शगुफ़्ता नेमत
बुराई से नफ़रत करें न कि बुरा करने वालों से, क्योंकि बुरा व्यक्ति कभी अच्छा भी बन सकता है.मगर बुराई के बारे में अगर सोचा न जाए और उसे जड़ से समाप्त करने की कोशिश न की जाए तो उसकी शाखें फैलती चली जाती हैं.वह अपने साथ चार बुराइयों और ले आती हैं.
बुरी ख़बरों को दिखाकर हम बुराई का अंत तो नहीं कर पाते, निरपराध लोगों के ख़िलाफ़ भी दिलों में नफ़रतों का बीज बोते चले जाते हैं.अगर मिल बैठ कर समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया जाए तो समस्या इतना गंभीर रूप धारण नहीं करेगी.जिस तरह आए दिन मस्जिदों में जुमे की नमाज़ एक वाद विवाद का विषय बनकर रह गया है.
रमज़ान मुसलमानों का पवित्र महीना माना है.इसलिए कि इस महीने में मुसलमानों का पवित्र ग्रंथ क़ुरान आसमान से ज़मीन पर उतारा गया था.सभी मुसलमान इस महीने में उपवास रखते हैं . अपना अधिक से अधिक समय इबादत में गुज़ारते हैं ताकि पाप से बचे रह सकें और अपने अल्लाह को राज़ी कर सकें.
जिस तरह महीने में रमज़ान का महीना पवित्र माना जाता है उसीतरह दिनों में शुक्रवार के दिन को खास अहमियत दी जाती है. इस दिन मस्जिदों में जुमे की नमाज़ में भीड़ उमड़ जाती है. रमज़ान के महीने में जुमे की नमाज़ में लोग आम दिनों के मुकाबले ज्यादा उमड़ पड़ते हैं.
जिस कारण मस्जिदों में जगह न मिलने पर लोग मस्जिद के बाहर भी नमाज़ अदा करते हैं. मगर इस्लाम भी किसी को तकलीफ पहुंचाने को पसंद नहीं करता,इसलिए अगर हमारे बाहर नमाज़ पढ़ने में किसी को कोई तकलीफ हो रही है तो हमें उससे बचना चाहिए.
आवाज़ द वयास ने कुछ बुद्धिजीवियों से बातचीत कर इस समस्या के निदान हेतु कुछ ठोस क़दम उठाने की पहल की है,ताकि नमाज़ भी अदा की जा सके और लोगों को परेशानी भी न हो.इसी पहल से जुड़ी कड़ियों में WORK संस्था के संस्थापक सैयद अब्दुल्लाह तारिक से बातचीत करने पर उन्होंने अवाज़ द वयास को बताया कि अगर मस्जिदों में जगह न मिले तो नमाज़ सड़कों की अपेक्षा पार्क अथवा मैदानों में पढ़ना ज़्यादा उचित होगा.क्योंकि किसी के मार्ग में रुकावट डालने को भी हमारा धर्म इस्लाम पसंद नहीं करता.
अगर नमाज़ मस्जिदों में भीड़ भाड़ के कारण पार्क अथवा मैदानों में पढ़ी जा रही हो तो दूसरे धर्म वालों को भी थोड़ा सहयोग देना चाहिए,क्योंकि नमाज़ किसी मनुष्य के लिए नहीं अपितु अल्लाह के लिए पढ़ी जाती है जो सारी मानव जाति का पालन हार है.
अगर किसी क्षेत्र में मस्जिदें न के बराबर हों तो वहाँ मस्जिद स्थापित करने हेतु विचार विमर्श करना चाहिए. इसके लिए वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन भी काम में लाई जा सकती हैं.इसके अतिरिक्त अगर मस्जिद या उसके पास के क्षेत्र में पार्किंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है और सड़कों पर नमाज़ पढ़ना मजबूरी ही है तो स्थानीय पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना पत्र देकर उनसे अनुमति ले ली जाए , ताकि इन विवादों से बचा जा सके.
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है यहाँ अनेकता में एकता की मिसाल सदियों से कायम है, जिसे बनाए रखना हम सब भारतवासियों का कर्तव्य है.
(लेखिकापेशे से शिक्षिका हैं )