हम पाकिस्तानी ऐसे क्यों हैं ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-05-2024
Why are we Pakistanis like this?
Why are we Pakistanis like this?

 

suhaiसोहेल वाराइच

जब भी हम कोई सामूहिक गलती कर रहे होते हैं तो हम अपने स्वभाव पर भारी बोझ महसूस करते हैं और बार-बार सोचते हैं कि हम ऐसे क्यों हैं? प्रकृति का यह भारीपन वर्षों पहले सुने गए एक चुटकुले से हल्का हो जाता है, क्योंकि कभी-कभी आत्म-आलोचना  जटिल समस्याओं को समझने में मदद करती है. चुटकुले कभी-कभी सबसे जटिल समस्याओं का सारांश भी देते हैं.

 मज़ाक यह है कि नरक में प्रत्येक राष्ट्र के लिए एक गड्ढा आरक्षित है, प्रत्येक राष्ट्र के नारकीय लोग अपने-अपने गड्ढे में सज़ा भुगत रहे हैं. प्रत्येक गड्ढे के ऊपर स्वर्गदूतों का कड़ा पहरा लगा दिया गया है ताकि यदि कोई नरकवासी व्यक्ति अपने गड्ढे से बाहर आ जाए या भागने की कोशिश करे तो उसे रोका जा सकता है.
 
हालाँकि, नर्क में एक गड्ढा है जिस पर कोई पहरा नहीं देता. और वह गड्ढा पैराडॉक्सिस्तान के हेलेनिस्टों के लिए आरक्षित है. जब किसी ने दारोग़ा नर्क से पूछा कि इस गड्ढे पर कोई पहरेदार क्यों नहीं हैं, तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया, जब कोई इस गड्ढे से बाहर निकलने की कोशिश करता है, तो बाकी नरकवासी उसकी टांग खींचते हैं और उसे वापस नर्क में खींच लेते हैं,
 
इसलिए इस गड्ढे पर किसी चौकीदार या गार्ड की ज़रूरत नहीं होती है.  इस गड्ढे के निवासी ही एक दूसरे को नष्ट करने के लिए काफी हैं.हमारा इतिहास इस चुटकुले के लिए काफी प्रासंगिक है. राजनेता मजबूत सरकार बनाते हैं तो सत्ता पक्ष उनकी टांग खींचकर गिरा देता है. मीडिया स्वतंत्र हो गया.
 
इतना प्रभावी हो गया कि विदेशी मीडिया भी उस पर निर्भर हो गया, तब समाज के शक्तिशाली समूहों ने मीडिया में दरार पैदा करके मीडिया की टांगें खींच लीं. इसी तरह जब जनरल अयूब और जनरल मुशर्रफ ने आर्थिक विकास की यात्रा शुरू की तो राजनीतिक दलों ने एकजुट होकर इसे बेअसर कर दिया.
 
जब एक नौकरशाह ने लीक से हटकर सोचा और सार्वजनिक दृष्टिकोण अपनाया, तो हमारे सिस्टम ने इस विद्रोही को सबक सिखाया. न्यायपालिका ने विधानसभाओं के विघटन को उचित ठहराया. लाखों लोगों द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री को तीन या चार अहंकारी न्यायाधीशों ने द्वेषवश घर भेज दिया.
 
उन्हें न्याय का झूठा नाम दिया. आजकल हम सब जजों के पीछे-पीछे चल रहे हैं कि कहीं वे नरक के गर्त से निकलकर कुछ उल्लेखनीय न कर दें, इसलिए सब उनकी टांग खींच रहे हैं.न्यायपालिका के जिन छह न्यायाधीशों का पत्र बहुत विवादास्पद हो गया है, उनमें से दो को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं.
 
वे दोनों प्रतिष्ठित वकील थे. सार्वजनिक रूप से पत्रकार के रूप में जाने जाते थे, इसलिए यह जरूरी है कि मैं अपनी गवाही छिपाऊं नहीं बल्कि खुलकर बताऊं . जस्टिस बाबर सत्तार और जस्टिस अतहर मिनुल्लाह दोनों अमीर परिवारों से हैं. दोनों शीर्ष पर वकील थे . न्यायपालिका में शामिल हुए और पाकिस्तान में न्याय में सुधार के लिए भूमिका निभाई.
 
जज बनने से पहले जस्टिस बाबर सत्तार अखबारों में लेख लिखते थे. टॉक शो में अपनी राय देते थे. मैं न्यायमूर्ति बाबर सत्तार के विचारों और निर्णयों से असहमत हो सकता हूं, लेकिन मुझे उनकी सत्यनिष्ठा, कानून पर उनकी पकड़ और देश के प्रति उनकी निष्ठा पर कोई संदेह नहीं है.
 
