देवबंद में बोले अफगान विदेश मंत्री मुत्तकी, कहा भारत-अफगानिस्तान रिश्ते और मजबूत होंगे

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 11-10-2025
Taliban FM Amir Khan Muttaqi visits Darul Uloom Deoband. What's the Islamic seminary's link with Afghanistan?
Taliban FM Amir Khan Muttaqi visits Darul Uloom Deoband. What's the Islamic seminary's link with Afghanistan?

 

आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्तकी ने आज दारुल उलूम देवबंद पहुंचकर एक महान आतिथ्य और गर्मजोशी भरे स्वागत का अनुभव किया. यह उनके भारत दौरे का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.

संस्था प्रशासन ने बताया कि मुत्तकी ने दोपहर 3 बजे के बाद मदरसे में छात्रों, उलमाओं और लोगों को संबोधित किया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा, “मैं इस भव्य स्वागत और यहाँ के लोगों के स्नेह के लिए आभारी हूं. मुझे उम्मीद है कि भारत-अफगानिस्तान के रिश्ते आगे और प्रगाढ़ होंगे. हम नए राजनयिक भेजेंगे और चाहते हैं कि आप लोग भी काबुल आएं.”
 

 

 

उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली में मिला सम्मान इस बात का संकेत है कि दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग आगे और मजबूत होंगे. मुत्तकी का यह दौरा भारत और अफगानिस्तान के संबंधों में नई ऊर्जा और आपसी विश्वास का प्रतीक माना जा रहा है.

 

 
तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर स्थित एक प्रमुख इस्लामी मदरसा दारुल उलूम देवबंद में मौजूद हैं. मुत्तकी छह दिवसीय भारत यात्रा पर हैं. 
 

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकीआज दारुल उलूम देवबंद पहुंचे हैं. संस्था प्रशासन ने उनकी अगवानी के लिए 15प्रमुख उलमा की सूची जारी की है. सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है. महिला पत्रकारों को खास नियम फॉलो करने होंगे. दारुल उलूम देवबंद के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी ने बताया अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी आज यहां आ रहे हैं. हम उनके लिए व्यवस्था पूरी कर चुके हैं. उनके आने के बाद हम उन्हें दारुल उलूम देवबंद दिखाएंगे. इसके बाद वे खुद भी तालीम लेंगे, छात्रों से मुलाकात करेंगे और तीन बजे उन्हें संबोधित करेंगे.

 

मदरसा प्रशासन ने बताया कि मुत्तकी आज दोपहर 3बजे मदरसे में लोगों को संबोधित भी करेंगे. दारुल उलूम देवबंद के मीडिया प्रभारी अशरफ उस्मानी ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, "वह देश के मेहमान हैं. हमें उनका ध्यान रखना होगा. आज के अपने कार्यक्रम में वह छात्रों और आम जनता को संबोधित करेंगे." उनके भोजन की भी व्यवस्था संस्था के भीतर ही की गई है. वह देश के मेहमान हैं. हमें उनका ख्याल रखना है.

महिला पत्रकारों की एंट्री बैन... दिल्ली में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री की  प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबानी फरमान - Afghanistan Taliban Minister Muttaqi  Press ...

इस्लामिक मदरसे के बारे में

दारुल उलूम देवबंद एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामी मदरसा है जिसकी स्थापना 1866में भारत के देवबंद में हुई थी. यह अपनी व्यापक इस्लामी शिक्षा, महत्वपूर्ण प्रभाव और रूढ़िवादी सुन्नी इस्लाम तथा हनफ़ी न्यायशास्त्र के प्रति निष्ठा के लिए जाना जाता है. इसकी स्थापना 1857के विद्रोह के बाद, सैय्यद मुहम्मद आबिद और मुहम्मद कासिम नानौतवी के प्रयासों से 31मई 1866को हुई थी.

