प्रो. अख्तरुल वासे
स्कूली बच्चियों के हिजाब पहनने को मीडिया द्वारा पिछले कुछ दिनों में अकारण विवाद का विषय बना दिया गया है. मीडिया जगत इसके उन पहलुओं पर बहस में उतर आया है, जो न तो मुल्क की सामाजिक समरसता के लिए फायदेमंद है और न संविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता के अनुकूल है, बल्कि यह देश की बेहतर छवि को भी पूरे विश्व में धूमिल कर रहा है, क्योंकि यह मुद्दा राष्ट्रीय मीडिया से पूरे विश्व मीडिया तक फैल गया है और पूरी दुनिया के लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. कुछ लोगों के साथ साक्षात्कार इस मुद्दे को गलत तरीके से पेश कर रहे हैं या हिजाब के बारे में कुरआन और हदीस की स्पष्ट स्थिति को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, जो इस मुद्दे को और अधिक गंभीर और भ्रमित करने में एक प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं. वे आम जनता को गुमराह कर रहे हैं.
हम इस लेख में कुछ बिन्दुओं द्वारा हिजाब के संबंध में कुरआन और हदीस की वास्तविक स्थिति को स्पष्ट करना चाहते हैं, क्योंकि इसे उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखना और जानना बहुत जरूरी हैः
1. हिजाब अरबी भाषा का शब्द है, इसका मतलब पर्दा करना या ढकना होता है. वर्तमान में सिर को ढकने के लिए प्रयोग होने वाले कपड़े को हिजाब कहा जाता है, जबकि इस शब्द का वास्तविक अर्थ केवल ‘पर्दा करना’ है.
पवित्र कुरआन में भी ‘हिजाब’ शब्द का प्रयोग ‘‘पर्दा’’ और ‘‘घूंघट’’ के अर्थ में ही हुआ है. कुरआन में एक आयत (कुरआन का एक वाक्य) है, जो कहती है कि अल्लाह एक व्यक्ति से परदे या ओट के पीछे से बात करता है.
(शूरा-42ः51) सूरह मरियम में कहा गया है कि हजरत मरियम ने लोगों से पर्दा (हिजाब) कर लिया था. (मरियम-17ः19) कयामत के बारे में कुरआन कहता है कि स्वर्ग और नर्क के लोगों के बीच एक पर्दा (हिजाब) डाल दिया जाएगा. (आराफ-46ः7) इसी प्रकार कुरआन में सात स्थानों पर ‘हिजाब’ शब्द का प्रयोग घूंघट और ओट के अर्थ में किया गया है. यह बात सभी को समझनी चाहिए कि एक भाषा के शब्द का दूसरी भाषा में समान अर्थ नहीं होता है.
उदाहरण के लिए उर्दू में हम औरत शब्द का प्रयोग ‘महिला’ के लिए करते हैं, अरबी भाषा में औरत के लिए ‘अमरा‘त’ और ‘निसा’ के शब्द हैं. अरबी में ‘औरत’ शब्द का प्रयोग किसी और अर्थ में प्रयुक्त होता है.
2. इस्लाम ने शरीर के अंगों को ढकने और छुपाने का आदेश दिया है. यह आदेश अनिवार्य है, वैकल्पिक नहीं. यह नियम पुरुषों और महिलाओं दोनों पर लागू होता है. कानूनी भाषा में इसे ‘सतर को छुपाना’ और आम बोल चाल की जबान में ‘‘सतर-ए-औरत’’ कहते हैं, अर्थात् उन हिस्सों को छुपाना, जिन्हें छुपाने का आदेश दिया गया है. पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए शरीर के ये अंग अलग-अलग होते हैं. सतर के ये नियम वयस्क होने के बाद अनिवार्य हो जाते हैं.
3. जब कोई महिला घर से बाहर जाए, तो उसके शरीर के कौन से अंग उसे ढके होने चाहिए? इस संबंध में इस्लामी कानून इस प्रकार हैंः
- घर के महरम (परिचित) रिश्तेदारों के सामने महिला अपना चेहरा, सिर, गर्दन, पैर और हाथ खुले रख सकती है.
- गैर महरम (अपरिचित) पुरुषों के सामने औरत अपने दोनों हाथ और चेहरा खुला रख सकती है. यह इमाम अबू हनीफा और कुछ विद्वानों का मत है. अन्य विद्वानों का मत है कि पूरे शरीर पर पर्दा होना चाहिए, केवल आंख खुली रख सकती है, ताकि वह आराम से चल सके. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह अंतर चेहरे के खोलने से संबंधित है, सिर और बालों को कहीं भी खोलने की अनुमति नहीं है.
4. कुरआन ने महिलाओं के लिए दो जगहों पर हिजाब और घूंघट पहनने के आदेश को विशेष रूप से बताया है. इन दो जगहों के अतिरिक्त दूसरे अन्य स्थानों पर भी सामान्य दिशा-निर्देश बताए गए हैं. एक निर्देश सूरह नूर में है और दूसरा सूरह अल-अहजाब में है. सूरह नूर कुरआन के 18वें भाग में पुरुषों और महिलाओं दोनों को अपनी आंखों को नीचे रखने और शरीर के अंगों की रक्षा करने का आदेश दिया गया है.
