पांच साल में कश्मीर की ‘बर्फ’ ने कैसे बदला अपना रंग ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-02-2024
How did Kashmir's 'snow' change its color in five years?
How did Kashmir's 'snow' change its color in five years?

 

अहमद अली फैयाज

कश्मीर और अन्य जगहों पर बर्फ हमेशा सफेद थी, है और रहेगी. कश्मीरी में ‘काली बर्फ का गिरना’ का तात्पर्य किसी ऐसी चीज से है, जो कभी संभव नहीं है. उन लोगों के लिए जो जनवरी 2019 में मानते थे कि घाटी में उदासी और मेलोड्रामा की स्थिति कभी नहीं बदलेगी, जनवरी 2024 एक लौकिक ‘काली बर्फ’ की तरह है.

1 फरवरी 2024 को, जम्मू और कश्मीर बैंक के एक कर्मचारी, कांदीवाड़ा कोकरनाग (अनंतनाग) के तालिब हुसैन मीर की 4 वर्षीय जुड़वां बेटियों जीबा और जैनब ने मौसम की पहली बर्फबारी का आनंद लेते हुए 73 सेकंड का एक वीडियो शूट किया. घाटी में ‘बर्फ-ए-नव’ के जश्न को पारंपरिक लय देना हल्का था, लेकिन प्यारी परी जोड़ी ने अपने वीलॉग से इंटरनेट पर आग लगा दी.

भारत के किसी भी लोकप्रिय व्लॉगर्स और यूट्यूबर्स की नकल करते हुए कैमरे पर आनंदित जोड़ी ने कहा, ‘‘अस्सलामु अलैकुम दोस्तों, आप देख सकते हैं कि बर्फ आखिरकार गिर गई है. तुम्हें लग रहा होगा कि हम कैसे मजा ले रहे हैं, मानो हम स्वर्ग के बीच में बैठे हों.’’

क्यूटीज ने एक्शन में कहा, “आपको लग रहा होगा कि ये दूध की लहरें हैं. ये दूध की लहरें नहीं बर्फ है.”

उन्होंने एक स्वर में कहा, “भगवान ने आखिरकार मेरी और मेरी बहन की प्रार्थना सुन ली. अब हम बहुत आनंद ले रहे हैं और बहुत मजा कर रहे हैं.” दोनों मिलते-जुलते चेहरे और भावों के साथ और समान पोशाक में थीं, जिसमें ठेठ कश्मीरी फेरन भी शामिल था.

एक महिला, जो फ्रेम में नहीं है, लेकिन जाहिर तौर पर फोन-कैमरे के पीछे उनकी मां है, बच्चों से पूछती है कि क्या वे ठंड से कांप रही थीं. उन्होंन कहा, “सरदी तू लग रही है, लेकिन मजा तो करना है ना!”

सैकड़ों सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं, जिनमें आईएएस-2010 के टॉपर डॉ. शाह फैसल भी शामिल थे, द्वारा फेसबुक, यूट्यूब और ‘एक्स’ पर अपलोड किया गया अनंतनाग बर्फ का वीडियो वायरल हो गया. रविवार को जब महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने इसे ‘एक्स’ पर अपने 11 मिलियन फॉलोअर्स के लिए पोस्ट किया, तब तक यह इंटरनेट पर आग लगा रहा था.

महिंद्रा ने वीडियो को कैप्शन दिया, “बर्फ पर स्लेज. बर्फ पर शायरी. मेरा वोट दूसरे को जाता है.”

सैकड़ों अन्य लोगों ने प्यारी बच्चियों के लिए प्रार्थनाएं और प्यार के इमोजी बरसाए, “बहुत प्यारा. राम जी दोनों पर कृपा करें. बस इनको किसी की नजर ना लगे.” सागा ऑफ इंडिया ने दोबारा पोस्ट किया. शबनम फिरदौश ने टिप्पणी की, ‘‘ऐसा लगता है मानो बादल अपनी दो परियों के साथ धरती पर उतर आया हो.’’

अनंतनाग क्लिप पिछले 5 वर्षों में सोशल मीडिया पर घाटी के छोटे बच्चों के पांच या छह ऐसे वीडियो के बाद आई है. ऐसे ही एक वीडियो पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर में प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए किताबों और अंतहीन कक्षाओं के बोझ को कम करने का आदेश दिया. इसने एक ऐतिहासिक प्रभाव उत्पन्न किया.

एक युवा लड़की के ऐसे ही एक और वीडियो में अनंतनाग में सड़कों की जर्जर हालत और गड्ढों को दिखाया गया है. जल्द ही शीर्ष स्तर से कार्रवाई हुई.