इस मदरसे को कई तालिबान नेता बहुत सम्मान देते हैं. कई तालिबान कमांडरों और नेताओं ने पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत स्थित दारुल उलूम हक्कानिया में शिक्षा प्राप्त की है, जिसकी स्थापना दारुल उलूम देवबंद की तर्ज पर ही की गई थी.

— ANI (@ANI) October 11, 2025

देवबंद-अफगान संबंध

दारुल उलूम हक्कानिया की स्थापना करने वाले मौलाना अब्दुल हक ने 1947में विभाजन से पहले देवबंद स्थित मदरसे में शिक्षा प्राप्त की और अध्यापन किया. उनके बेटे, समी-उल-हक को तालिबान कमांडरों और नेताओं को तैयार करने में दारुल उलूम हक्कानिया की भूमिका के कारण "तालिबान का जनक" कहा जाता है.

देवबंद और अफगानिस्तान के बीच संबंध सदियों पुराने हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, विभाजन से पहले भी, देवबंदी विद्वान अफ़गानिस्तान में राजनीतिक और धार्मिक दोनों मामलों में सक्रिय थे.

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ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ओआरएफ) में सुरक्षा, रणनीति और प्रौद्योगिकी केंद्र की फ़ेलो सौम्या अवस्थी के अनुसार, प्रसिद्ध रेशमी पत्र आंदोलन (1913-1920) के दौरान, देवबंदी मौलवियों ने भारत में ब्रिटिश शासन को चुनौती देने के लिए ओटोमन साम्राज्य, अफ़गानिस्तान और जर्मन साम्राज्य के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश की.

 

साझा बौद्धिक नेटवर्क

रेशमी पत्र आंदोलन का नेतृत्व मौलाना महमूद हसन और मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी सहित देवबंदी मुस्लिम विद्वानों ने किया था, और इसका उद्देश्य ओटोमन साम्राज्य, शाही जर्मनी, अफ़गानिस्तान और रूस जैसे देशों के साथ गठबंधन बनाकर ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था.

अवस्थी ने हाल ही में लिखा है कि इन संबंधों ने भारत-अफ़गान धार्मिक और राजनीतिक चेतना पर एक अमिट छाप छोड़ी और दोनों समाजों को साझा बौद्धिक नेटवर्क के माध्यम से एक सूत्र में बाँध दिया.

उन्होंने लिखा, "उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध से, अफ़ग़ान विद्वान देवबंद में अध्ययन करने वाले शुरुआती विदेशी शिष्यों में से थे, जो काबुल, कंधार और खोस्त लौटकर वहाँ के पाठ्यक्रम और शिक्षण शैली पर आधारित मदरसे स्थापित करते थे. इन संस्थानों ने अफ़ग़ान धार्मिक जीवन में विद्वता, मितव्ययिता और शास्त्रीय ग्रंथों के सख्त पालन से परिभाषित देवबंदी लोकाचार को समाहित करने में मदद की."

External Affairs Minister Dr S Jaishankar and Afghanistan's Acting Foreign Minister Amir Khan Muttaqi in New Delhi

आमिर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा

भारत ने शुक्रवार को काबुल स्थित अपने तकनीकी मिशन को दूतावास का दर्जा देने की घोषणा की और अफ़ग़ानिस्तान में अपने विकास कार्यों को फिर से शुरू करने का संकल्प लिया. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी नई दिल्ली की सुरक्षा चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाने के लिए तालिबान की सराहना की.

जयशंकर ने अफ़ग़ान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के साथ अपनी व्यापक वार्ता के दौरान ये दोनों घोषणाएँ कीं, जो गुरुवार को अपनी पहली भारत राजनयिक यात्रा पर नई दिल्ली पहुँचे.

अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करने के बाद भारत ने काबुल स्थित अपने दूतावास से अपने अधिकारियों को वापस बुला लिया था. जून 2022 में, भारत ने एक “तकनीकी टीम” तैनात करके अफगान राजधानी में अपनी राजनयिक उपस्थिति फिर से स्थापित की.