भूख की तकलीफ और दर्द को कभी हम समझ पाये !

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 28-05-2025
Can we ever understand the suffering and pain of hunger?
Can we ever understand the suffering and pain of hunger?

 

writer डॉ. प्रितम भि. गेडाम

दुनिया में करोड़ो लोग हर दिन भूख की तकलीफ़ को जीते हैं. बढ़ती उम्र, शारीरिक कमजोरी, गंभीर बीमारी, दिव्यांगता, अनाथ बेसहारा या कोई भी मजबूरी हो, जब तक आखिरी सांस है, तब तक भूख मिटाने के लिए अनाज चाहिए.केवल दो वक्त की रोटी के जद्दोजहद में ही न जाने कितनो की जिंदगी गुजर जाती है.दुनिया में हर कोई अपने हिस्से का भरपेट अन्न प्राप्त नहीं कर पाता. अब तो अन्न में पोषक तत्वों की भारी कमी भी बड़ी समस्या है.

भूख की कीमत बहुत छोटीसी है.फिर भी विश्व में बहुत बड़ा वर्ग इस कीमत को भी नहीं चूका पाता.दो वक्त की रोटी और परिवार के भरणपोषण के लिए मनुष्य लगातार संघर्ष करता है.

भूख के कारण कई मासूम जिंदगियां कम उम्र में ही जान गंवाती है.अमीर का भोजन महंगा और गरीब का भोजन सस्ता हो सकता है परंतु भूख सबकी एक होती है, भले ही पैसा, पद, देश, प्रतिष्ठा, रंग-रूप, ऊंच-नीच, धर्म-जात कोई भी हो परंतु भूख में अंतर नहीं होता.

जिनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध है उनको अन्न के मूल कीमत का ज्ञान नहीं होता, वें केवल पैसे से उसका दाम लगाते है, इसलिए शायद खाद्य बर्बादी में हमारा देश विश्व में दूसरे क्रमांक पर आता है.

जिनके पास भरपूर मात्रा में भोजन के विभिन्न पर्याय उपलब्ध है, वे स्वाद अनुरूप थोडासा खाना खाकर बाकी बचा हुआ अन्न सहजता से फेंक देते है.किसी भी कारणवश जिस दिन हमें भूख लगने पर भी भोजन नहीं मिलता, उस दिन रूखी-सुखी रोटी की भी अहमियत दुनिया की बड़ी दौलत नजर आती है.

भोजन की कमी के कारण बहुत बड़ी जनसंख्या नरकीय यातनाओं में जीवन बसर करती है.जन्म से भोजन की कमी के कारण बच्चों का सर्वांगीण विकास नहीं होता.

संघर्षमय जीवन तभी से शुरू हो जाता है, जिम्मेदारियों का बोझ मासूम कंधो पर आ जाता है. इन जिम्मेदारियों के आगे उनके अधिकार, न्याय, समानता भी बौने प्रतीत होते है.

बच्चे से उसका बचपन और मासूमियत छीन ली जाती है, भविष्य अंधकारमय लगता है.अन्न की कमी से जूझते हुए लोग मजबूरी में बद से बदतर स्थिति का सामना करते है, जो मिले वो खाने को तैयार होते है, लोगों की जूठन, कूड़ा, घासपुस यहाँ तक की मिट्टी तक खाते है, हैती देश में गरीब लोग मिट्टी की रोटी बनाकर खाते है.भूख सीधे हमारे स्वास्थ्य पर असर करती है, इससे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के नुकसान झेलने पड़ते है.भूख इंसान से गुनाह तक करवाती है.

हर साल 28 मई को "विश्व भूख दिवस" दुनियाभर में जागरूकता हेतु मनाया जाता है.इस साल 2025की थीम "हर कोई खाने का हकदार है" यह है.यह थीम प्रत्येक के लिए पौष्टिक भोजन तक पहुंच सुनिश्चित करने के महत्व पर प्रकाश डालती है.

विश्व में सभी लोगों को खाने के लिए पर्याप्त भोजन उगता है, अर्थात कोई भूखा नहीं रहेंगा, फिर भी, बड़ी जनसंख्या पर्याप्त कैलोरी और पोषक तत्वों की कमी से झुज रही है, क्योंकि वे स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते, साथ ही दूसरी ओर खाद्य बर्बादी है.

हर साल, नौ मिलियन लोग भूख से संबंधित कारणों से मर जाते हैं; इनमें से कई 5वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं.सभी बाल मृत्युओं में से आधे कुपोषण के कारण होती हैं.

विश्व बैंक के अनुसार, वैश्विक खाद्य कीमतों में मात्र 1प्रतिशत की वृद्धि से 10मिलियन लोग अत्यधिक गरीबी में चले जाते है.वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक अनुसार, 18.3प्रतिशत आबादी अत्यधिक बहुआयामी गरीबी में रहते हैं.

