आतंकवाद के खिलाफ भारत की वैश्विक-लड़ाई

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 20-05-2023
आतंक के खिलाफ भारत की वैश्विक-लड़ाई
आतंक के खिलाफ भारत की वैश्विक-लड़ाई

 

perप्रमोद जोशी

अमेरिका की एक अदालत ने गत 16 मई को मुंबई पर हुए हमले की साजिश में शामिल पाकिस्तानी आतंकी तहव्वुर राना के भारत प्रत्यर्पण को मंज़ूरी दे दी है. भारत ने 10 जून 2020को अमेरिका की अदालत में अर्जी दी थी कि तहकीकात के लिए राणा को अस्थायी रूप से भारत लाने की अनुमति दी जाए. उसे अब स्वीकार कर लिया गया है.

भारत और अमेरिका दोनों देशों की सरकारों ने अदालत में कहा था कि तहव्वुर राणा को डेविड हेडली की आतंकवादी गतिविधियों का पूरा पता था. तहव्वुर राणा के मार्फत ही यह स्थापित किया जा सकता है कि मुंबई हमले के पीछे पाकिस्तान में बैठे लोगों का हाथ था.

हालांकि यह एक सकारात्मक खबर है, पर कहना मुश्किल है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कहाँ तक जाएगी और किस हद तक सफलता मिलेगी. बहरहाल ‘राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवसयानी 21 मई’के कुछ दिन पहले की यह खबर आश्वस्त करती है कि हम कामयाबी होंगे.  

आतंकवाद विरोधी दिवस

21मई,1991 को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का आतंकवादियों के हमले में निधन हो गया था. यह दिन उनकी पुण्यतिथि के तौर पर मनाया जाता है, साथ ही आतंकवाद के दुष्परिणामों के ख़िलाफ़ जागरूकता पैदा करने के लिए इस दिन को ‘राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस’के रूप में भी मनाया जाता है.

राजीव गांधी से पहले 1984 में इंदिरा गांधी आतंकवाद की शिकार हुई थीं. अस्सी और नब्बे के दशक में शहरों, रेलगाड़ियों, बसों में आए दिन धमाके होना आम बात हो गई थी. भारतीय राष्ट्र-राज्य के सामने वह भीषण संकट का समय था.

भारत उन देशों में शामिल है, जो आतंकवाद के सबसे बड़े शिकार हैं. हम पर हिंसक हमलों की शुरुआत अक्तूबर, 1947 में ही हो गई थी, जब कश्मीर की घाटी पर पाकिस्तानी सेना की सहायता से कबायलियों की हथियारबंद भीड़ ने योजनाबद्ध हमला किया था.

भारत कई प्रकार के आतंकवाद का शिकार है. पूर्वोत्तर के इलाकों में लंबे समय से आतंकवादी गतिविधियाँ चल रही हैं. इनमें अलगाववादी आंदोलनों, नशे के कारोबारियों और सिर्फ पैसे के लिए अपराध करने वालों की भूमिका भी है. अस्सी के दशक में खालिस्तानी आंदोलन के कारण देश और विदेश में अनेक हिंसक घटनाएं हुई थीं.

हाल के वर्षों में अलकायदा, आइसिस और उनसे जुड़े संगठनों की सक्रियता बढ़ी है, जिन्होंने पाकिस्तान के अलावा बांग्लादेश में भी अपने लिए सुरक्षित ठिकाने बना रखे हैं.

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माओवादी आंदोलन

सत्तर के दशक से देश में नक्सलपंथी आंदोलन चल रहा है, जो अब एक नई शक्ल में है. पुराने नक्सली आंदोलन के राजनीतिक निहितार्थ थे, पर इस नए माओवादी आंदोलन के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ भी है. इस लिहाज से आतंकवादी खतरा राष्ट्रीय सीमा से बाहर जाकर अंतरराष्ट्रीय शक्ल ले चुका है.

माओवादी हिंसा का वर्तमान दौर 2004 में सीपीआई (माओवादी) के गठन के बाद से शुरू हुआ है. इसे नक्सलवादी आंदोलन भी कहा जाता है, पर यह उस परम्परागत नक्सली आंदोलन से अलग है, जो साठ के दशक में बंगाल से निकला था.

वर्तमान आंदोलन पीपुल्स वॉर ग्रुप और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के विलय के बाद शुरू हुआ है, जिसका केन्द्र आंध्र और तेलंगाना में है. परम्परागत नक्सली संगठन अब या तो मुख्यधारा की राजनीति से जुड़ चुके हैं या निष्क्रिय हो चुके हैं. उन्हीं इलाकों में यह नया संगठन सक्रिय है.

बिहार, उड़ीसा, बंगाल, छत्तीसगढ़, आंध्र, तेलंगाना और महाराष्ट्र समेत 13-14 राज्यों में इनके पदचिह्न हैं, जो देश का ‘लाल गलियारा’ कहलाता है. देश के एक तिहाई जिले इस हिंसा की गिरफ्त में हैं.

