टूटती मर्यादाओं के बीच एक उम्मीद

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 15-01-2024
Awaaz The Voice's growing steps: A hope amid breaking limits
Awaaz The Voice's growing steps: A hope amid breaking limits

 

joshiप्रमोद जोशी

दो साल पहले मेरे पूर्व सहयोगी हाशमी जी ने जब ‘आवाज़-द वॉयस’ के बारे में बताया, तब एकबारगी मुझे समझने में देर लगी. वजह यह थी कि मैं समझता हूँ कि इस दौर के ज्यादातर मीडिया हाउस आत्यंतिक (एक्स्ट्रीम) दृष्टिकोण को अपनाते हैं. वे खुद को तेज़, बहादुर और लड़ाकू साबित करने की होड़ में हैं.

मर्यादा, संज़ीदगी, शालीनता और संतुलित दृष्टिकोण ‘दब्बू-नज़रिया’ मानने का चलन बढ़ा है. सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में मेल-मिलाप की जगह उत्तेजना और अतिशय सनसनी ने ले ली है. इस लिहाज़ से ‘आवाज़’ का यह प्रयोग मेरे लिए नया और स्फूर्ति से भरा था.

इस वेबसाइट में शुरू में मैंने राजनीतिक सवालों को उठाने की कोशिश की. 15अगस्त 2022 के मौके पर ‘आवाज़’ की ओर से अनुरोध किया गया कि आज़ादी के बाद ‘देश के औद्योगिक विकास में मुसलमानों की भूमिका’ पर लिख सकें, तो लिखिए.मेरे लिए यह विषय नया था.

जब मैंने इस लेख को लिखने के लिए अपनी जानकारी के दायरे को बढ़ाया, तब बहुत सी नई जानकारियाँ मुझे हासिल हुईं. मेरी समझ से भारत के मुस्लिम उद्यमियों की भूमिका पर बहुत कम काम हुआ है. इसपर काफी काम होना चाहिए.

दुर्भाग्य से देश में ऐसे मौके भी आए, जब मुस्लिम कारोबारियों के बहिष्कार की अपीलें जारी की गईं. जबकि स्थिति यह है कि उद्यमिता और कारोबार ने देश की सामाजिक-एकता को स्थापित करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है. इसमें देश के मुसलमानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है.

नियमित रूप से ‘देस-परदेस’ स्तंभ लिखने के कारण मुझे देश के सामाजिक ताने-बाने पर लिखने का ज्यादा मौका नहीं मिला, पर इस वेबसाइट के माध्यम से पढ़ने और जानने का मौका ज़रूर मिला. ‘सोच हिंदुस्तानियत की’ टैगलाइन वास्तव में सकारात्मक ऊर्जा भरती है.

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब मेरे कुछ लेख हिंदी के साथ अंग्रेजी, उर्दू, असमिया और मराठी में भी छपे. कह नहीं सकता कि मेरी आवाज़ कितनी दूर तक गई, पर इसमें दो राय नहीं कि ‘आवाज़-द वॉयस’ का दायरा बहुत दूर तक जाता है. इसमें मेरा सुर भी मिलकर, हमारा सुर बन जाता है.

यह आवाज़ ज्यादा से ज्यादा दूर जानी चाहिए. तीन साल के सफर में इसने अपनी अच्छी पहचान बना ली है. यह सफर ज़ारी रहना चाहिए, और देश की शेष भाषाओं में भी इसे शुरू होना चाहिए. इस मनोकामना के साथ इस परिवार के सभी सदस्यों को बधाई और अनेकानेक शुभकामनाएं.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )