हिजाबः कुरआन और हदीस के परिप्रेक्ष्य में

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 19-02-2022
हिजाबः कुरआन और हदीस के परिप्रेक्ष्य में
हिजाबः कुरआन और हदीस के परिप्रेक्ष्य में

 

wasayप्रो. अख्तरुल वासे

स्कूली बच्चियों के हिजाब पहनने को मीडिया द्वारा पिछले कुछ दिनों में ‎अकारण ‎विवाद का विषय बना दिया ‎गया ‎है. मीडिया जगत इसके उन पहलुओं पर बहस ‎में उतर ‎आया है, जो न तो मुल्क की सामाजिक समरसता के लिए ‎फायदेमंद है और न ‎संविधान ‎‎द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता के अनुकूल है, बल्कि यह ‎देश ‎की ‎‎बेहतर छवि को भी पूरे विश्व में धूमिल कर रहा है, क्योंकि यह मुद्दा राष्ट्रीय ‎मीडिया से पूरे ‎विश्व मीडिया तक ‎फैल ‎गया है और पूरी दुनिया के लोगों का ध्यान अपनी ‎ओर आकर्षित ‎कर रहा है. कुछ लोगों के साथ साक्षात्कार ‎इस मुद्दे को गलत ‎तरीके से पेश कर ‎रहे हैं या ‎हिजाब के बारे में कुरआन और हदीस की स्पष्ट स्थिति को ‎तोड़-मरोड़ ‎कर पेश ‎कर रहे हैं, जो इस मुद्दे को और अधिक गंभीर और ‎भ्रमित करने में एक ‎प्रमुख भूमिका निभा रहे ‎हैं. वे आम ‎जनता को गुमराह कर रहे हैं.

हम इस लेख में कुछ बिन्दुओं द्वारा हिजाब के संबंध में कुरआन और हदीस की ‎वास्तविक स्थिति को ‎स्पष्ट करना चाहते हैं, क्योंकि इसे ‎उसके ‎वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखना ‎और जानना बहुत जरूरी हैः‎

‎1. हिजाब अरबी भाषा का शब्द है, इसका मतलब पर्दा करना या ढकना होता है. वर्तमान ‎‎में सिर को ढकने के लिए ‎प्रयोग होने वाले ‎कपड़े को हिजाब कहा जाता है, जबकि इस ‎‎‎शब्द का वास्तविक अर्थ केवल ‘पर्दा करना’ है. ‎

पवित्र कुरआन में भी ‘हिजाब’ ‎शब्द का ‎‎प्रयोग ‘‘पर्दा’’ और ‘‘घूंघट’’ के अर्थ में ही हुआ है. कुरआन में एक आयत ‎‎(कुरआन का एक ‎‎वाक्य) है, जो कहती है कि अल्लाह ‎एक व्यक्ति से परदे या ओट के पीछे से बात करता है.

‎‎‎(शूरा-‎‎42ः51) सूरह मरियम में कहा गया है कि हजरत मरियम ने लोगों ‎से पर्दा (हिजाब) ‎‎कर लिया था. (मरियम-17ः19) ‎कयामत के बारे में कुरआन कहता है कि स्वर्ग और नर्क ‎के ‎‎लोगों के बीच एक पर्दा (हिजाब) डाल दिया जाएगा. ‎‎(आराफ-46ः7) इसी प्रकार कुरआन में ‎‎सात स्थानों पर ‘हिजाब’ शब्द का ‎प्रयोग घूंघट और ओट के अर्थ में किया ‎गया है. यह ‎‎बात सभी को समझनी चाहिए कि एक भाषा के शब्द का दूसरी ‎भाषा में समान अर्थ नहीं ‎‎होता है.

‎उदाहरण के लिए उर्दू में हम औरत शब्द का प्रयोग ‘महिला’ के लिए करते हैं, ‎‎‎अरबी भाषा में औरत के लिए ‎‎‘अमरा‘त’ और ‘निसा’ के शब्द हैं. अरबी में ‘औरत’ शब्द ‎‎का प्रयोग किसी और अर्थ में प्रयुक्त होता है.‎

‎2. इस्लाम ने शरीर के अंगों को ढकने और छुपाने का आदेश दिया है. यह आदेश अनिवार्य ‎‎है, वैकल्पिक नहीं. यह ‎‎नियम पुरुषों और महिलाओं दोनों पर लागू होता है. कानूनी भाषा ‎‎में इसे ‘सतर को छुपाना’ और आम बोल चाल ‎की जबान में ‘‘सतर-ए-औरत’’ कहते हैं, ‎‎अर्थात् उन हिस्सों को छुपाना, जिन्हें छुपाने का आदेश दिया गया है. पुरुषों ‎और महिलाओं ‎‎दोनों के लिए ‎शरीर के ये अंग अलग-अलग होते हैं. सतर के ये नियम वयस्क होने के ‎‎बाद अनिवार्य ‎हो जाते हैं.

‎3. जब कोई महिला घर से बाहर जाए, तो उसके शरीर के कौन से अंग उसे ढके होने ‎‎चाहिए? इस संबंध में इस्लामी ‎‎कानून इस प्रकार हैंः‎

- ‎‎घर के महरम (परिचित) रिश्तेदारों के सामने महिला अपना चेहरा, सिर, गर्दन, पैर ‎और ‎हाथ खुले रख ‎सकती है.

- ‎गैर महरम (अपरिचित) पुरुषों के सामने औरत अपने दोनों हाथ और चेहरा खुला रख ‎‎सकती है. यह इमाम ‎अबू हनीफा और ‎कुछ विद्वानों का मत है. अन्य विद्वानों का मत है कि ‎‎पूरे शरीर पर पर्दा होना चाहिए, केवल ‎आंख खुली रख सकती है, ताकि वह आराम से चल ‎‎सके. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह अंतर चेहरे ‎के खोलने से संबंधित है, सिर और ‎‎‎बालों को कहीं भी खोलने की अनुमति नहीं है.

‎‎4. कुरआन ने महिलाओं के लिए दो जगहों पर हिजाब और घूंघट पहनने के आदेश को ‎‎विशेष रूप से बताया है. इन ‎दो ‎जगहों के अतिरिक्त दूसरे अन्य स्थानों पर भी सामान्य ‎‎दिशा-निर्देश बताए गए हैं. एक निर्देश सूरह नूर में है और ‎दूसरा सूरह अल-‎अहजाब में ‎‎है. सूरह नूर कुरआन के 18वें भाग में पुरुषों और महिलाओं दोनों को अपनी ‎‎‎आंखों को नीचे ‎रखने और शरीर के अंगों की रक्षा करने का आदेश दिया गया है.

उसके ‎‎बाद महिलाओं को विशेष ‎रूप से ‎आदेश दिया गया है कि वे अपने श्रृंगार अर्थात् मेकअप ‎‎इत्यादि को अपने किन-किन रिश्तेदारों को दिखा ‎सकती हैं और दूसरे पुरूषों के सामने ‎‎नहीं. इसी ‎संदर्भ में महिलाओं से यह भी कहा गया है कि वे अपनी ओढ़नी ‎अपने सीनों पर ‎‎डालें. दुपट्टा और ओढ़नी को खिमार कहते हैं, इसका ‎बहुवचन ‘खम्र’ है. सीना और गले ‎‎को ‎‎‘जेब’ कहते हैं, जिसका बहुवचन ‘जुयूब’ है. इस आयत में ‎‎दो बातों का आदेश हुआ ‎है, एक श्रृंगार का छुपाने का और दूसरा सीनों पर दुपट्टा डालने ‎‎का.

सूरह (अध्याय) अहजाब कुरआन के 22वें भाग में है. इस आयत में आदेश दिया गया ‎‎है कि ‘‘ऐ नबी! कह ‎दीजिए अपनी बीवियों, अपनी बेटियों और ईमानवाली स्त्रियों को कि वे ‎‎अपने ऊपर ‘जलबाब’ डाल लें. अरबी ‎भाषा में चादर को जलबाब कहते हैं. ‎

कुरआन की दोनों आयतों को देखते हुए यह आदेश अनिवार्य हो जाता है कि ‎‎महिलाएं अपना श्रृंगार ‎अजनबियों के सामने ‎छिपाएं, अपने सीनों पर दुपट्टा डाल लें और ‎‎‎घूंघट निकाल लें. ‎

