इस्लामाबाद. लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और साजिद मीर को जेल की सजा देना पाकिस्तान सरकार द्वारा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) से उनका नाम हटाने के लिए सबसे बड़ी प्रगति हो सकती है. मगर क्या पाकिस्तान का मूल चरित्र बदल जाएगा, क्या वह अपने यहां आतंकवाद की फैक्ट्रियों को बंद कर देगा, क्या वह आतंकियों की सुरक्षित पनाहगाहों के खिलाफ कार्रवाई करेगा, क्या वह आतंकवाद के लिए चंदा इकट्ठा करने वालों की नकेल कसेगाद्य
सुरक्षा विशेषज्ञों ने बताया कि मीर और सईद दोनों को अतीत में दोषी ठहराया गया था और जेल भेजा गया था. केवल एक उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति दी गई थी, जहां उनकी सजा को अवैध माना गया और फिर उन्हें रिहा कर दिया गया. कनाडा स्थित एक थिंक टैंक, इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी (आईएफएफआरएएस) ने बताया कि पाकिस्तान की अदालत में इस सामान्य पैटर्न का पालन किया जा रहा है. इससे पहले पाकिस्तान ने इस महीने 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के मास्टरमाइंड साजिद मीर को चुपचाप सजा सुनाई थी और इसी तरह लश्कर के संस्थापक हाफिज सईद को उसके सुरक्षित घर से बाहर लाया गया और 33 साल की कैद का फैसला सुनाया गया था.
थिंक टैंक के अनुसार, सईद और उसके साथी, जिसमें मुश्ताक जरगर, और अदुल रहमान मक्की शामिल हैं, जिन पर भारत ने 2008 के मुंबई आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड करने का आरोप लगाया है, उनको एक से अधिक बार पकड़ा गया, दोषी ठहराया गया और फिर रिहा कर दिया गया है. हर बार, जब भी ऐसा होता, आरोपियों को फूलों की पंखुड़ियों से नहलाया जाता है और वे ‘विजय’ के संकेत दिखाते हुए अदालत से निकलते हैं. उनके समर्थकों द्वारा विषाल जुलूस निकालकर महिमा मंडन किया जाता है.
यहां तक कि अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के मामले में भी, जहां 2002 में कराची में उनका अपहरण और हत्या कर दी गई थी, एक ब्रिटिश-पाकिस्तानी खालिद मोहम्मद शेख को दोषी ठहराया गया और जेल में डाल दिया गया. हालांकि, कुछ समय बाद शेख को अपील करने की अनुमति दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने सरकार, निचली अदालत और जांच एजेंसियों को, जिसने फैसला सुनाया था, इस ‘घटिया’ काम के लिए फटकार लगाई.
शेख को रिहा करने में, अदालत ने पर्ल के वृद्ध माता-पिता द्वारा ‘न्याय’ के लिए एक अंतरराष्ट्रीय अपील की अवहेलना की. शेख को रिहा कर दिया गया था, लेकिन सरकार द्वारा यह घोषणा की गई थी कि वह शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ अपील करेगी.
रिकॉर्ड्स को देखते हुए, सवाल उठाया जा रहा है कि पाकिस्तान एफएटीएफ की तथ्य-खोज टीम को क्या गारंटी देगा कि सईद, मीर और अन्य लोगों द्वारा की गई मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी गतिविधियों के लिए चंदा इकट्ठा करने की कोषिषें अब नहीं होंगी. या सिर्फ यह एफएटीएफ से मुक्त होने के लिए नौटंकी की जा रही है.
द फ्राइडे टाइम्स साप्ताहिक ने नोट किया कि लश्कर के मीर की सजा ‘उन महत्वपूर्ण कारकों में से एक है, जिसके कारण पाकिस्तान को एफएटीए द्वारा ग्रे लिस्ट में डाला गया था.’
मीर पर फैसला तब आया है, जब पाकिस्तान एफएटीएफ की आतंकी-वित्तपोषण निगरानी सूची से बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रहा है. वर्तमान में, देश में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए मापदंडों को पूरा नहीं करने के लिए पाकिस्तान निगरानी संस्था की ‘ग्रे लिस्ट’ में है.
पहले ऐसा माना जाता था कि मीर की मौत हो गई थी, लेकिन जब पश्चिमी देशों ने उसकी मौत का सबूत मांगा, तो यह मुद्दा पिछले साल एफएटीए की कार्य योजना के आंकलन में एक प्रमुख बिंदु बन गया.
द वीकली ने थिंक टैंक के हवाले से लिखा है कि साजिद मीर की ‘दोषी और सजा को एफएटीएफ को कार्य योजनाओं के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता के प्रमाण के रूप में दिखाया गया था और इसे प्रमुख उपलब्धि माना गया था.’
जबकि पाकिस्तानी अखबार डॉन ने पाकिस्तान सरकार की ‘ब्रेकिंग न्यूज संस्कृति’ पर भी टिप्पणी की, जिसने ‘एक हाई-प्रोफाइल मामले में इतने महत्वपूर्ण घटनाक्रम को इतना कम महत्वपूर्ण दर्षाया गया.’ हालांकि गिरफ्तारी अप्रैल 2022 को हुई थी, लेकिन मीर के मामले की खबरें ‘अभी-अभी बाहर आई हैं.’
मुंबई आतंकवादी हमलों में मीर की भूमिका पर, अखबार ने कहा, ‘‘हमले के दौरान रिकॉर्ड किए गए इंटरसेप्टेड फोन कॉलों की फोरेंसिक जांच के बाद, अधिकारियों को विश्वास हुआ कि यह उयकी आवाज थी, जो बंदूकधारियों को निर्देशित कर रही थी और उन्हें मारने का निर्देष दे रही थी. हालांकि, कई सालों तक, पाकिस्तानी अधिकारियों ने जोर देकर कहा कि मीर मर गया है, एक ऐसा दावा, जिसे पश्चिम ने मानने से इनकार कर दिया था.’’