एक साल बेमिसालः हिंदुस्तानी तहजीब के संगीत के सात सुरों में एक सुर ‘मुस्लिम’ भी है

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 21-01-2022
मुस्लिम संगीतकार
मुस्लिम संगीतकार

 

आवाज विशेष । एक साल बेमिसाल

मंजीत ठाकुर

आमतौर पर यह धारणा बनाई जाती है कि इस्लाम में संगीत की मनाही है. कई बार राई का पहाड़ बनाने जैसे मामलों में कभी फतवे का संदर्भ दिया जाता है तो कभी किसी गायिका पर बंदिश का. कई बार मौलवी-मौलाना भी जादू, संगीत, नाटक और इस तरह की कलाओं को शरिया के खिलाफ मानकर कुछ न कुछ बयान देते हैं.

लेकिन, हिंदुस्तान की तहजीब को अगर संगीत के सात सुर मान लिया जाए तो उसमें मुस्लिम एक सुर की तरह मौजूद हैं, जिनके योगदान ने इस तहजीब को समृद्धि दी है. आखिर, अपने वक्त की सबसे बड़ी दरबारी गायिका, गौहर जान जिन्होंने अगस्त, 1915 में एक होरी की रिकॉर्डिंग की थी. इस होरी के बोल थे, ‘मेरे हज़रत ने मदीना में मनायी होली.’

गौहर जान ने भारत में पहली बार गीत रिकॉर्ड किया था

क्या गौहर जान का यह गाना गैर-इस्लामिक था. बेशक नहीं. क्योंकि वह हिंदुस्तान की समोवीश संस्कृति की विरासत को आगे बढ़ा भर रही थीं. बड़े ग़ुलाम अली ख़ान के गाए भजन ‘हरि ओम तत्सत महामंत्र है, जपा कर, जपा कर’ को कौन भूल सकता है भला?

क्या हममें से कोई 1952 की फिल्म बैजू बावरा को भुला सकता है? इसका भजन ‘मन तड़पत हरिदर्शन को आज’ हमारे संगीत की धर्मनिरपेक्षता की एक उम्दा मिसाल है. इस गीत को लिखा था एक मुसलमान शकील बदायूंनी ने, संगीत दिया था नौशाद ने और गाया था मोहम्मद रफी ने.

बड़े गुलाम अली खां

हिंदुस्तानी संगीत की लोकप्रिय धारा का रिश्ता सूफी खानकाहों से रहा है. एक रिपोर्ट में, कुलदीप कुमार ने लिखा है, “राग पूर्वी सूफ़ी संत निज़ामुद्दीन औलिया को इतना पसंद था कि इसका गायन लगभग हर दिन उनके यहां होता था.”

ध्रुपद शैली के सबसे बड़े विशारद डागर खानदान के लोग हैं. ख्याल गायकी के जितने भी घराने हैं, सबका उद्भव मुस्लिम संगीतज्ञ परिवारों से हुआ है. फैयाज खान, अब्दुल करीम खान, अल्लादिया खान, अलाउद्दीन खान, विलायत खान, बिस्लिमल्ला खान, अमजद अली खान अगर पिछले सौ-डेढ़ सौ साल के आला मुस्लिम संगीतकारो की फेहरिस्त बनाई जाए, तो वह कभी ख़त्म नहीं होगी.

बिस्मिल्लाह खां की गूंज उठी शहनाई

भारतीय शास्त्रीय, उप-शास्त्रीय या बॉलीवुड संगीत से अगर हम हिंदू और मुसलमान को अलग करने लगे तो वह कुछ ऐसा ही होगा जैसे कि दूध में घुले शक्कर से, शक्कर को अलग करना. चाहे शमशाद बेगम हो या सुरैया, ए.आर. रहमान हो या जावेद अली, लकी अली हो या मोहम्मद अजीज और नदीम हो या सलीम-सुलेमान, साजिद-वाजिद यह फेहरिस्त काफी लंबी होगी.

संगीत तहजीब का एक अहम हिस्सा होता है और यह सामासिक संस्कृति के निर्माण का अहम घटक भी. प्रतिगामी ताकते भले ही इसको पीछे करने की कोशिशें करें, पर हिंदुस्तानियत के ताने-बाने के धागे इतने मजबूत हैं कि जुड़ाव को कमजोर नहीं होने देंगे.