मेहमान का पन्ना ।
प्रो. अख़्तरुल वासे
देश किधर जा रहा है या हम इसे कहां ले जा रहे हैं इसका अंदाज़ा लगाना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं होगा. नफ़रत और तिरस्कार का जो बाज़ार गर्म किया गया, जिस तरह मुसलमानों के ख़िलाफ़ बयानबाज़ियां हुईं, शपथ दिलाए और लिए गए, वह किसी से भी ढका-छिपा नहीं है और उस पर पर्दा पड़ा रहे यह स्वयं नफ़रत के व्यापारी भी नहीं चाहते.
वह तो ख़ुदा भला करे हमारे दोस्त और प्रसिद्व पत्रकार क़ुर्बान अली और न्यायविद रंजना प्रकाश, कपिल सिब्बल, दुष्यंत दुबे और प्रशांत भूषण का, जिन्होंने इस देश की सबसे बड़ी अदालत (सर्वोच्च न्यायालय) में तथ्यों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करके अदालत को इसका संज्ञान लेने पर राज़ी कर लिया और फिर अदालत ने बुराड़ी हो या हरिद्वार या फिर हिमाचल, हर घटना का सख़्त संज्ञान लिया और सरकारों एवं प्रशासन के प्रभारी लोगों की जवाबदेही सुनिश्चित की.
मौलाना सैयद महमूद असद मदनी और मौलाना सैयद अरशद मदनी के नेतृत्व वाले जमीअत उलेमा के दोनों धड़ों ने जिस दिलेरी और साहस के साथ ग़रीबों और शोषितों के लिए न्याय संभव बनाने के लिए अथक प्रयास किया है, वह क़ाबिले तारीफ़ है.
मौलाना सैयद महमूद असद मदनी जिस तरह से बौद्धिक और व्यावहारिक स्तर पर वर्तमान परिदृश्य में सबको एक जगह जमा करके एक बेहतर और अधिक व्यावहारिक रणनीति तैयार करने के प्रयास में लगे हुए हैं जिससे कि देश और मज़हब दोनों परेशानियों में पड़ने से बच जायें वह भी अत्यंत सराहनीय प्रयास है.
मुझे ख़ुशी है कि जमात-ए-इस्लामी हिन्द के अध्यक्ष जनाब सआदतुल्लाह हुसैनी भी स्थिति को बहुत ध्यान से देख रहे हैं, सत्य और न्याय के शासन को संभव बनाने के साथ ही इस बात को सबको समझाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं कि अभी भी इस मुल्क के हिन्दुओं की बड़ी आबादी सांप्रदायिक मानसिकता की शिकार नहीं हुई है, इसलिए हमें उनसे एक सक्रिय संपर्क बनाना चाहिए और बातचीत करनी चाहिए.
इसी तरह, हज़रत मौलाना असग़र अली इमाम मेहदी सलफ़ी, ऑल इण्डिया जमीयत अहले हदीस के अध्यक्ष और आला हज़रत फाज़िले बरेली के पोते मौलाना तौक़ीर रज़ा ख़ान भी कुछ इसी तरह के प्रयास कर रहे हैं और ये तो सिर्फ़ कुछ नाम हैं अन्यथा कई मुस्लिम नेता और समाजसेवी देश के कोने-कोने में देश और मुसलमान दोनों के लिए चिंतित हैं कि कहीं स्थिति नियंत्रण से बाहर न हो जाए.
यह कैसी विडंबना है कि कर्नाटक में जहां हिजाब के नाम पर उठा तूफ़ान अभी थमा भी नहीं है, वहां अब मुसलमानों के साथ-साथ ईसाइयों को भी निशाना बनाया जा रहा है एवं वह लोग जो सरकारी स्कूलों में गीता पढ़ाने की योजना बना रहे हैं वह एक निजी ईसाई मिशनरी स्कूल में बाइबिल की शिक्षा दिए जाने पर हंगामा कर रहे हैं.
हम पहले भी कह चुके हैं और एक बार फिर कहते हैं कि हमें किसी धर्म विशेष की पुस्तकों को पढ़ाने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यह किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं होना चाहिए और यदि किसी विशेष धर्म की पुस्तक या उसके कुछ हिस्सों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना है तो इसके लिए एक व्यापक पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए जिसमें भारत की सभी धार्मिक इकाइयों की शिक्षाएं शामिल हों.