अब बर्फबारी के इस उत्साह को उस डर, उदासी और मातम के माहौल से मिलाइए, जो ठीक 5 साल पहले कश्मीर पर राज करता था. कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री से कोई मांग करने या बर्फबारी का जश्न मनाने की हिम्मत नहीं कर सकता था.

‘स्वतंत्रता संग्राम से ध्यान भटकाना’, जैसा कि वे इसे कहते थे, एक अक्षम्य अपराध था. उग्रवादियों के प्रतिशोध और बुद्धिजीवियों के बीच उनके अच्छी तरह से जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र की ट्रोलिंग कश्मीर में रहने वाले या परिवार रखने वाले किसी भी व्यक्ति को चुप करा देती थी.

14 फरवरी 2019 को एक आत्मघाती हमले में 40 सीआरपीएफ कर्मियों की हत्या, जो 30 साल लंबे अलगाववादी विद्रोह के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ और विनाश के रूप में सामने आई, एक युवा, निर्दोष महिला की बर्बर हत्या के सिर्फ दो सप्ताह बाद हुई.

डंगरपोरा पुलवामा की तेईस वर्षीय इशरत मुनीर की कैमरे के सामने बेरहमी से हत्या कर दी गई और उसके शरीर को 31 जनवरी 2019 को चेरबुघ में एक अखरोट के पेड़ के नीचे बर्फ के ढेर पर फेंक दिया गया.

इशरत मुनीर की आईएसआईएस शैली में हत्या की 10 सेकंड की वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और पूरी घाटी में दहशत की लहर फैल गई. लाखों असहाय कश्मीरियों ने उसे अपने अपहरणकर्ताओं से विनती करते और हाथ जोड़कर अपनी जान की भीख मांगते देखा. एके-56 राइफल से उसके दिल पर सटीक निशाना लगाकर की गई सिर्फ एक गोली ने उसे हमेशा के लिए खामोश कर दिया.

आतंकवादियों की ओर से संचालित होने वाले कुछ फेसबुक पेजों ने उसे उस वर्ष 12 जनवरी को एक मुठभेड़ में शीर्ष अल-बदर कमांडर जीनतुल इस्लाम की हत्या के लिए जिम्मेदार मुखबिर के रूप में लेबल किया.

ए़़ श्रेणी के कमांडर जीनतुल इस्लाम उर्फ डॉ उस्मान के लिए अंतिम संस्कार की प्रार्थना के लगातार ग्यारह सत्र आयोजित किए गए, जो 9 घेरा-और-खोज अभियानों से भागने के लिए जाने जाते थे. इस्लाम की ममेरी बहन होने के बाद भी इशरत को नहीं बख्शा गया. उसे बर्फ पर ठीक उसी स्थान पर गोली मार दी गई, जहां मारे गए आतंकवादी की अंतिम संस्कार की प्रार्थना की गई थी.

पुलवामा शहर में इशरत के डंगरपोरा इलाके में रामबियारा नदी के पार, जब उसके परिवार को उसकी हत्या के बारे में पता चला, तो निराशा छा गई. परिवार के कुछ लोगों ने उसके शव को उठाने का साहस भी जुटाया. उग्रवादी के पिता गुलाम हसन शाह के उनके घर पर आने और उनकी हत्या पर सवाल उठाने के बाद ही इसमें हस्तक्षेप किया गया. उनके अंतिम संस्कार में सौ से भी कम पड़ोसी और रिश्तेदार शामिल हुए.

इशरत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम कर रही थी और साथ ही पुलवामा के डिग्री कॉलेज में कंप्यूटर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी ले रही थी. कॉलेज से घर लौटते समय उसका अपहरण कर लिया गया और बाद में उसी रात उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई.

मौसम की पहली बर्फबारी का जश्न मनाना कश्मीर में सदियों पुरानी परंपरा थी. 1950 से 1980 के दशक में, शम्मी कपूर-सायरा बानो अभिनीत जंगली (1961) जैसी बॉलीवुड फिल्मों ने इस तमाशे में रंग भर दिया. 1989 में भयानक विस्फोट होने तक इसे किसी ने नहीं रोका.

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जैसे-जैसे बंदूक का डर कम होने लगा, कश्मीर के लोग बर्फबारी का जश्न मनाने के लिए बड़ी संख्या में बगीचों, सार्वजनिक पार्कों और पर्यटक रिसॉर्ट्स में जाने लगे. कई निवासियों के साथ-साथ पर्यटकों ने ‘शीन जंग’ का आनंद लेना शुरू कर दिया और देशी जीवों और वनस्पतियों के स्नोमैन क्लिपआर्ट बनाना शुरू कर दिया. घाटी का पहला इग्लू कैफे जनवरी 2021 में गुलमर्ग में और जनवरी 2023 में उसी होटल में एक इग्लू ग्लास-वॉल रेस्तरां दिखाई दिया.