दिल्ली सर्वेक्षण में मुस्लिम आबादी की खतरनाक वृद्धि का सच इसके उलट है

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 13-05-2022
दिल्ली सर्वेक्षण में मुस्लिम आबादी की खतरनाक वृद्धि का सच इसके उलट है
दिल्ली सर्वेक्षण में मुस्लिम आबादी की खतरनाक वृद्धि का सच इसके उलट है

 

दौलत रहमान / गुवाहाटी

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के अनुसार, भारत में सभी धार्मिक समुदायों के भीतर मुसलमानों के प्रजनन की दर पिछले दो दशकों में तेजी से घट रही है. जम्मू और कश्मीर के बाद दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले असम में इस क्षेत्र में नाटकीय गिरावट देखी गई है.

पिछले वर्षों में देखी गई गिरावट की प्रवृत्ति के अनुरूप, समुदाय की प्रजनन दर 2015-16 में 2.8 से घटकर 2019-2021 में 2.3 हो गई है. सभी धार्मिक समुदायों की प्रजनन दर में गिरावट के कारण देश की कुल प्रजनन दर में गिरावट आई है.

असम में मुस्लिम समुदाय की प्रजनन दर 2008 से तेजी से घट रही है. असम में मुस्लिम समुदाय में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) या प्रति महिला बच्चों की संख्या 2.4 है, जो हिंदुओं में 1.8 और ईसाइयों के बीच 1.5 से अधिक है. बेशक, मुसलमानों में प्रजनन दर 2005-06 में 3.8 से घटकर 2019-20 में 2.4 हो गई है. वहीं हिंदुओं को 0.4 फीसदी का नुकसान हुआ है. भारत में TFR 2.2 फिक्स है.

यह आंकड़ा असम की मुस्लिम आबादी की खतरनाक वृद्धि की प्रचलित धारणा के बिल्कुल विपरीत है. एक आम धारणा और डर है कि बढ़ती मुस्लिम आबादी एक समय में राज्य के बहुसंख्यक समुदाय को अल्पसंख्यक बना देगी.

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प्रसिद्ध सर्जन पद्मश्री डॉ इलियास अली का कहना है कि लड़कियों में शिक्षा का प्रसार, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास, प्रसव के मुद्दे पर जन जागरूकता अभियान, जन जागरूकता अभियान जैसे कई सकारात्मक पहलू हैं. .

असम की जनसंख्या नीति के पीछे रहने वाले डॉ. अली का कहना है कि राज्य के मुसलमानों के बीच आबादी को और कम करने के लिए पर्याप्त काम किया जाना बाकी है. उन्होंने कहा कि परिवार नियोजन कार्यक्रम एक सतत प्रयास होना चाहिए और दिल्ली या दिसपुर में सरकार बदलने पर भी यह नीति नहीं बदलनी चाहिए.

"जल्दी विवाह तेजी से जनसंख्या वृद्धि के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक है और युवा मुस्लिम महिलाओं में कम उम्र की शादी की दर 26.7 फीसदी है और पुरुषों के लिए यह 18% है. उन सभी लोगों की कुल प्रजनन दर जो एक वर्ष की उम्र में शादी कर चुके हैं या कम 2.84 है. प्रजनन दर 2.7 है और हाई स्कूल परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली महिलाओं की प्रजनन दर 2.27 है."

उल्लेखनीय है कि उच्च माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं की कुल प्रजनन दर काफी कम है और यह केवल 1.56 है. डॉ अली कहते हैं कि शिक्षा और सामाजिक जागरूकता के प्रसार के कारण कम उम्र में विवाह की दर में लगातार गिरावट आ रही है.

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महिला शिक्षण संस्थानों की स्थापना प्राथमिकता के आधार पर की जाए. महिलाओं और लड़कियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए विशेष और तत्काल उपाय किए जाने की आवश्यकता है. "एक शिक्षित लड़की या महिला केवल पारिवारिक मामलों में भाग ले सकती है और अपने प्रजनन स्वास्थ्य को महत्व दे सकती है, सही निर्णय ले सकती है कि उसे कब शादी करनी है और उसे कितने बच्चे होने चाहिए," डॉ अली कहते हैं.

डॉ. अली ने सुझाव दिया कि सरकार की परिवार नियोजन शाखाओं को दक्षिण शाल्मरा और मनकाचर, धुबरी, गोलपारा, बंगाईगांव, नलबाड़ी, गोलाघाट और नगांव में अधिक सक्रिय बनाया जाना चाहिए. उन्होंने थलुवा मुसलमानों के बीच एक विशेष परिवार नियोजन अभियान का भी सुझाव दिया है. 

डॉ. अली के अनुसार, मुसलमान परिवार नियोजन के प्रति अधिकाधिक जागरूक हुए हैं. मुसलमानों में आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 37.9 प्रतिशत से बढ़कर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में 47.4 प्रतिशत हो गया है. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस वृद्धि का अंतर हिंदुओं की तुलना में अधिक था. 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार, मुसलमान धीरे-धीरे आधुनिक गर्भनिरोधक तरीकों को अपना रहे हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में 16 प्रतिशत से राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में यह संख्या बढ़कर 25.5 प्रतिशत हो गई है. यह दर सिखों (26.3 प्रतिशत) और जैन (26.3 प्रतिशत) में तीसरी सबसे अधिक है. इंटरवल सिस्टम का मतलब है कि एक महिला कितनी जल्दी दोबारा बच्चे को जन्म देती है.

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मुस्लिम पुरुषों के एक उच्च प्रतिशत ने परिवार नियोजन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण दिखाया है. लगभग 32% मुस्लिम पुरुषों को लगता है कि गर्भनिरोधक एक महिला की जिम्मेदारी है, जिसके बारे में पुरुषों को चिंता नहीं करनी चाहिए. हिंदुओं के लिए यह संख्या अधिक है यानी लगभग 36%.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के मुताबिक मुस्लिमों में गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है. दूसरी ओर, सिखों और जैनियों के बाद मुसलमानों में कंडोम का उपयोग तीसरा सबसे अधिक है. इसलिए परिवार नियोजन के प्रति समुदाय की इस सकारात्मक जागरूकता को मान्यता दी जानी चाहिए और सभी के लिए यह समझना आवश्यक है कि इस्लाम परिवार नियोजन में किसी भी तरह से बाधा नहीं डालता है.