एक तरफ़ आप यह कहते हैं कि किसी पर ज़ोर-ज़बरदस्ती के साथ किसी धर्म विशेष की किताब को पढ़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा और दूसरी तरफ़ आप सरकारी स्कूलों में केवल गीता की पढ़ाई को अनिवार्य करने की बात कर रहे हैं.
कर्नाटक में ही आपने मुस्लिम लड़कियों को सिर्फ़ हिजाब पहनने के जुर्म में परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी और इस प्रकार उनकी ज़िंदगी का एक क़ीमती साल बर्बाद कर दिया, जबकि उनके मामले की सुनवाई अभी सुप्रीम कोर्ट में होनी है और सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश नहीं दिया है. ऐसे समय में इन बच्चियों को परीक्षा देने से वंचित रखना कहां का न्याय है?
यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब आप आज नहीं दें लेकिन कल का इतिहासकार आपको इसके लिए कभी माफ़ नहीं करेगा. एक तरफ़ आप बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ़ आप मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखना चाहते हैं.
इसी तरह मुस्लिम विरोधी भावना की एक अभिव्यक्ति यह है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, दिल्ली और इन सबसे पहले यूपी में न्यायपालिका को सुनवाई का मौका दिए बिना ग़रीबों और निर्दोषों के घरों, पूजा स्थलों, मज़ारों एवं मदरसों पर बुलडोजर चलवा दिया गया. इनमें भी सबसे शर्मनाक और दर्दनाक वह दृश्य है जब दिल्ली प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष ने उत्तर-पूर्व नगर निगम के मेयर को जहांगीरपुरी में बुलडोजर चलाने और उसके अनुसार कार्रवाई करने का निर्देश दिया.
वह तो सर्वोच्च न्यायालय का भला हो कि उसने किसी तरह से हस्तक्षेप किया और इस प्रक्रिया को एक निश्चित सीमा से आगे नहीं जाने दिया. सवाल यह है कि क्या अब अदालतों के जजों की जगह सत्ता पक्ष के पदाधिकारी फ़ैसले लेंगे और उनके आदेश पर ऐसी जवाबी कार्रवाई या तोड़फोड़ की कार्रवाई होगी? कल, अगर अदालत के फैसले से साबित होता है कि विध्वंस अभियान गलत था, तो क्या सरकार और सत्ताधारी पार्टी के अधिकारी क्षतिपूर्ति करेंगे?
इसी तरह, जामिया अशरफ़िया मुबारकपुर, आज़मगढ़ जो इस्लामी धर्मशास्त्र के प्रसार के लिए एक प्रमुख केंद्र है और दुनिया में जिसकी अपनी एक पहचान है, की शिक्षकों की एक आवासीय कॉलोनी जो कि तीन दशक पहले बनी थी उसको बिना किसी पूर्व सूचना के, बिना किसी सुनवाई के गिरा दिया गया और यह आरोप लगाया गया कि ये सभी निर्माण सरकारी नालों पर किया गया था.
सवाल यह है कि पिछले 30 वर्षों में उत्तर प्रदेश में कई भाजपा सरकारें बनी हैं, उस समय उनके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? ऐसा लगता है कि मुसलमानों को डराने-धमकाने के लिए ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं जो बेहद दर्दनाक है. हम भी सरकारी या गैर-सरकारी जमीन पर अवैध क़ब्ज़े, हेराफेरी और निर्माण के ख़िलाफ़ हैं, लेकिन पहले अदालत को यह तय करने तो दें कि यह वास्तव में हुआ है या नहीं.
अगर न्यायपालिका हर स्तर पर आपके पक्ष में फ़ैसला करती है तो सरकार को क़ानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है लेकिन अदालतों के फैसलों से पहले ख़ुद ही वादी, ख़ुद ही गवाह और ख़ुद ही जज बन जाना किस तरह जायज़ हो सकता है यह बात समझ से परे है?
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफ़ेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज़) हैं.)