कट्टरपंथियों से निपटना है तो धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करना होगा : कॉन्क्लेव में मुसलमानों से आह्वान

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 21-08-2022
कट्टरपंथियों से निपटना को धर्मनिरपेक्ष ताकतों जुड़ें: कॉन्क्लेव में मुसलमानों से आह्वान file photo
कट्टरपंथियों से निपटना को धर्मनिरपेक्ष ताकतों जुड़ें: कॉन्क्लेव में मुसलमानों से आह्वान file photo

 

आवाज द वॉयस /हैदराबाद 
 
निराश होना एक बात है और निराशा में डूब जाना दूसरी बात. देश में बढ़ते कट्टरवाद के बावजूद, मुसलमानों के लिए सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. उम्मीद की कड़ियां बाकी हैं. भारत अभी भी धर्मनिरपेक्ष लोगों का देश है. आवश्यकता है धर्मनिरपेक्ष ताकतों और गैर-मुसलमानों के साथ काम करने का.

 
यह व्यापक सहमति बनी शनिवार को यहां मुस्लिम बुद्धिजीवियों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में. इंडियन मुस्लिम फॉर सिविल राइट्स के तत्वावधान में, विभिन्न क्षेत्रों के संबंधित नागरिक मुफ्फखम जाह कॉलेज में इस बात पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए कि कट्टरवादियों का मुकाबला करने के लिए क्या किया जाए ?
 
कुछ वक्ताओं ने महसूस किया कि अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के संस्थागत दमन का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरना चाहिए, जबकि कुछ ने अन्याय के हर कृत्य को चुनौती देने के लिए वकीलों की टीम गठित करने का आह्वान किया.
 
सेवानिवृत्त आईपीएस निसार अहमद जैसे कुछ लोगों ने कहा कि मौजूदा शासन को बाहर करने के लिए चुनावी प्रक्रिया सबसे अच्छा तरीका है. दुर्भाग्य से, मुसलमानों को उनके निपटान में शक्तिशाली हथियार का एहसास नहीं है. मतदान का खराब प्रतिशत समुदाय के लिए अभिशाप है.
 
नेशनल सेंटर फॉर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के प्रमुख अहमद ने कहा कि शत-प्रतिशत मतदाता पंजीकरण और मतदान और मुसलमानों द्वारा किसी एक पार्टी का समर्थन करने से पूरा परिदृश्य बदल जाएगा. उन्होंने कहा, हम एक निष्पक्ष सरकार चुन सकते हैं और निराश होने की जरूरत नहीं है.
 
इस साल जून में गठित आईएमसीआर देश में मुसलमानों, अन्य अल्पसंख्यकों और उत्पीड़ित समूहों के नागरिक और संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए एक गैर-राजनीतिक और गैर-धार्मिक दृष्टिकोण अपनाना चाहता है. इसका उद्देश्य समाज में उत्पीड़न और ज्यादतियों के शिकार लोगों, विशेषकर मुसलमानों को कानूनी, वित्तीय और अन्य आवश्यक सहायता प्रदान करना है. 
 
बता दे कि आईएमसीआर पूर्व राज्यसभा सांसद मोहम्मद अदीब के दिमाग की उपज है. इससे पहले दिल्ली और मुंबई में इस तरह की बैठकें कर चुके हैं ताकि मुसलमानों के समले पर पर चर्चा की जा सके.
 
हैदराबाद कॉन्क्लेव में अदीब ने कहा, यहां के समुदाय तक पहुंचना और आईएमसीआर के मिशन को शुरू करना है. उन्होंने हैदराबाद में मुसलमानों की भागीदारी की मांग की.उन्हांेने कहा कि चर्चा और बहस के लिए समय नहीं है. हम उस देश को बचाने के लिए अभी कार्रवाई चाहते हैं जिसका धर्मनिरपेक्ष ताना-बाना दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा है.
 
एक भावनात्मक भाषण में, अदीब ने कहा कि हाल ही में 75 वें स्वतंत्रता समारोह में समुदाय फिर से फंस गया. राष्ट्रीय ध्वज फहराने और रैलियां निकालने में अल्पसंख्यक संस्थाएं और मदरसे सबसे आगे रहे. लेकिन गुरुकुलों और आश्रमों ने ऐसा कुछ नहीं किया. कांग्रेस ने भी नेहरूवादी विरासत को प्रदर्शित करने के बजाय उसका अनुसरण किया. उन्होंने कहा, हम कब तक किसी के एजेंडे में फंसते रहेंगे.

देश में हो रही गंभीर स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए, अदीब ने कहा कि अब व्यक्तिगत नेतृत्व की कोई गुंजाइश नहीं है. सामूहिक नेतृत्व की आवश्यकता है. लोकतंत्र, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को मजबूत करने के लिए समाज के सभी वर्गों, वकीलों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिलाओं को एक साथ आना चाहिए. भावुक और भावनात्मक दृष्टिकोण नहीं चलेगा. हम जो कुछ भी करते हैं उसमें हमें तर्कसंगत और तार्किक तरीका अपनाना होगा.
 
जल संसाधन के पूर्व अध्यक्ष मसूद हुसैन ने कहा कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों को कवर करने के लिए हैदराबाद में आईएमसीआर की एक राज्य स्तरीय समिति गठित करने का प्रस्ताव है. समिति में एक नीति समूह, एक मीडिया समूह, एक कानूनी समूह और एक वित्तीय प्रबंधन समूह होगा.
 
 
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने हैदराबाद वासियों से आईसीएमआर गतिविधियों में सक्रिय भाग लेने की अपील की. केवल मुसलमान ही नहीं, अन्य समुदायों के लोगों का भी इसके कार्यक्रमों में भाग लेने और देश में धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता की रक्षा में योगदान देने के लिए स्वागत किया गया.
 
उन्हांेने कहा, हैदराबाद ने हमेशा मुस्लिम समुदाय और बड़े पैमाने पर देश के मामलों में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हैदराबादियों को एक बार फिर इस जिम्मेदारी को निभाना है.
 
उर्दू दैनिक, द सियासत न्यूज के संपादक, आमेर अली खान ने कहा कि मुसलमानों को किसी के प्रति अपनी वफादारी साबित करने की जरूरत नहीं, क्योंकि वे अपनी पसंद से भारत में हैं. बढ़ते सांप्रदायिक विमर्श पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ही अब समुदाय के लिए एकमात्र उम्मीद बची है क्योंकि अन्य तीन स्तंभ - विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया सभी झुक गए हैं.
 
के.आर. दानिश अली, सांसद फुजैल अयूबी, सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉ. आजम बेग, अध्यक्ष, नेहरू एजुकेशनल सोसाइटी, राजस्थान ने भी अपने विचार रखे.