पटना में याद किए गए शहीद पत्रकार मौलवी बाकिर अली,उर्दू सहाफत पर चर्चा

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 18-09-2022
पटना में याद किए गए शहीद पत्रकार मौलवी बाकिर अली
पटना में याद किए गए शहीद पत्रकार मौलवी बाकिर अली

 

सेराज अनवर / पटना
 
उर्दू के पत्रकार मौलवी बाकिर अली भारत की आजादी के लिए शहीद होने वाले पहले पत्रकार थे.16 सितंबर को फिरंगियों ने उन्हें तोप से उड़ा दिया था.बिहार में उनकी शहादत दिवस पर पिछले वर्ष से उन्हें  याद करने का सिलसिला बना हुआ हैै.

इस बार में उन्हें उर्दू सहाफियों ने खिराज ए अकीदत के बतौर उर्दू अकादमी में एक संगोष्ठी का आयोजन किया.उर्दू मीडिया फोरम द्वारा आयोजित संगोष्ठी में मौलवी बाकिर अली के जीवन और सेवाओं पर शोध पुस्तक लिखने वाले लखनऊ के आदिल फराज भी शामिल हुए.
 
अपने संबोधन में उन्होंने मौजूदा उर्दू सहाफत पर चिंता व्यक्त की.बिहार सरकार के मंत्री शाहनवाज आलम ने नई नस्ल को उर्दू जबान सीखने पर जोर दिया.
 
बाकिर अली कौन थे ?

उर्दू पत्रकारिता को अपने खून जिगर से सींचने वाले पत्रकारों में पहला नाम दिल्ली उर्दू अखबार के संपादक मौलवी बाकिर अली का आता है.इनकी देश और मातृभूमि के प्रति वफादारी के लिए 16 सितंबर,1857 को अंग्रेजों ने तोप से उड़ा दिया था.
 
यह भारत की किसी भी भाषा में पत्रकारिता का पहला राष्ट्रीय बलिदान था.जिसने न केवल उर्दू बल्कि भारत की अन्य भाषाओं की पत्रकारिता के लिए एक मानक स्थापित किया.
 
सदियों तक हमारी पत्रकारिता इस बलिदान और नैतिकता के मानक के अधीन रही. मौलवी बाकिर अली की शहादत भारत में हर पत्रकारिता पेशेवर के लिए यादगार दिन है.
 
पक्ष-विपक्ष से ऊपर है पत्रकारिता

लखनऊ के आदिल फराज ने मौलवी बाकिर अली की जीवनी को अपनी पुस्तक में प्रतिबिंबित किया है.उन्हें खास तौर से इस संगोष्ठी में अपना विचार रखने के लिए बुलाया गया था.
 
उन्होंने कहा कि आजकल उस तरह की पत्रकारिता नहीं हो रही है जिस प्रकार पहले हुआ करती थी.पत्रकारिता का मतलब किसी का पक्ष या विपक्ष नहीं हैए किसी भी चीज की तह तक जाकर उसकी सच्चाई पाठक तक पहुंचाना है.
 
कार्यक्रम के अवसर पर उर्दू मीडिया फोरम के अध्यक्ष मुफ्ती सनाउल होदा कासमी की सेवाओं जुड़ी अतिथियों अब्दुल रहीम की पुस्तक ‘मुफ्ती मुहम्मद सनाउल होदा कासमीः फ्रॉम द आईज ऑफ पोएट्स’ का विमोचन भी किया गया.
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मंत्री ने उर्दू पढ़ने-पढ़ाने पर दिया जोर

बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन मंत्री शाहनवाज हुसैन ने स्वीकार किया कि वे उर्दू के कम जानकार हैं.लेकिन अपने दोनों बच्चों को उर्दू सीखने के लिए प्रेरित करते रहते हैं.क्योंकि नई नस्ल को उर्दू से अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए .
 
उन्होंने कहा कि उर्दू की पहचान अब केवल मुशायरा तक ही सीमित रह गई है.उन्होंने कहा कि 17 वर्षों बाद बिहार में एक नई उम्मीद जगी है.हम लोग चीजों को बारीकी से देख रहे हैं. बेहतर करने की कोशिश करेंगे.उन्होंने कहा कि उर्दू मीडिया और  मदरसों की समस्याओं का निदान कराने की भरपूर प्रयास करेंगे.
 
ये थे संबोधित करने वाले

उर्दू मीडिया फोरम के संरक्षक मौलाना शमीम उद्दीन  मुनअमी ने गोष्ठी की अध्यक्षता की.जबकि उर्दू मीडिया फोरम के संरक्षक अशरफ फरीद,महासचिव डॉ रेहान गनी कार्यवाहक महासचिव प्रो सफदर इमाम कादरी, सैयद शाहबाज, अब्दुल वाहिद रहमानी ,अनवारुल हसन बस्तवी  ने भी मौलवी बाकिर अली के जीवन और सेवाओं पर प्रकाश डाला.
 
इसके अलावा  पत्रकारिता और साहित्य जगत के जाने-माने लोगों ने भी अपने विचार रखे.