राकेश चौरासिया
अमेरिका के प्रशांत एयरफोर्स बेड़े के डिप्टी कमांडर मेजर जनरल डेविड ए पिफारेरिओ ने 12 सितंबर को कहा कि अमेरिका भारत को एफ-16 फाइटर जेट का लेटेस्ट वर्जन देने के लिए तैयार है. तुर्की ने रूस से एस-400 खरीदा, तो अमेरिका ने उसे एफ-35 क्लब से निकाल दिया, क्योंकि अमेरिका को तुर्की के एस-400 से एफ-16 और एफ-35 की ‘ट्रेकिंग एंड एंगेजमेंट कैबेबिलिटीज’ के रहस्य खुलने की ‘घोषित आशंका’ थी. मगर अमेरिका अब क्यों भारत पर लाड़ बरसा रहा है? भारत के पास भी तो एस-400 है.
सारी दुनिया को मालूम है कि अमेरिका किसी को जरूरत पड़ने पर अपना ‘बुखार’ तक नहीं देता है. मगर, तेजी से बदली भू-राजनीति के कारण अमेरिका असहाय महसूस कर रहा है. अमेरिका अपनी चालाकियों के कारण खाड़ी देशों में अपनी ‘विश्वसनीयता’ गंवा चुका है. और अब उसने भारत के छत्ते में भी हाथ डाल दिया है. इसके बाद, प्रतिक्रियास्वरूप, वह भारत की कूटनीति और तेवरों से घबराया हुआ है.
इन दिनों कुछ चीजें तेजी से घटीं. आईए, उन पर नजर डालते हैं -
अमेरिका की इन करतूतों को मोदी सरकार ने अच्छी तरह से नहीं लिया है. अमेरिका भी इसे जानता है.
अमेरिका अब संभावित भारत, रूस और चीन के गठजोड़ के खतरे को भांप रहा है. इसलिए पहले जो बाइडेन ने 21 सितंबर को विलमिंगटन, डेलावेयर में ‘क्वाड’ नेताओं की मेजबानी करने की पेशकश की है.
और अब उसने भारत को एफ-16 की ऑफर दी है. और ये इसलिए, कि अमेरिका इस बात से घबराया हुआ है कि भारत और चीन कहीं सुलह न कर लें. क्योंकि वह अच्छी तरह जानता है कि भारत को डराने-धमकाने का दौर गुजर चुका है.
एफ-16 का ऑफर
एफ-16 का ऑफर बुरा नहीं है. एफ-16 दुनिया के सबसे भरोसेमंद और बहुमुखी लड़ाकू विमानों में से एक है. इसकी रेंज, गति और हथियारों की क्षमता इसे हवाई युद्ध के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाती है. एफ-16 में नवीनतम तकनीक लगी होती है, जिससे यह हवाई हमलों और जमीनी लक्ष्यों को निशाना बनाने में काफी प्रभावी है. एफ-16 भारतीय वायु सेना की क्षमताओं को बढ़ा सकता है और उसे क्षेत्रीय शक्तियों के साथ कदम मिलाने में मदद कर सकता है.
चीन इस समय ताईवान के साथ उलझा हुआ है. इसलिए वह भारत से बेहतर संबंधों का इच्छुक है. ताकि उसे ‘दो मोर्चों’ पर न उलझना पड़े. किंतु चीन पर भी इतनी आसानी से ‘विश्वास’ नहीं किया जा सकता है. चीन की बढ़ती शक्ति और आक्रामक रुख को देखते हुए भारत को एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने सहयोगियों की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करना है, तो एफ-16 से भारतीय वायुसेना की क्षमताओं में बढ़ोतरी होगी और क्षेत्रीय संतुलन बनेगा.
भारत की सैन्य जरूरतें
भारत वर्तमान में अपने पुराने लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने और नई पीढ़ी के विमानों को शामिल करने की प्रक्रिया में है. भारत की वायुसेना के पास अभी भी पुराने मिग-21 और मिग-27 जैसे विमान हैं, जिन्हें प्रतिस्थापित करने की जरूरत है. ऐसे में एफ-16 एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है, जो भारत की रक्षा क्षमताओं को आधुनिक और सक्षम बनाएगा.
क्षेत्रीय संतुलन
दक्षिण एशिया में भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंध हमेशा से रहे हैं. पाकिस्तान की वायुसेना के पास भी एफ-16 लड़ाकू विमान हैं, जो उसने अमेरिका से खरीदे थे. अगर भारत को भी एफ-16 मिलता है, तो यह क्षेत्रीय संतुलन को बनाए रखने में सहायक हो सकता है. इससे भारत को पाकिस्तान के मुकाबले में एक मजबूत वायुसेना के रूप में उभरने में मदद मिलेगी.
तलवार की धार पर चलने जैसा
भारत के लिए अमेरिका और चीन, दोनों ही देश 'एक नागनाथ और दूसरे सांपनाथ' सिद्ध हुए हैं. इसलिए भारत को जो भी करना है, बहुत सोच-समझकर करना होगा. इस समय अमेरिका के दिमाग में ‘भारत-रूस-चीन गठजोड़’ के मद्देनजर कुछ खिचड़ी पक रही है. इसलिए एफ-16 के बदले वह वायदों-मुहायदों की ‘कुछ और कीमत’ भी वसूलना चाहेगा. ‘इसी बिंदु’ पर भारतीय राजनय के कौशल्य और चातुर्य की परीक्षा होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)