दरगाहों में जगमगाई दिवाली: एक दीया रौशन करता है गंगा-जमुनी तहज़ीब

Story by  फिरदौस खान | Published by  [email protected] | Date 20-10-2025
Diwali shines in the dargahs: A lamp illuminates the Ganga-Jamuni culture
Diwali shines in the dargahs: A lamp illuminates the Ganga-Jamuni culture

 

डॉ. फ़िरदौस ख़ान  

दिवाली हिन्दुओं का बड़ा त्यौहार है. तीज-त्यौहार सबके सांझे होते हैं. जिस तरह ईद पर सिर्फ़ मुसलमान ही सेवइयां नहीं खाते, बल्कि अन्य मज़हबों के लोग भी सेवइयां खाते हैं और ईद की ख़ुशियों में शामिल होते हैं. इसी तरह दिवाली की ख़ुशियों में भी सभी मज़हबों के लोग शामिल होते हैं. इस मामले में बच्चे सबसे आगे रहते हैं. बहुत से मुस्लिम बच्चे भी मिट्टी के दियों वाले घर ख़रीदते हैं. वे भी बाज़ार से खील-बताशे और आतिशबाज़ी लाते हैं.

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दिवाली पर पारम्परिक मीठी चीज़ें भी ख़ूब मिलती हैं. खील के गुड़ वाले लड्डू, चने के लड्डू, खील और सौंफ़ वाले सफ़ेद लड्डू और पेठा आदि सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं. गांव-देहात में इनकी भारी मांग रहती है. इन्हें सब ख़रीदते हैं. बहुत से मुस्लिम घरों में रौशनी होती है, क्योंकि आसपास घर रौशनी से दमक रहे होते हैं, तो वे भी अपने घरों में अंधेरा नहीं रखते. अपने घर-आंगन की लाइट्स जलती हुई छोड़ देते हैं.

दिवाली की रौनक़ देखने लायक़ होती है. दिवाली पर मन्दिर ही नहीं सजते, बल्कि दरगाहों पर भी दिवाली की रात दीये जलाए जाते हैं. यह रिवायत सदियों से चली आ रही है. यह हमारी गंगा-जमुनी तहजीब की प्रतीक है. 

दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया

देश की राजधानी दिल्ली में स्थित हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह में दिवाली पर ख़ूब रौशनी की जाती है. दरगाह परिसर को बल्बों की झालरों से सजाया जाता है. दिवाली की रात में मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं. श्रद्धालु  मिट्टी के दीये, तेल और बाती लाते हैं और दरगाह में दीये रौशन करते हैं. फिर वे मिठाइयां बांटते हैं और एक दूसरे को दिवाली की मुबारकबाद देते हैं.

ख़ास बात यह भी है कि ये लोग यहां रौशन दियों में से एक दीया अपने साथ ले जाते हैं. इनका मानना है कि यह दीया हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का आशीर्वाद है. इसे घर में रखने से उनके यहां धन-धान्य में बढ़ोतरी होगी और समृद्धि आएगी. दिल्ली समेत देश की अन्य दरगाहों पर भी दिवाली पर रौशनी की जाती है.

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दरगाह हाजी अली

महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई के वर्ली तट के क़रीब एक टापू पर स्थित सैयद हाजी अली शाह बुख़ारी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह परिसर में भी दिवाली पर दीये जलाए जाते हैं. आपको हाजी अली के नाम से भी जाना जाता है. आप अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आल में से हैं. आपके मुरीदों में सभी मज़हबों के लोग शामिल हैं. वे लोग अपने अक़ीदे के मुताबिक़ आपके दर पर हाज़िर होते हैं और सबके साथ अपनी ख़ुशियां साझा करते हैं. वे दिवाली पर दरगाह परिसर को बिजली की झालरों से सजाते हैं. रात में मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं. बिजली के बल्बों और मिट्टी के दियों की रौशनी में दरगाह की ख़ूबसूरती देखने लायक़ होती है. यहां की सफ़ेद रंग की मस्जिद भी रौशनी से दमक उठती है. दिवाली पर यहां बहुत भीड़ रहती है.        

दरगाह देवा शरीफ़

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के देवा नामक क़स्बे में स्थित देवा शरीफ़ दरगाह में भी दिवाली पर दीये जलाए जाते हैं. यह हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह है. आप भी अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आल में से हैं. आपके वालिद क़ुर्बान अली शाह रहमतुल्लाह अलैह भी जाने-माने औलिया थे. हाजी वारिस अली शाह रहमतुल्लाह अलैह के मुरीदों में हिन्दुओं की भी बड़ी तादाद है. वे हर साल दिवाली पर दरगाह परिसर में रौशनी करते हैं और मिठाइयां भी बांटते हैं. दिवाली पर यहां का नज़ारा देखने लायक़ होता है.    