83.7प्रतिशत गरीब लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं.सभी गरीब लोगों में से लगभग 70.7प्रतिशत लोग उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया के ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं.

2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 127देशों में 105वें स्थान पर है, जिसका स्कोर 27.3है, जो भूख के "गंभीर" स्तर को दर्शाता है.यह खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की मौजूदा चुनौतियों के कारण उत्पन्न "गंभीर" भूख संकट को उजागर करता है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि पांच वर्ष से कम आयु के 35.5प्रतिशत बच्चे अविकसित है.बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों का प्रदर्शन अच्छा है तथा वे "मध्यम" श्रेणी में आते हैं.यूएनईपी की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2024में भारत वैश्विक स्तर पर शीर्ष खाद्य अपशिष्ट उत्पादकों में शामिल है, भारत में प्रति व्यक्ति घरेलू खाद्यान्न की बर्बादी प्रति वर्ष 55 किलोग्राम है, देश में विशाल जनसंख्या के कारण प्रति वर्ष कुल 78मिलियन टन खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है.

विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति के 2024 संस्करण के अनुसार, 2023 में 713 से 757 मिलियन लोगों को भूख का सामना करना पड़ा अर्थात दुनिया में हर 11 में से एक व्यक्ति और अफ्रीका में हर पांच में से एक व्यक्ति.रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2.33 बिलियन लोग मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे है और 3.1अरब से अधिक लोग पोषकतत्वों से भरपूर आहार खरीदने में असमर्थ है.

सेव द चिल्ड्रेन इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन के विश्लेषण के अनुसार, 2024में कम से कम 18.2मिलियन बच्चे भूख की स्थिति में पैदा हुए, अर्थात प्रति मिनट लगभग 35बच्चे.संघर्ष और जलवायु संकट की यह स्थिति प्रत्येक वर्ष कम से कम 800,000अतिरिक्त बच्चों को भूख की ओर धकेलेंगी.

संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक भुखमरी को दुनिया से पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य रखा है, यद्यपि कुछ क्षेत्रों में प्रगति हो रही है, फिर भी समग्र रूप से भूख का स्तर पिछले कुछ वर्षों से स्थिर बना हुआ है.

जलवायु परिवर्तन, संघर्ष और आर्थिक असमानता जैसे कारक समस्या को अधिक बढ़ा रहे हैं.कंसर्न वर्ल्डवाइड के अनुसार, यदि प्रगति की वर्तमान गति जारी रही, तो भुखमरी के स्तर को कम करने में साल 2160 तक का समय लग सकता है.

2024 के वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक में भारत 143 देशों में से 126 वें स्थान पर है.ऑक्सफैम रिपोर्ट ने दर्शाया है कि, शीर्ष 1प्रतिशत की आय हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हुई है.

शीर्ष 5 प्रतिशत भारतीयों के पास देश की 60 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है, निचले 50 प्रतिशत लोगों की आय में हिस्सेदारी में लगातार गिरावट आई है.ऑक्सफैम इंडिया की "सर्वाइवल ऑफ द रिचेस्ट" रिपोर्ट 2023 अनुसार, भारत में अरबपतियों की कुल संख्या 2020 में 102से बढ़कर 2022 में 166 अरबपति हो गई है, जबकि भूख से जूझ रहे भारतीयों की संख्या 190 मिलियन से बढ़कर 350मिलियन हो गई है.

वस्तुओं और सेवाओं पर उत्पाद शुल्क और जीएसटी में काफी वृद्धि की गई है, जिसका सीधा असर अधिकतर गरीबों के हिस्से पड़ता है.भारत के अरबपतियों की कुल संपत्ति 2024 में 2ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर बढ़ी, जिससे 204 नए अरबपति बनें.

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट अनुसार, 2019-2021में भारत में कुपोषित लोगों की संख्या 224.3मिलियन थी, जो कुल आबादी का लगभग 16प्रतिशत है.आज भी शादी समारोह या प्रसंगों के कार्यक्रम में लोग खूब थालियां भरभरकर भोजन लेकर फेंक देते है.

वहीं दूसरी ओर कूड़े करकट में लोग खाना बीनते भी नजर आते है, यह हमारा बड़ा दुर्भाग्य है, कि अनाज संपन्न होते हुए भी देश का बड़ा हिस्सा भूख और कुपोषण से ग्रस्त है.

पोषकतत्वों से भरपूर शुद्ध आहार, पानी पर प्रत्येक का अधिकार है, परंतु आर्थिक परिस्थिति के कारण संभव नहीं हो पाता, परंतु मानवता के नाते हर संपन्न व्यक्ति इसके लिए कोशिश करें तो भरपेट भोजन सबके लिए संभव है.हर हाथ को काम मिले तो स्थिति बदल सकती है.भूख की तकलीफ हम सबने समझनी होगी, तभी हर सांस को अन्न की आस पूरी होगी.