छत्तीसगढ़ः खेतों के बीच उठी लेमनग्रास की महक

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 01-07-2021
छत्तीसगढ़ मेंं शुरू हुई है लेमनग्रास की खेती
छत्तीसगढ़ मेंं शुरू हुई है लेमनग्रास की खेती

 

आवाज- द वॉयस/ एजेंसी/ बीजापुर

भवानी पाल शाह छत्तीसगढ़ में अपने सुदूर गांव में पहले स्नातकों में से एक थे. साल 2000 में वह पास आउट हुए. जिस वर्ष राज्य का गठन हुआ था और राजस्थान में हरियाली वाले चरागाहों की तलाश में चले गये. वहां एक कृषि फर्म में पंद्रह साल काम करने के बाद, उन्होंने बीजापुर जिले के अपने गांव गुडमा लौटने और खेती करने का फैसला किया. इसके अलावा, अपनी नौकरी के दौरान, उन्होंने बेहतर पैदावार के लिए आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में सीखा था जो कि उनके खेत में अपनाई जा सकती थीं. शाह को धान के साथ बहुत कम सफलता मिली, जो मुख्य रूप से राज्य में उगाया जाता है, क्योंकि इसके लिए बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है. इसलिए इसकी खेती केवल खरीफ मौसम के दौरान मानसून की शुरूआत में ही की जा सकती थी.

2019 में, शाह ने रायपुर में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का दौरा किया और लेमनग्रास की खेती के बारे में सीखा . ये एक सुगंधित पौधा है जिसकी भारतीय किस्म को वैज्ञानिक रूप से सिंबोपोगन फ्लेक्सुओसस के रूप में जाना जाता है. लेमनग्रास का उपयोग साबुन और डिटर्जेंट, इत्र, पेय पदार्थ और अगरबत्ती में किया जाता है. नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड के अनुसार, तेल की तेज नींबू जैसी गंध का उपयोग कीट विकर्षक में भी किया जाता है. लेमनग्रास ऑयल की कीमत करीब 1,550 रुपये प्रति लीटर है.

कृषि विज्ञान केंद्र बीजापुर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अरुण सकनी ने कहा, ‘‘लेमनग्रास के तेल और पत्तियों का उपयोग औषधीय उद्देश्य के लिए भी किया जाता है. यह सूजन, रक्त शर्करा, ऐंठन, दर्द और जोड़ों के दर्द आदि को कम करता है.’’

शाह ने कहा, ‘‘मैंने कुछ सौ पौधे लिए और इसे अपनी आधा एकड़ जमीन पर उगाया और परिणाम से खुश हूं. इस साल मैं तीन एकड़ जमीन पर लेमनग्रास बोने जा रहा हूं.’’ सिंचाई के लिए सोलर पंप की ही कमी है. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि जिला कृषि विभाग इसे मंजूरी देगा.’’ 

स्व-निर्मित प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से 7 किलोग्राम लेमनग्रास निकालने वाले शाह ने कहा, ‘‘हम केंद्रीय औषधीय और सुगंधित पौधों के संस्थान (सीआईएमएपी) द्वारा स्वीकृत एक प्रसंस्करण इकाई प्राप्त कर सकते हैं यदि क्षेत्र में लेमनग्रास की खेती के लिए 10 एकड़ से अधिक भूमि या 10 से अधिक किसान हैं. मैं किसानों को समझाने की कोशिश कर रहा हूं. वह अधिक उपज प्राप्त करने के लिए ग्रामीणों को लाइन बुवाई, प्रत्यारोपण और अन्य आधुनिक तकनीकों से अवगत कराकर प्रोत्साहित करते रहे हैं. सीआईएमएपी ने शाह के नेतृत्व के प्रयासों की सराहना की है.’’

डॉ सकनी ने कहा '' वे जिले में लेमनग्रास की खेती को बढ़ावा देने के लिए इच्छुक किसानों का एक समूह बनाने की योजना बना रहे हैं और शाह एक मास्टर ट्रेनर और प्रेरक के रूप में कार्य करेंगे. वनों से आच्छादित क्षेत्र के 80 प्रतिशत के साथ, लेमनग्रास उन लोगों के जीवन में एक महान परिवर्तनकर्ता हो सकता है जो ज्यादातर आदिवासी हैं. इसे न तो अधिक पानी की आवश्यकता होती है और न ही कड़ी मेहनत की . एक बार लगाए जाने के बाद, इसका पौधा साल में तीन बार पुन: उत्पन्न होता है.’’

बीजापुर को दंतेवाड़ा जिले से अलग किया गया था जो बस्तर जिले का एक हिस्सा था - नक्सलवाद से त्रस्त क्षेत्र. प्रतिकूल मौसम के अलावा, यहां के किसानों को नक्सलियों द्वारा पेश की गई चुनौतियों से भी जूझना पड़ता है, जहां उनके फरमान खेती के क्षेत्र तक भी फैले हुए हैं.

बेरोजगार युवाओं को नक्सल प्रभावित क्षेत्र में हिंसा से दूर करने के लिए, सीआईएमएपी ने युवाओं को लेमनग्रास और तेल निकालने के लिए प्रशिक्षण प्रदान किया. वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा शुरू किए गए केंद्र सरकार के ‘अरोमा मिशन’ के निर्देशन में पहल की गई थी.

बीजापुर से लगभग 200 किलोमीटर दूर कोंडागांव जिले में लेमनग्रास की खेती में भारी वृद्धि देखी गई है. सीआईएमएपी ने कोंडागांव के मालेगांव क्षेत्र में तीन प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की हैं.

मालेगांव गांव के एक किसान, शाह के दोस्त मोहन राम नेताम ने कहा, ‘‘यह धान की तुलना में बहुत लाभदायक है. एक एकड़ लेमनग्रास की खेती से 40,000-45,000 रुपये के बीच मिलता है. कीमतें 1300 रुपये से 2000 रुपये के बीच बदलती रहती हैं. पिछले साल हमने 1,500 रुपये प्रति किलो और इस साल 1,375 रुपये में बेचा था.

‘‘एक पौधा लगभग 100 पौधों का प्रजनन करता है. यह प्रक्रिया साल में तीन बार जारी रहती है. कुछ मामलों में, पौधे मिट्टी की उर्वरता के आधार पर दो से तीन साल तक प्रजनन करते रहते हैं. हालांकि हमारी भूमि लेमनग्रास के लिए उपयुक्त है, हमने मेंथा घास भी लगाई है .’’ 

कोंडागांव के उत्तर में एक और 100 किलोमीटर की दूरी पर मध्य छत्तीसगढ़ का एक जिला धमतरी है. जिला प्रशासन के सहयोग से इस जिले में लेमनग्रास की खेती अगले स्तर पर पहुंच गई है. लेमनग्रास की खेती के लिए जिला पंचायत ने एक स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) - जय भवानी - को बढ़ावा दिया है. इन्हें 3 एकड़ जमीन से 15 क्विंटल लेमनग्रास निकाला जिससे एक आय प्राप्त हुई.