अब इसके साथ हदीस को ‎देखिए. हजरत आयशा (रजि.) कहती हैं कि ‎हजरत ‎अस्मा बिन्त अबू बक्र पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) के पास आईं, ‎उनके शरीर पर बहुत ‎बारीक ‎कपड़े थे, फिर पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने कहाः ‘‘ऐ अस्माः जब बच्ची बालिग हो ‎‎जाए, तो ‎उसके जिस्म के सिर्फ हाथ और चेहरा नजर आना चाहिए.’’ (अबू दाऊदः हदीस ‎संख्याः ‎‎4104). इस प्रकार ‎‎कुरआन और हदीस दोनों का आदेश यही है कि महिलाओं को ‎‎अपरिचित पुरूषों के सामने अपना सिर ‎नहीं खोलना ‎चाहिए, अपना श्रृंगार नहीं दिखाना ‎‎चाहिए, और अपने ऊपर ऐसा जलबाब और खिमार अर्थात् चादर या दुपट्टा या ‎कुछ और ‎डाल लेना चाहिए, जो घूंघट की तरह हो और सीना को ढंक ले. ‎हालांकि, आपके ‎‎पास अपना चेहरा ‎ढंकने या न ढंकने का विकल्प है.

‎5. इस उद्देश्य और व्यवस्था का पालन किसी भी रूप में या किसी भी कपड़े से किया जा ‎सकता है. इसके लिए जो ‎कपड़ा आजकल ‎प्रचलन में है, उसे स्कार्फ या हिजाब के नाम ‎से ‎जाना जाता है. कुछ महिलाएं अपना चेहरा ‎ढक लेती ‎हैं, कुछ नहीं, लेकिन कुरआन और ‎‎हदीस के नियमों का पालन करने वाली सभी महिलाओं के सिर ढके होते ‎हैं.

6. इस स्पष्टीकरण के बाद, यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि हिजाब पहनना ‎कुरआन ‎और हदीस का ‎आदेश ‎है और ऐसा करने से रोकना कुरआन के आदेश का पालन ‎करने से ‎रोकना है.

हमारे देश में हर समुदाय में सिर को ढंकने और लाज-लज्जा के कारण घूंघट ‎निकालने का रिवाज हजारों ‎वर्षों से है. देश के कई प्रान्तों में हिंदू महिलाएं अपना सिर ‎‎ढंकती ‎हैं और घूंघट निकालती हैं. सिख महिलाएं भी ‎अपना सिर ढंकती हैं, यहां तक कि ‎कोई भी ‎पुरुष बिना सिर ढके गुरुद्वारे के ‎अंदर नहीं जा सकता है. कई प्रांतों में, ईसाई ‎नन ‎और महिलाएं अपना सिर ढंकती हैं, क्योंकि यह उनके ‎धर्म और संस्कृति में है. यही ‎हाल ‎मुस्लिम ‎महिलाओं का भी है. मुस्लिम महिलाएं सिर्फ आज ही नहीं, बल्कि सैकड़ों ‎‎सालों से ‎अपना सिर ढक रही हैं. स्कूलों ‎और कॉलेजों में कई पीढ़ियों ने इसी तरह अपनी ‎शिक्षा पूरी ‎की है. आज भी ‎ईसाई नन स्कूल-कॉलेजों में सिर ढक ‎कर पढ़ाती हैं.

मुस्लिम महिलाओं का सिर ढंकना उसी प्रकार धर्म का एक अभिन्न अंग है, जिस ‎‎प्रकार दूसरे अन्य ‎धर्मों ‎के अन्दर है और हमारे देश ‎का संविधान हर व्यक्ति को धर्म की ‎‎स्वतंत्रता भी देता है. जहां तक स्कूलों में ड्रेस का सवाल ‎है, तो ड्रेस के रंग का स्कार्फ भी ‎‎पहना जा सकता है और मुस्लिम बच्चियों द्वारा स्कार्फ पहनने से ड्रेस-कोड का ‎‎उल्लंघन ‎‎भी नहीं होगा, और न ही इससे अन्य किसी भी प्रकार की असुविधा की कल्पना भी की जा ‎‎सकती है. ‎

कुछ ‎अतिवादियों ने देश की गंगा-जमुनी सभ्यता और आपसी प्रेम के वातावरण ‎‎को बर्बाद करने के लिए लंबे ‎समय से ‎चली आ रही शांतिपूर्ण परंपरा को अशांति में बदलने ‎‎का साधन बना लिया है और वह देश के शांतिपूर्ण ‎माहौल को ‎खराब कर रहे हैं. ऐसे ‎‎‎शरारती तत्वों पर अंकुश लगाने की सख्त जरूरत है.‎

(लेखक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रोफेसर एमेरिटस (इस्लामिक स्टडीज) हैं.)