वह चाहते तो विदेश में रहकर अरबपति बन सकते थे. अगर वह वकील होते तो करोड़ों रुपये वसूलते, लेकिन उन्होंने फैसला स्वीकार कर लिया.' ऐसे लोगों का सभी को सम्मान करना चाहिए. ऐसे लोग हमें नारकीय समाज से निकालकर कानून और न्याय के समाज में ले जा सकते हैं.
 
उनके मतभेदों को सहन किया जाना चाहिए. सुधार की दिशा में एक कदम माना जाना चाहिए. जस्टिस बाबर सत्तार के पक्ष में इससे बड़ी गवाही क्या होगी कि सरकार के अटॉर्नी जनरल और हमारे मित्र मलिक हैदर उस्मान के बेटे मंसूर अवान ने भी उनकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की सराहना की है.
 
 बाबर सत्तार जैसे महान लोग हमारे लिए एक प्रकाशस्तंभ हैं. भले ही वे असहमत हों, इसमें भी कुछ समझदारी होगी.जस्टिस अतहर मिनुल्लाह देश के मशहूर शिक्षित और नौकरशाह परिवार से हैं. वह न्यायपालिका स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे.
 
उनकी सही सोच तथा सार्वजनिक एवं लोकतांत्रिक सोच का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अहंकारी एवं अहंकारी न्यायाधीशों के बीच में बैठकर भी संसद को सर्वोच्च संस्था घोषित करते हैं. हालांकि कई बड़े विचारों वाले लेकिन संकीर्ण सोच वाले न्यायाधीश ऐसा करते हैं लोकतंत्र की तरह नहीं.
 
वे संसद के फैसलों को रौंद रहे हैं और अमान्य कर रहे हैं. आज के संकट काल में, अतहर मिन्नुल्लाह एक खजाना हैं. मुझे याद है कि पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष मियां इफ्तिखारुद्दीन ने पार्टी छोड़ दी और मुस्लिम लीग में शामिल हो गए.
 
मियां इफ्तिखारुद्दीन को उर्दू में एक पत्र लिखा (यह पत्र मियां परिवार के पास संरक्षित है) जिसमें उन्होंने कहा, "मियां, आप जहां भी हों, एक अच्छे इंसान हों." यह मानवीय गरिमा की निशानी है. जस्टिस बाबर सत्तार और जस्टिस अतहर मिनुल्लाह से मतभेद के बावजूद उनके सम्मान में कोई मतभेद नहीं होना चाहिए.
 
इतिहास में यह कहानी प्रसिद्ध है कि फ्रांस के राष्ट्रपति डीगॉल के समय में प्रसिद्ध दार्शनिक और बुद्धिजीवी जीन-पॉल सात्रे ने अल्जीरिया में हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई थी. डीगॉल को सात्रे को जेल में डालने की सलाह दी गई थी, डीगॉल ने इसका ऐतिहासिक जवाब दिया था "सरतार फ्रांस है, फ्रांस को जेल में कैसे डाला जा सकता है"? बाबर सत्तार और अतहर मिनुल्लाह जैसे लोग देश की अंतरात्मा हैं.
 
अंत में, न्यायाधीशों, जायलों, मंत्रियों और उनके विरोधियों, नागरिक वर्चस्व के समर्थकों और शक्तिशाली लोगों के वफादारों से मेरा सबसे विनम्र अनुरोध यह है कि हम नरक के गड्ढे में न बैठें .अपने सर्वोत्तम दिमागों के पैर न खींचें.
 
पूर्वाग्रह, घृणा और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अपनी जगह है, लेकिन जिन न्यायाधीशों का अतीत बेदाग है, जिन्होंने लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संसद की सर्वोच्चता के पक्ष में फैसले दिए हैं, उन्हें इस नजरिए से नहीं देखा जाता . भले ही वे सुकरात और भुट्टो की तरह आपके खिलाफ फैसला दें, 'माई लॉर्ड, माई लॉर्ड' कहें, उनके फैसले सुनें, इतिहास का फैसला आपके पक्ष में होगा.
 
अगर वे आपके पक्ष में फैसला देते हैं, लेकिन धन्यवाद अल्लाह ही काफ़ी है. बाबर सत्तार और अतहर मिनुल्लाह के न्यायाधीश बनने के बाद से मैं उनसे कभी नहीं मिला, लेकिन मुझे यकीन है कि वे हमारी न्यायपालिका के चमकते सितारे हैं. अटॉर्नी जनरल मंसूर अवान इन जजों के विपरीत खेमे में हैं, लेकिन फिर भी वे उनके पक्ष में बोल रहे हैं. देश की अंतरात्मा जागेगी, तब हर कोई उनके पक्ष में बोल सकेगा नरक के गड्ढे से बाहर आओ.
 
लेखक पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं