक्योरिटी वाले ने भी पूछा था,,, मैंने कहा तो फिर उसे बताया, क्यों नहीं,,,उनकी आंख से आंसू बह रहे थे,,,,जलालुद्दीन ने कहा कि बेटा मुझे याद नहीं आ रहा कि मुझे बस कहां की पकड़नी है,,, टेंशन में भूल गया हूं. मैंने कहा कि अरे आपने ही तो बताया कि बेटा बिजनौर गया था आपके घर पैसे लाने के लिए,,,, इतना कहते ही बुजुर्ग जलालुद्दीन ने कहा हां मुझे वहीं तो जाना है,,, बेटा मुझे उस बस में चढ़ा दे,,,अल्लाह तेरा भला करेगा,,, मैं उन्हें आईएसबीटी के काउंटर नंबर 8 पर ले गया,,, वहां उन्हें कुछ खीरे खाने को दिए,,,मैंने उन्हें बिजनौर की बस में चढ़ाया और वहां से चल दिया,,,,मन प्रसन्न था कि बुजुर्ग  की मदद करके,,,

वे आगे लिखते हैं, ‘‘मैं वहां से चलने ही वाला था कि देखा कि बस कंडक्टर ने उसे बस से उतार दिया,,, वो बुजुर्ग उनसे बस में बैठे रहने की विनती कर रहा था,,, मैं बस की और भागा और बस रुकवा दी,,, मैंने पूछा कि इन्हें बस से क्यों उतार रहे हो,,, कंडक्टर ने कहा कि इनके पास पैसे नहीं हैं,,,, मैंने कहा कि भाई मानवता के नाते इन्हें बिजनौर छोड़ दो,,,, मगर वो कंडक्टर नहीं माना,,, वो बोला 10-20 की बात होती, तो इन्हें बैठा भी लेता मगर बिजनौर का टिकट 280 रुपये का है,,, मैंने जेब में हाथ डाला, उसमें केवल 300 रुपये ही था,,, मैंने तुरंत बिजनौर का टिकट खरीद कर बुजुर्ग की जेब में डाल दिया,,,, बाबा अब आपको आपके मृत बेटे के अंतिम दर्शन से कोई नहीं रोक सकता,,, आप जाइये,,, बाबा बस में चढ़ गए,,, बस चली और कुछ दूर जाकर फिर रुक गईं,,, उसमें से कंडक्टर भागते हुए आया और 20 रुपये थमाते हुए कहा कि भाई भलाई का काम कर रहे हो, तो आपने बाकी पैसे तो ले लो,,, ये पैसे मैं लेना भूल गया था,,,, कंडक्टर ने कहा कि बाबा आपका नाम और नंबर मांग रहे हैं,,, ताकि आपको पैसे लौटा सकें,,, मैंने बस में जाकर बाबा को अपना पूरा नाम तो बताया,,, मगर नंबर नहीं,,,बुजुर्ग जलालुद्दीन ने कहा कि बेटा तुम हिन्दू हो,,,,, मैंने कहा - बाबा हिन्दू नहीं हिंदुस्तानी,,,, किसी की जात-धर्म नहीं देखनी चाहिए,,, बाबा के चेहरे पर खुशी थी,,, बोले तेरा ये अहसान मैं कैसे चुकाऊंगा,,, अल्लाह तुम्हे खुश रखे,, अपना नंबर तो बता दे बेटा,,,उनके अनुरोध को टालते हुए केवल इतना ही कहा कि जब कोई जरूरतमंद दिखे, तो उसकी जात-धर्म देखे बिना उसकी मदद कर देना,,, मेरा अहसान चुकता हो जाएगा.

शर्मा ने लिखा, ‘‘यह कहकर मैं बस से उतरा और बस बिजनौर की राह और मैं अपने अॉफिस की राह चल दिया,,, मन में अजीब खुशी लिए भगवान ने आज मुझे किसी के काम आने का मौका दिया,,,,,, मगर मेरा सभी से अनुरोध है कि बुजुर्ग लोगों को किसी भी स्थिति में अकेले यात्रा न करने दें,,, बेचारे याददाश्त कमजोर होने के कारण भटक सकते हैं और असहाय हो सकते हैं, जैसा कि आज मुझे जलालुद्दीन के रूप में देखने को मिला,,,, जय माता की.’’

 

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