पांच युवकों ने रोजा तोड़कर किया कैंसर पीड़ित नाबालिग को रक्तदान, देहरादून में पेश की मानवता की मिसाल

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 31-03-2023
पांच युवकों ने रोजा तोड़कर किया कैंसर पीड़ित नाबालिग को रक्तदान, देहरादून में पेश की मानवता की मिसाल
पांच युवकों ने रोजा तोड़कर किया कैंसर पीड़ित नाबालिग को रक्तदान, देहरादून में पेश की मानवता की मिसाल

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

रमजान के इस पाक महीने में कुछ मुस्लिम युवकों ने कैंसर से पीड़ित एक हिन्दू बच्ची को रक्तदान कर न सिर्फ उसकी जान बचाई बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और मानवता की मिसाल भी पेश की है. यह मामला उत्तराखंड के देहरादून का है. एक निजी कंपनी में काम करने वाले 39 वर्षीय अंकिता के पिता ब्यासमुनि गोंड ने कहा कि मैं इन अजनबियों का आभारी हूं जो मेरी बेटी की मदद के लिए आगे आए. 

जहां पांच युवकों के सामने एक तरफ धर्म था और दूसरी तरफ मानवता. युवकों ने मानवता का साथ दिया और भाईचारे की मिसाल पेश की. ये सभी पांच मुस्लिम युवक रोजा में थे, उनके सामने कैंसर से पीड़ित 14 वर्षीय लड़की को खून देने की बात सामने आई. इसके बाद युवकों ने रोजा तोड़ा और बच्ची को रक्तदान किया.
 
शाहरुख के मुताबिक उन्हें ब्लड की जरूरत के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट से पता चला. शाहरुख के साथ जीशान अली (26), आसिफ अली (24), सवेज अली (24) और साहिल अली (25) ने रक्तदान किया. 
 
सभी युवक लेबर क्लास से हैं
 
इस घटना की खास बात यह है कि ये सभी युवक लेबर क्लास यानी मजदूर वर्ग से हैं, जिन्हें समाज उच नीच के पायदान पर हमेशा से तोलती आई है आज उसी वर्ग ने सांप्रदायिक सौहार्द और मानवता की एक ऐसी अनूठी मिसाल पेश की है जो सबसे उंचें पायदान पर है, जिसका कोई मुकाबला नहीं है.  
 
जी हाँ शाहरुख डोईवाला में डेयरी की दुकान चलाने में अपने पिता की मदद करते हैं. वहीं, जीशान, आसिफ और सीवेज प्लंबिंग से जुड़ा काम करते हैं. साहिल फर्नीचर पॉलिशिंग के पारिवारिक व्यवसाय में मदद करते हैं. 
 
युवकों ने मानवता का साथ दिया
 
युवकों की माने तो बच्ची की जान के आगे परंपरा को तोड़ने का फैसला लिया. दरअसल, रमजान के दौरान इंजेक्शन लगाने की अनुमति नहीं होती है. सूर्यास्त से पहले भोजन करने की इजाजत नहीं मिलती है. युवकों ने रक्तदान के जरिए मानवता की सेवा का फैसला लिया. 
 
रमजान यानी मानवता 
 
रमजान एहसास कराता है कि इंसान की फिक्र करो, क्योंकि इंसान के होने से ही संसार में सारी खूबसूरती है. रोजे में छिपे संदेश को समझने पर यह एहसास होगा कि इसकी हर करवट में मानवता की ही फिक्र है.  
 
क्या है मामला?
14 वर्षीय बच्ची अंकिता गोंड कैंसर से पीड़ित है. मंगलवार को बच्ची को खून की जरूरत थी. इसकी जानकारी शाहरुख मलिक को मिली. 25 वर्षीय शाहरुख मलिक अपने चार दोस्तों के साथ अस्पताल पहुंच कर रक्तदान किया. शाहरुख ने कहा कि हमें लगता है कि हमारा 'रोजा' ईश्वर ने स्वीकार कर लिया गया है. हमने किसी की जान बचाने की पूरी कोशिश की है. 
 
शाहरुख के साथ जीशान अली (26), आसिफ अली (24), सवेज अली (24) और साहिल अली (25) ने रक्तदान किया. अंकिता को दून के बाहरी इलाके डोईवाला के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया. उन्हें पांच यूनिट खून की जरूरत थी.
 
सोशल मीडिया से मिली थी जानकारी
 
शाहरुख के मुताबिक उन्हें ब्लड की जरूरत के बारे में सोशल मीडिया पोस्ट से पता चला. हमने इस प्रकार का पोस्ट देखने के बाद तुरंत सोचा कि हमें मदद करनी चाहिए. उसने कहा कि मैं तुरंत कुछ अन्य दोस्तों के पास पहुंचा वे भी रक्त दान करने के लिए तैयार हो गए. 
 
लड़की के पिता ने जताया आभार
 
एक निजी कंपनी में काम करने वाले 39 वर्षीय अंकिता के पिता ब्यासमुनि गोंड ने कहा कि मैं इन अजनबियों का आभारी हूं जो मेरी बेटी की मदद के लिए आगे आए. बिहार के रहने वाले और पिछले 10 सालों से हरिद्वार में कार्यरत ब्यासमुनि गोंड ने कहा कि अंकिता ने हाल ही में कक्षा 8 की परीक्षा प्रथम स्थान से उत्तीर्ण की है. 
 
उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए एक झटके के समान है, जब हमें अंकिता के बारे में करीब एक सप्ताह पहले ब्लड कैंसर का पता चला. पिता ने कहा कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन उसके इलाज के जरिए जरूरी है. इसलिए, अंकिता को अब अपना जीवन बचाने के लिए अधिक ब्लड की आवश्यकता है.
 
ऐसा पहली बार नहीं जब रक्तदान के लिए तोड़ा गया रोजा
आपको बता दें कि ऐसा मामला पहली बार नहीं हुआ है 29 अप्रैल 2020 को भी रमजान के इस पाक महीने में 29 वर्षीय अलीशा खान ने एक हिंदू युवक को अपना रक्तदान करके न सिर्फ उनकी जान बचाई थी बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी पेश की थी. 
 
यह मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी का है. जहां विजय कुमार रस्तोगी को ओ निगेटिव खून की जरूरत थी लेकिन डॉक्टरों को अस्पताल के ब्लड बैंक में नहीं मिला. इस बीच अलीशा ने ऐसे शख्स के लिए रक्तदान किया जिसको वो जानती भी नहीं थीं और हिंदू-मुस्लिम एकता की एक शानदार मिसाल पेश की.
 
 
विनय के परिजन कई दिन से ओ निगेटिव ब्लड की व्यवस्था करने में जुटे हुए थे, लेकिन कोरोना वायरस महामारी की वजह से उन्हें कहीं से खून नहीं मिल पा रहा था. ऐसे में सामाजिक संस्था शहीद भगत सिंह सेवा समिति ने मदद का हाथ आगे बढ़ाया. 
 
वहीं 2018 में भी मोहम्मद अशफाक, एक मुस्लिम व्यक्ति ने बिहार के दरभंगा में एक शिशु को रक्तदान करने के लिए अपना रोज़ा (उपवास) तोड़ा था. अधिक जानकारी के लिए यह वीडियो देखें- https://youtu.be/sL_vfW17nPc