सीमा-पार आतंकवाद

भारत को सबसे ज्यादा सीमा-पार से हो रही आतंकवादी घटनाओं से परेशानी फिक्र है. पिछले कई साल से संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहल पर ‘कांप्रिहैंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म’ को लेकर विमर्श चल रहा है, पर टेररिज्म की परिभाषा को लेकर सारा मामला अटका हुआ है.

भारत ने इस संधि की पहल की है, पर वैश्विक स्तर पर सक्रिय ताकतें इस संधि को परिभाषित होने नहीं दे रही हैं. जब तक ऐसी संधि नहीं होगी, हम साबित नहीं कर पाएंगे कि सीमा-पार से चल रही गतिविधियों का चरित्र आतंकवादी है.

खासतौर से कश्मीरी-आंदोलन के पीछे पाकिस्तान में बैठे जिन लोगों का हाथ है, उनपर उंगली उठान के पहले कई तरह के किंतु-परंतु हैं.

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भारत की पहल

पिछले कुछ महीनों में भारत की पहल से कुछ गतिविधियाँ हुई हैं. पिछले साल के अंत में भारत ने संरा सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-विरोधी समिति (सीटीसी) की दिल्ली तथा मुंबई में हुई बैठकों की मेजबानी की. इनके अलावा दिल्ली में गत 18-19 नवंबर को हुआ ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन.

दोनों कार्यक्रमों का उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ ढीली पड़ती वैश्विक मुहिम की तरफ दुनिया का ध्यान खींचना था. इसे तेज करने के लिए अब भारत को आगे आना होगा. इन दो कार्यक्रमों के अलावा 15-16 दिसंबर को वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों से जुड़ी चुनौतियों पर संरा सुरक्षा परिषद की एक विशेष ब्रीफिंग की मेजबानी भी भारत ने की.

ब्रीफिंग में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की राह में आ रही चार बाधाओं का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि आतंक के वित्तपोषण को राज्य द्वारा मिलने वाला समर्थन; अपारदर्शी एवं एजेंडा संचालित बहुपक्षीय तंत्र; स्थान विशेष के आतंकवादी समूह के अनुसार अपनाए जाने वाले दोहरे मापदंड एवं आतंकवाद का मुकाबला करने की कवायद का राजनीतिकरण और आतंक के‘एक नए मोर्चे’का खुलना शामिल है.

यह नया मोर्चा है ड्रोन और आभासी मुद्रा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों का आतंकवादियों द्वारा उपयोग. आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध और 9/11के बाद शुरू किए गए प्रतिबंध व्यवस्था के छिन्न–भिन्न होने की दृष्टि से इस कार्यक्रम का खास महत्व था.

पश्चिम की खामोशी

2021में अफगानिस्तान से बाहर निकलने की जल्दबाजी में यूएनएससी के स्थायी सदस्यों, अमेरिका और ब्रिटेन ने तालिबान के साथ बातचीत करके, काबुल की सत्ता पर कब्जा करने में उनकी राह को आसान बनाया था.

आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन बुलाने के 1996के भारत के प्रस्ताव को एकजुट होकर स्वीकार करने के बजाय सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य अपने हितों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. यूक्रेन-युद्ध में उनकी दिलचस्पी ज्यादा है.

सुरक्षा परिषद में अपने दो साल के कार्यकाल के आखिरी कुछ हफ्तों में भारत ने इन मुद्दों को उजागर किया, पर इतने मात्र से आतंकवाद को रोकना संभव नहीं.  यह बात हाल में शंघाई सहयोग संगठन के विदेशमंत्रियों के गोवा-सम्मेलन में भी स्पष्ट हुई. भारत ने जब आतंकवाद का सवाल उठाता है, तब पाकिस्तान बातों को घुमा देता है.

गोवा की बैठक में पाकिस्तानी विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो ने कहा, ‘राजनयिक फायदे के लिए आतंकवाद को हथियार बनाने के चक्कर में न पड़ें.’ हम भी आतंकवाद के शिकार हैं. मेरी माँ की हत्या आतंकवादी हमले में ही हुई थी. कोई उनसे पूछे कि आप आतंकवाद के शिकार हैं, तो उसे रोकते क्यों नहीं?  

भारत की पुरजोर कोशिश इस विषय को प्रासंगिक बनाए रखने में है, बावजूद इसके कि दुनिया ने अब दूसरी तरफ देखना शुरू कर दिया है. मुंबई हमले के संदर्भ में भारत का अनुभव रहा है कि आतंकवाद जैसे मसलों पर विश्व समुदाय की बातें बड़ी-बड़ी होती हैं, पर कार्रवाई करने का मौका जब आता है, तब सब हाथ खींच लेते हैं.