किछौछा शरीफ़ दरगाह

उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर ज़िले के क़स्बे अशरफ़पुर किछौछा में सुल्तान सैयद मख़दूम अशरफ़ जहांगीर सेमनानी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह परिसर में भी दिवाली पर ख़ूब रौशनी की जाती है. उनका जन्म ईरान के सेमन में हुआ था. उन्होंने हिन्दुस्तान में चिश्तिया सिलसिले को ख़ूब फैलाया. उनकी दरगाह पर सभी मज़हबों के लोग आते हैं. इसलिए यहां दिवाली का त्यौहार भी मनाया जाता है. दिवाली पर दरगाह को दुल्हन की तरह सजाया जाता है. रात में मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं, मोमबत्तियां जलाई जाती हैं और मिठाइयां भी बांटी जाती हैं.

दरगाह साबिर पाक

उत्तराखंड के रुड़की के कलियर शरीफ़ में हज़रत मख़दूम अलाउद्दीन अली अहमद रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह पर भी दिवाली पर रौशनी की जाती है. आपको साबिर पाक और साबिर पिया कलियरी के नाम से भी जाना जाता है. दिवाली पर यहां ज़ायरीनों की बहुत भीड़ होती है. दिवाली की रात में यह दरगाह रौशनी से दमक उठती है. हर तरफ़ मिट्टी के दियों और मोमबत्तियों की ख़ूबसूरत क़तारें नज़र आती हैं. लोग मिठाइयां बांटते हैं और एक-दूसरे को दिवाली की मुबारकबाद देते हैं.

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दरगाह ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती

राजस्थान के अजमेर में स्थित ख़्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह परिसर में भी दिवाली पर रौशनी की जाती है, दीये जलाए जाते हैं, मोमबत्तियां जलाई जाती हैं. ख़्वाजा भी अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आल में से हैं. आपने हिन्दुस्तान में सूफ़ीवाद के चिश्तिया सिलसिले को फैलाया. हज़रत इसहाक़ शामी रहमतुल्लाह अलैह द्वारा ईरान के शहर चश्त में शुरू हुआ यह सिलसिला दुनियाभर में फैला हुआ है. दिवाली के दिनों में यहां ज़ायरीनों की तादाद बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है.

दरगाह क़मरूद्दीन शाह दरगाह

राजस्थान के झुंझुनूं ज़िले में स्थित क़मरूद्दीन शाह की दरगाह भी दिवाली पर रौशनी से जगमगा उठती है. यह गंगा-जमुनी तहज़ीब की प्रतीक है. दिवाली पर दरगाह को ख़ूब सजाया जाता है. रात में बल्बों की रौशनी के साथ मिट्टी के दियों और मोमबत्ती की झिलमिलाती क़तारें भी बहुत ही ख़ूबसूरत लगती हैं. आतिशबाज़ी भी होती है और मिठाइयां भी बांटी जाती हैं. यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है.   

यहां के लोग बताते हैं कि हज़रत क़मरूद्दीन शाह की चंचलनाथ टीले के संत चंचलनाथ के साथ गहरी दोस्ती थी. क़मरूद्दीन शाह अपनी ख़ानकाह में इबादत में और चंचलनाथ अपने आश्रम में साधना में लीन रहते थे. जब उनका एक-दूसरे से मिलने का मन करता तो वे अपने-अपने स्थानों से बाहर आते और चल पड़ते. रास्ते में गुदड़ी बाज़ार में उनकी मुलाक़ात होती. उनकी दोस्ती बहुत मशहूर थी. दूर-दूर तलक इनकी चर्चा थी. यह दरगाह साम्प्रदायिक सद्भाव की ज़िन्दा मिसाल है.

दरगाह दावल शाह वली

मध्य प्रदेश के इंदौर में हज़रत दावल शाह वली की दरगाह है. यह लोबान की ख़ुशबू से महकती रहती है. दिवाली की रात यहां रौशनी की जाती है. हिन्दू श्रद्धालु दिवाली की रात में यहां दीये जलाकर मन्नतें मांगते हैं.

(लेखिका शायरा, कहानीकार और पत्रकार हैं)