आवाज द वॉयस /अलवर.
मॉब लिंचिंग को लेकर देश-दुनिया में बदनाम राजस्थान के अलवर जिले से एक सुकून देने वाली खबर सामने आई है. यहां के रामगढ़ कस्बे में हिंदू मुस्लिम भाईचारे की अनोखी तस्वीर देखने को मिली है. रामगढ़ में बचपन में मां-बाप को खो चुकी बेटी की शादी में मुस्लिम समुदाय के लोग मामा बनकर मायरा (भात) भरने पहुंचे. इस दौरान मुस्लिम समाज के भाइयों ने 31 हजार नकद व अन्य सामान भेंट किया और बारात के लिए भोजन की व्यवस्था करने में भी मदद की.
न्यूज18 की खबर के मुताबिक, शुक्रवार को रामगढ़ कस्बा निवासी बीना आरुषि उर्फ कंचन की शादी तय हुई थी. इसकी सूचना अंजुमन शिक्षा समिति के अध्यक्ष व पंचायत समिति के अध्यक्ष नसरू खान तक पहुंची. बताया गया कि आरुषि जब एक साल की थी तभी उसके माता-पिता का देहांत हो गया था.
आरुषि की परवरिश उसके चाचा-चाची ने किसी तरह से की है. आर्थिक तंगी के बावजूद चाचा जयप्रकाश जांगिड़ ने आरुषि को एमए तक पढ़ाया. अब भतीजी के रिश्ते से परेशान होकर उसने ढोली दुब निवासी दलचंद से अपना रिश्ता तय कर लिया.
यह जानकारी मिलने के बाद अंजुमन शिक्षा समिति ने आरुषि का मायरा (भात) भरने का फैसला किया. शुक्रवार की शाम पूरी तैयारी के साथ प्रधान नसरू खान की अध्यक्षता में शिक्षा समिति के सदस्य चावल लेकर आरुषि के घर पहुंचे. वहां आरुषि की शादी पूरी रस्मों से भरी हुई थी.
मुस्लिम समुदाय के ये लोग आरुषि की मौसी को अपनी बहन मानते थे और उन्हें चुनरी प्रदान की. समिति ने आरुषि के परिवार को 31 हजार नकद व अन्य सामान भेंट किया. हिंदू रीति-रिवाजों को निभाते हुए नसरू खान ने आरुषि को आशीर्वाद दिया. इस पर आरुषि उन्हें गले लगाकर इमोशनल हो गईं. यह नजारा देखकर वहां मौजूद लोगों की आंखों से आंसू छलक पड़े.
रामगढ़ में मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा भारत भरने की खबर चर्चा का विषय बनी हुई है. कस्बे के लोगों का कहना है कि मां-बाप की बेटी के बिना भात भरने आए मुस्लिम समाज के लोगों ने हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की है.
अंजुमन शिक्षा समिति लंबे समय से गरीब और गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में भात के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करती रही है. इसमें पंचायत समिति के अध्यक्ष व शिक्षा समिति के अध्यक्ष नसरू खान व इससे जुड़े मुस्लिम समाज के लोगों ने विशेष भूमिका निभाई है.
जयप्रकाश जांगिड़ ने बताया कि कंचन के माता-पिता की मृत्यु 2001 में हुई थी. उस समय कंचन 1 वर्ष की थी. गरीबी की स्थिति के बावजूद कंचन को एमए तक पढ़ाया गया. वह लोगों से कर्ज लेकर अपनी बेटी की शादी कर रहा था, लेकिन चावल भरने आए मुस्लिम समाज के लोगों ने आधी टेंशन दूर कर दी. वे मायरा फरिश्तों की तरह लाए. वे इसे कभी नहीं भूल पाएंगे.