- सऊदी अरब की महिलाओं को लगे पंख
- सल्फी और वहाबी छोड़ सऊदी अरब चला ‘उदार इस्लाम’ की राह
- सऊदी राजा और राजकुमार ने लागू किए नए सुधार
- नए सुधारों में महिलाओं को मिले सबसे ज्यादा अधिकार
मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली
21वीं सदी वास्तव में सऊदी महिलाओं के लिए खुशियों की सदी बन गई है. सऊदी अरब में कुछ ऐसा अकल्पनीय हुआ, जो महिलाओं के लिए उपहारों की बौछार लेकर आया. ऐसा कहा जाता है कि मालिक देता है, तो छप्पर फाड़कर देता है. यही बात सऊदी अरब की महिलाओं के साथ भी हुई. कुछ साल पहले तक, वे चारदीवारी तक सीमित थीं और प्रतिबंधों का जीवन जी रही थीं. कुछ ने पछतावा किया और कुछ ने नाराजगी जताई, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ऐसा हुआ, जिसने सऊदी महिलाओं का जीवन बदल दिया. सऊदी अरब द्वारा महिलाओं के अधिकारों के लिए उठाए गए कदमों से जहां सऊदी महिलाएं खुश हैं. वहीं दुनिया का मुंह खुला रह गया. कुछ हैरान थे और कुछ परेशान. पूर्व भारतीय राजदूत जाकिर-उर-रहमान ने ‘आवाज-ए-आवाज’ को बताया कि बेशक, बड़े बदलाव हो रहे हैं और महिलाओं के लिए नए दरवाजे खुल रहे हैं। नए रास्ते खुल रहे हैं। इससे सऊदी अरब के ‘कार्यबल’ में वृद्धि होगी। यह महिलाओं के लिए समाज को और विकसित करेगा।
प्रिंस एमबीएस की बदौलत अब सऊदी महिलाओं के लिए खुले नए रास्तों की लंबी सूची और कहानी है. सऊदी अरब ने महिलाओं पर प्रतिबंधों के जाल को धीरे-धीरे काटकर दुनिया को चमत्कृत कर दिया है. उन्होंने एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया है और अपने विरोधियों को चुप करा दिया है.
अब सऊदी की महिलाएं सड़कों पर कारों से लेकर हवा में विमान तक उड़ रही हैं. वे काम कर रही हैं और व्यापार कर रही हैं. जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जिसमें वे दिखाई नहीं पड़ती हैं.
यह क्रांति क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान की नई सोच का परिणाम ही है, जिन्होंने नई पीढ़ी को जीवन का नया ढंग देने के लिए बड़े कदम उठाए, विशेष रूप से महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में अपना कौशल दिखाने का मौका दिया.
21वीं सदी की शुरुआत महिलाओं के लिए हर्ष का संदेश लेकर आई. जब 2001में महिलाओं के लिए ‘पहचान पत्र’ की शुरुआत हुई. ये कार्ड कठिन स्थितियों और विरासत या संपत्ति विवाद में इन महिलाओं के लिए खुद को पहचानने के एकमात्र प्रमाण बने. पहले ये कार्ड केवल पुरुष अभिभावक की अनुमति से जारी किए जा सकते थे.
एक और बड़ा कदम उठाया गया, 2005में महिलाओं के जबरन विवाह को समाप्त करना. इसे एक कागजी बदलाव कहा गया था, क्योंकि एक महिला के लिए अपनी मर्जी से शादी करना अभी भी संभव नहीं था. इस तरह का बदलाव तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि समाज इसे नहीं चाहता. इसलिए सऊदी महिलाओं को बहुत फायदा होगा. दुनिया ने महसूस किया था कि ये रेगिस्तान में फूल आने के संकेत थे.
शाही परिवार छोटे कदमों के बाद बड़े कदम उठाने की तैयारी कर रहा था. किंग अब्दुल्ला ने 2009में देश की पहली महिला मंत्री चुनी और नूरा-बिन-अब्दुल्ला-अल-फयाज को महिला शिक्षा का उपमंत्री नियुक्त किया. इससे पहली बार एक ठोस कदम का संकेत मिला.
सऊदी अरब द्वारा सारा अत्तार को ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति दी गई. लंदन ओलंपिक में उन्होंने हिजाब पहनकर 800मीटर की प्रतिस्पर्धा में भाग लिया, क्योंकि उस समय आशंका पनपी थी कि सऊदी अरब पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, अगर उसने महिलाओं को प्रतियोगिताओं में भाग लेने की अनुमति नहीं दी. फिर 2013में सऊदी अरब ने महिलाओं को मोटरसाइकिल और साइकिल चलाने की अनुमति दी.
इस तरह शाही परिवार द्वारा हर साल महिलाओं कोई न कोई उपहार दिए जाते रहे. उसी साल, सलाहकार परिषद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व शुरू हुआ. फिर 2015में उन्हें वोट देने और चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया.
तब तक दुनिया को इस बात का अंदाजा हो गया था कि शाही परिवार में बहुत कुछ बदलने वाला है. ऐसा ही हुआ, जब 2018में महिलाओं को ड्राइविंग करने और उसी साल स्टेडियम में जाने की अनुमति दी गई थी.
2020 में एक और उपहार मिला, जिसके तहत महिलाएं न केवल अकेले यात्रा कर सकती हैं, बल्कि वे किसी होटल में अकेले रह सकती हैं. क्योंकि सऊदी अरब का इरादा अब एक पर्यटन स्थल विकसित करने का है. परिधानों को लेकर भी सऊदी अरब में अब सख्त कानून लागू नहीं होंगे.
सऊदी राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान ने कहा है कि सऊदी अरब को ‘उदारवादी इस्लाम’ पर वापस लौटना होगा.