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डार्कनेट का इस्तेमाल

दिल्ली में हुए ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि जो देश आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उन्हें इसकी क़ीमत चुकानी चाहिए. सम्मेलन में गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अपनी पहचान छिपाने और कट्टरपंथी सामग्री फैलाने के लिए आतंकवादी डार्कनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी संपत्ति का उपयोग भी बढ़ रहा है.

दिल्ली की बैठक में ऑनलाइन माध्यमों से कट्टरपंथी और आतंकी गतिविधियों को चलाने, हिंसक गतिविधियों के लिए भरती और क्रिप्टो-करेंसी तथा वर्चुअल परिसंपत्तियों के मार्फत आतंकवाद का वित्तपोषण करने और आतंकी हमलों एवं ड्रग्स तथा हथियारों की सप्लाई के लिए ड्रोन सहित मानव रहित विमानों के इस्तेमाल पर बातचीत की गई.

इस साल फरवरी में अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत ने आतंकवादी संगठनों को पहचानने, उन्हें तबाह करने और आतंकवाद के खतरे को कम करने की दिशा में शानदार काम किया है.

अमेरिका के ब्यूरो ऑफ काउंटर टेररिज्म की रिपोर्ट 'कंट्री रिपोर्ट्स ऑन टेररिज्म 2021: भारत' के अनुसार, भारत में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर, उत्तर पूर्वी राज्य, मध्य भारत के कुछ इलाके आतंकवाद प्रभावित हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन, आईएसआईएस, अल कायदा, जमात उल मुजाहिदीन, जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं. आतंकी संगठनों ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया है और अब वह आम नागरिकों को निशाना बना रहे हैं और ड्रोन और आईईडी आदि से विस्फोट कर रहे हैं.

केवल निंदा

दिसंबर 1999 में जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 का अपहरण करके कंधार ले जाया गया था और मसूद अज़हर समेत कुछ आतंकियों को रिहा कराया गया था, तब विश्व समुदाय ने खामोशी से सब कुछ देखा. उसके बाद 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमले के समय भी विश्व-समुदाय निंदा से ज्यादा कुछ नहीं कर पाया.

पाकिस्तान को अलग-अलग कारणों से अमेरिका और चीन दोनों का प्रश्रय मिला है. पिछले अक्तूबर में पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ से छुटकारा मिल जाने के बाद स्पष्ट है कि पश्चिमी देशों की दिलचस्पी पाकिस्तान पर दबाव डालने की नहीं है. इसके पीछे उनके अपने हित हैं.

सुरक्षा परिषद में 1267 प्रतिबंध व्यवस्था के अंतर्गत आतंकियों को प्रतिबंधित किया जाता है. इसके तहत लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज तल्हा सईद को वैश्विक आतंकी की सूची में डालने के लिए भारत और अमेरिका ने गत 19 अक्तूबर, 2022 को एक प्रस्ताव रखा था. चीन ने अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उसे रोक दिया और अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान को फँसने से बचाया.

हाल में चीन ने अब्दुल रऊफ़ अज़हर को ब्लैकलिस्ट करने के भारत के प्रस्ताव पर अडंगा लगाया. रऊफ़ जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर का भाई है. इसके पहले मसूद अज़हर के मामले में काफी लंबे समय तक उसने रोक लगाई थी. पाकिस्तान को चीन का खुला राजनीतिक-समर्थन है. भारत में हुए ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन में दोनों देश शामिल नहीं थे.

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वैश्विक संधि

पिछले कई साल से संयुक्त राष्ट्र में ‘कांप्रिहैंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म’ को लेकर विमर्श चल रहा है, पर टेररिज्म की परिभाषा तय नहीं है. इस संधि का प्रस्ताव 1996 में भारत ने किया था. तब से अब तक बार-बार कहा जाता है कि जब तक ऐसी संधि नहीं होगी, तब तक आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ी नहीं जा सकेगी.

अब तो तकनीक का विकास भी हो गया है. आतंकी संगठन सोशल मीडिया से लेकर ड्रोन और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस तक से लैस हैं. सरकारें उनकी मदद करती हैं और राजनीतिक संरक्षण प्रदान करती हैं.

पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा के कमांडरों हाफिज सईद औरजकी-उर-रहमान लखवी तथा दूसरे लोगों पर मुकदमा चलाने का नाटक किया और फिर हाथ खींच लिए. बहुत से मामलों में भारत से सहयोग करने वाले अमेरिका ने इन हमलों के सिलसिले में डेविड हेडली और तहव्वुर राना को दोषी तो ठहराया, लेकिन उन्हें प्रत्यर्पित नहीं किया.

अब तहव्वुर राना के प्रत्यर्पण की अनुमति मिली है. देखें प्रत्यर्पण होता कब है. 2001 में भारत की संसद हुआ हमला सीधे-सीधे भारत की प्रभुसत्ता पर आतंकवादी हमला था. दुनिया ने क्या कर लिया?

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )

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