बेया खातून
"मेरा बच्चा बहुत शरारती है। जब तक मैं उसे डांटूं या मारूं नहीं, वह मेरी बात नहीं मानता।" — यह वाक्य कई माता-पिता के मुँह से अक्सर सुनाई देता है। लेकिन क्या वाकई किसी बच्चे को अनुशासन सिखाने के लिए उस पर हाथ उठाना ज़रूरी है?
बच्चे चंचल होते हैं — एक बार बात न मानें, बार-बार शरारत करें, चीखें-चिल्लाएं, या फिर चीज़ें तोड़ें। इन स्थितियों में कई बार माता-पिता का धैर्य जवाब दे देता है और वे शारीरिक दंड का सहारा ले लेते हैं। परिणाम? बच्चा कुछ देर के लिए शांत ज़रूर हो जाता है, मगर थोड़ी ही देर में फिर वही व्यवहार दोहराता है।
अब सोचिए, क्या कोई बच्चा जन्म से ऐसा होता है? बिल्कुल नहीं। जिस तरह शारीरिक विकास एक प्रक्रिया है, वैसे ही मानसिक और भावनात्मक विकास भी समय लेता है।
छोटा बच्चा यह नहीं समझता कि क्या खाना है, कैसे माँगना है या निराशा में कैसे प्रतिक्रिया देनी है। उसे हर चीज़ धीरे-धीरे सिखाई जाती है — प्यार और सब्र के साथ।
क्या मारना वास्तव में काम करता है?
जब बच्चा कोई असामान्य व्यवहार करता है और माता-पिता उसे बिना समझे सज़ा देते हैं, तो यह उसके मन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।यह व्यवहार धीरे-धीरे एक चक्र बन जाता है। जैसे किसी को पहली बार धूम्रपान करने पर कुछ नहीं होता, लेकिन आदत बन जाने पर वह लत में बदल जाती है.
वैसे ही, एक बार अगर आप बच्चे पर हाथ उठाते हैं, तो यह आपके पालन-पोषण का हिस्सा बन सकता है, और बच्चे के लिए डर एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया।यानी जब भी वह आपसे कुछ सुनने या सीखने की स्थिति में होगा, डर उसके सोचने-समझने की क्षमता को रोक देगा।
‘सौम्य पालन-पोषण’ क्यों है ज़रूरी?
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, Gentle Parenting (सौम्य पालन-पोषण) आज के समय में बच्चों के लिए सबसे स्वस्थ और प्रभावी तरीका है। इसका मकसद सिर्फ स्नेह देना नहीं, बल्कि बच्चे को सही-गलत का फर्क समझाना, उसकी भावनाओं का सम्मान करना और साथ ही अनुशासन के नियम सिखाना है।
मनोविज्ञान में पालन-पोषण की चार प्रमुख शैलियाँ मानी गई हैं:
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उपेक्षापूर्ण (Neglectful) – पूरी तरह से लापरवाह।
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अनुमोदक (Permissive) – हर चीज़ को हल्के में लेना।
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सत्तावादी (Authoritarian) – कड़े नियम, डर और दंड आधारित।
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अधिकारपूर्ण (Authoritative) – संतुलित नियम, प्रेम और संवाद आधारित।
मान लीजिए बच्चा मेज़ पर रखी पानी की बोतल फेंक देता है:
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अनुमोदक माता-पिता: "ऐसा मत करो, ठीक है?"
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लापरवाह माता-पिता: प्रतिक्रिया ही नहीं देंगे।
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सत्तावादी माता-पिता: चिल्लाएँगे, सज़ा देंगे।
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सौम्य या अधिकारपूर्ण माता-पिता: "तुम खेलना चाहते हो, लेकिन बोतल गिर गई तो हम पानी कैसे पिएंगे? चलो, गेंद से खेलते हैं!"
क्या यह तरीका आसान है? नहीं। लेकिन संभव है।
अमेरिका के वर्जीनिया में मनोवैज्ञानिक डॉ. ब्रायन रेज़िनो के अनुसार:"Gentle Parenting का मतलब सिर्फ प्यार करना नहीं है, बल्कि बच्चे को जीवन की आवश्यक क्षमताएँ सिखाना भी है।"
यह तरीका हमें सिखाता है कि बच्चा एक अलग व्यक्ति है . उसकी भी भावनाएँ, सीमाएँ और विचार होते हैं। जब हम उसे एक सम्मानजनक दृष्टि से देखते हैं, तो हम उसके आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास को मजबूत करते हैं।
यह सच है कि जिन माता-पिता ने अपने बचपन में करुणा या सहानुभूति नहीं देखी, उनके लिए यह तरीका अपनाना कठिन हो सकता है। लेकिन यह असंभव नहीं है — प्रयास, जागरूकता और अभ्यास से यह बदला जा सकता है।
अंत में एक बात याद रखें: बच्चों को परफेक्ट माता-पिता नहीं चाहिए।
उन्हें ऐसे माता-पिता चाहिए जो कोशिश करें, गलती करें तो माफ़ी माँगें, और उन्हें बिना डरे, प्यार और समझदारी से सही रास्ता दिखाएँ।बच्चे शरारती नहीं होते — वे सीख रहे होते हैं। उन्हें हमारी ज़रूरत होती है — मार की नहीं, समझदारी की।