आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
उच्चतम न्यायालय ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के माध्यम से राज्य सरकारों द्वारा गरीब विचाराधीन कैदियों की जमानत राशि के भुगतान के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) में संशोधन किया है।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश व न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा द्वारा दिए गए सुझाव को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया।
शीर्ष न्यायालय ने पिछले वर्ष 13 फरवरी को जारी अपने पूर्व एसओपी में कुछ संशोधन किए और आदेश दिया कि जिलाधिकारी या जिलाधिकारी द्वारा नामित व्यक्ति, प्राधिकरण के सचिव, पुलिस अधीक्षक, संबंधित जेल के अधीक्षक/उपाधीक्षक और संबंधित जेल के प्रभारी न्यायाधीश की एक अधिकार प्राप्त समिति गठित की जाएगी।
प्राधिकरण सचिव अधिकार प्राप्त समिति की बैठकों के संयोजक होंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर विचाराधीन कैदी को जमानत दिए जाने के आदेश के सात दिनों के भीतर जेल से रिहा नहीं किया जाता तो जेल अधिकारी प्राधिकरण के सचिव को सूचित करें।
न्यायालय ने कहा कि सूचना प्राप्त होने पर प्राधिकरण के सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि विचाराधीन कैदी के बचत खाते में धनराशि है या नहीं और अगर राशि नहीं है तो पांच दिनों के भीतर इसके लिए प्राधिकरण को अनुरोध भेजा जाएगा।
शीर्ष अदालत ने कहा, “इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ (आईसीजेएस) में एकीकरण लंबित रहने तक जिला स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति (डीएलईसी) रिपोर्ट प्राप्त होने की तारीख से पांच दिनों के भीतर प्राधिकरण की सिफारिश पर जमानत के लिए धनराशि जारी करने का निर्देश देगी।”
न्यायालय ने आदेश में कहा कि समिति, प्राधिकरण द्वारा सुझाए गए मामलों पर विचार करने के लिए प्रत्येक माह के पहले और तीसरे सोमवार (अगर ऐसे दिनों में अवकाश हो, तो अगले कार्यदिवसों पर) को बैठक करेगी।