उसके बाद महिलाओं को विशेष रूप से आदेश दिया गया है कि वे अपने श्रृंगार अर्थात् मेकअप इत्यादि को अपने किन-किन रिश्तेदारों को दिखा सकती हैं और दूसरे पुरूषों के सामने नहीं. इसी संदर्भ में महिलाओं से यह भी कहा गया है कि वे अपनी ओढ़नी अपने सीनों पर डालें. दुपट्टा और ओढ़नी को खिमार कहते हैं, इसका बहुवचन ‘खम्र’ है. सीना और गले को ‘जेब’ कहते हैं, जिसका बहुवचन ‘जुयूब’ है. इस आयत में दो बातों का आदेश हुआ है, एक श्रृंगार का छुपाने का और दूसरा सीनों पर दुपट्टा डालने का.
सूरह (अध्याय) अहजाब कुरआन के 22वें भाग में है. इस आयत में आदेश दिया गया है कि ‘‘ऐ नबी! कह दीजिए अपनी बीवियों, अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों को कि वे अपने ऊपर ‘जलबाब’ डाल लें. अरबी भाषा में चादर को जलबाब कहते हैं.
कुरआन की दोनों आयतों को देखते हुए यह आदेश अनिवार्य हो जाता है कि महिलाएं अपना श्रृंगार अजनबियों के सामने छिपाएं, अपने सीनों पर दुपट्टा डाल लें और घूंघट निकाल लें.
अब इसके साथ हदीस को देखिए. हजरत आयशा (रजि.) कहती हैं कि हजरत अस्मा बिन्त अबू बक्र पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) के पास आईं, उनके शरीर पर बहुत बारीक कपड़े थे, फिर पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने कहाः ‘‘ऐ अस्माः जब बच्ची बालिग हो जाए, तो उसके जिस्म के सिर्फ हाथ और चेहरा नजर आना चाहिए.’’ (अबू दाऊदः हदीस संख्याः 4104). इस प्रकार कुरआन और हदीस दोनों का आदेश यही है कि महिलाओं को अपरिचित पुरूषों के सामने अपना सिर नहीं खोलना चाहिए, अपना श्रृंगार नहीं दिखाना चाहिए, और अपने ऊपर ऐसा जलबाब और खिमार अर्थात् चादर या दुपट्टा या कुछ और डाल लेना चाहिए, जो घूंघट की तरह हो और सीना को ढंक ले. हालांकि, आपके पास अपना चेहरा ढंकने या न ढंकने का विकल्प है.
5. इस उद्देश्य और व्यवस्था का पालन किसी भी रूप में या किसी भी कपड़े से किया जा सकता है. इसके लिए जो कपड़ा आजकल प्रचलन में है, उसे स्कार्फ या हिजाब के नाम से जाना जाता है. कुछ महिलाएं अपना चेहरा ढक लेती हैं, कुछ नहीं, लेकिन कुरआन और हदीस के नियमों का पालन करने वाली सभी महिलाओं के सिर ढके होते हैं.
6. इस स्पष्टीकरण के बाद, यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि हिजाब पहनना कुरआन और हदीस का आदेश है और ऐसा करने से रोकना कुरआन के आदेश का पालन करने से रोकना है.
हमारे देश में हर समुदाय में सिर को ढंकने और लाज-लज्जा के कारण घूंघट निकालने का रिवाज हजारों वर्षों से है. देश के कई प्रान्तों में हिंदू महिलाएं अपना सिर ढंकती हैं और घूंघट निकालती हैं. सिख महिलाएं भी अपना सिर ढंकती हैं, यहां तक कि कोई भी पुरुष बिना सिर ढके गुरुद्वारे के अंदर नहीं जा सकता है. कई प्रांतों में, ईसाई नन और महिलाएं अपना सिर ढंकती हैं, क्योंकि यह उनके धर्म और संस्कृति में है. यही हाल मुस्लिम महिलाओं का भी है. मुस्लिम महिलाएं सिर्फ आज ही नहीं, बल्कि सैकड़ों सालों से अपना सिर ढक रही हैं. स्कूलों और कॉलेजों में कई पीढ़ियों ने इसी तरह अपनी शिक्षा पूरी की है. आज भी ईसाई नन स्कूल-कॉलेजों में सिर ढक कर पढ़ाती हैं.
मुस्लिम महिलाओं का सिर ढंकना उसी प्रकार धर्म का एक अभिन्न अंग है, जिस प्रकार दूसरे अन्य धर्मों के अन्दर है और हमारे देश का संविधान हर व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता भी देता है. जहां तक स्कूलों में ड्रेस का सवाल है, तो ड्रेस के रंग का स्कार्फ भी पहना जा सकता है और मुस्लिम बच्चियों द्वारा स्कार्फ पहनने से ड्रेस-कोड का उल्लंघन भी नहीं होगा, और न ही इससे अन्य किसी भी प्रकार की असुविधा की कल्पना भी की जा सकती है.
कुछ अतिवादियों ने देश की गंगा-जमुनी सभ्यता और आपसी प्रेम के वातावरण को बर्बाद करने के लिए लंबे समय से चली आ रही शांतिपूर्ण परंपरा को अशांति में बदलने का साधन बना लिया है और वह देश के शांतिपूर्ण माहौल को खराब कर रहे हैं. ऐसे शरारती तत्वों पर अंकुश लगाने की सख्त जरूरत है.
(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)