श्रीनगर. भारतीय अल्पसंख्यक फाउंडेशन ने सम्मानित वक्ताओं की एक श्रृंखला के सहयोग से, सूफीवाद और कश्मीरियत पर सद्भावना शांति शिखर सम्मेलन की मेजबानी की. यह एक ऐतिहासिक कार्यक्रम है, जो क्षेत्र में एकता और शांति को बढ़ावा देने के लिए विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को एक मंच पर लाया. शिखर सम्मेलन शेर-ए-कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में आयोजित किया गया, जिसने कश्मीर की उत्कृष्ट घाटी को आशा और सुलह के प्रतीक में बदल दिया.
इस कार्यक्रम में विशिष्ट मुख्य अतिथि, जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा उपस्थित थे. अपने प्रेरक मुख्य भाषण में, उन्होंने कश्मीर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और शांति को बढ़ावा देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए क्षेत्र में सह-अस्तित्व और सद्भाव की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने सांप्रदायिक एकता और सहयोग को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. उपराज्यपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना के अनुसार अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने, सूफीवाद को बढ़ावा देने और भाईचारे, शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने में भारतीय अल्पसंख्यक फाउंडेशन की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना की.
उपराज्यपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने हमें ‘सबका साथ, सबका विकास’ का दृष्टिकोण दिया. सरकार का एक ही धर्म है - भारत प्रथम, एक ही पवित्र ग्रंथ है - संविधान और एक ही संस्कार है - सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय. यह हमारी प्राचीन सभ्यता, सभी धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं के सम्मान और समावेशी विकास के हमारे दृढ़ संकल्प को परिभाषित करता है.
शिखर सम्मेलन का मुख्य आकर्षण हाजी सैयद सलमान चिश्ती, गद्दी नशीन दरगाह अजमेर शरीफ और चिश्ती फाउंडेशन के अध्यक्ष द्वारा दी गई ज्ञानवर्धक सूफी टिप्पणियां थीं. उनका संदेश दर्शकों के बीच गहराई से गूंजा, जिसमें सूफीवाद की परिवर्तनकारी शक्ति और इसके मूल में निहित प्रेम, शांति और समावेशिता के मूल्यों पर जोर दिया गया. हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा, ‘‘सूफीवाद ऐसा मार्ग है, जो प्रेम और स्वीकृति की ओर एक यात्रा है. यह एक अधिक सामंजस्यपूर्ण दुनिया के दरवाजे खोलने की कुंजी है.’’
हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने जम्मू-कश्मीर के माननीय एलजी मनोज सिन्हा जी को दरगाह अजमेर शरीफ के पवित्र गुलाब और चिश्ती सूफी शॉल के साथ कैनवास पर तेल से बनी ‘व्हिर्लिंग दरवेश’ सूफी कला पेंटिंग एक प्रमुख और सम्मानित कश्मीरी कलाकार सैका रशीद जी द्वारा भेंट की.
सम्मेलन में भारतीय अल्पसंख्यक फाउंडेशन के अध्यक्ष सतनाम सिंह संधू ने एक सामंजस्यपूर्ण कश्मीर के लिए अपना दृष्टिकोण साझा किया, जहां कश्मीरियत की सांस्कृतिक टेपेस्ट्री और सूफीवाद का सार एकसाथ विकसित हो सके. उन्होंने कहा, ‘‘कश्मीर विशाल विविधता की भूमि है और इस विविधता में ही हमें ताकत मिलती है. आइए हम एक शांतिपूर्ण भविष्य के निर्माण के लिए अपनी अनूठी संस्कृति और सूफीवाद के सार्वभौमिक मूल्यों को अपनाएं.’’ सतनाम सिंह संधू ने कश्मीर के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की घोषणा की.
देश के विभिन्न हिस्सों से आए सूफी विद्वानों और धार्मिक नेताओं ने भी इस अवसर पर बात की और प्रगतिशील समाज के निर्माण और विकसित भारत के दृष्टिकोण को साकार करने में प्रत्येक समुदाय की सामूहिक भूमिका पर अपने विचार साझा किए. इस अवसर पर, उपराज्यपाल ने सैयद कल्बे रुशैद रिजवी, हाजी सैयद सलमान चिश्ती, कशिश वारसी, आगा दाऊदी, शेख हामी एसबी, मंजूर खान और अन्य सहित सूफी विद्वानों और धार्मिक नेताओं को सम्मानित किया.
जम्मू-कश्मीर के प्रख्यात आध्यात्मिक सूफी नेताओं की उपस्थिति से शिखर सम्मेलन और समृद्ध हुआ. प्रत्येक वक्ता ने क्षेत्र में शांति और समझ को बढ़ावा देने पर अपना अनूठा दृष्टिकोण पेश किया. उनकी गहन सूफी टिप्पणियों ने उपस्थित लोगों को संघर्षों को सुलझाने में आध्यात्मिक मार्गदर्शन के महत्व पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया.
सैयद कल्बे रुशैद रिजवी ने कहा, ‘‘सूफीवाद हमें हर इंसान में परमात्मा को देखना सिखाता है, चाहे उनकी आस्था या पृष्ठभूमि कुछ भी हो. आइए हम उन सामान्य धागों की तलाश करें जो हमें जीवन के इस बंधन में एक साथ बांधते हैं.’’
हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा, ‘‘कश्मीर सदियों से आध्यात्मिकता का प्रतीक रहा है. जैसे आदि शंकराचार्य के अद्वैत दर्शन और चिश्ती सूफी संतों के वहदत अल वुजूद दर्शन पर कश्मीरियत का गहरा प्रभाव था. आइए हम इन शिक्षाओं को याद रखें.’’ हमारे सूफी संतों और उनके द्वारा वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए बिना शर्त प्यार का संदेश छोड़ा गया.’’
कशिश वारसी ने कहा, ‘‘सूफीवाद के प्रकाश में, हमें क्षमा करने की ताकत, समझने की बुद्धि और प्यार करने की कृपा मिलती है. ये शांतिपूर्ण भविष्य के द्वार खोलने की कुंजी हैं.’’
शिखर सम्मेलन में युवा नेताओं और शिक्षाविदों सहित विभिन्न प्रकार के उपस्थित लोग एक साथ आए, जिन्होंने कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत और सद्भाव को बढ़ावा देने में सूफीवाद की महत्वपूर्ण भूमिका पर गहन चर्चा की. संवादात्मक सत्रों में विभाजन को पाटने, अधिक समावेशी और शांतिपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिए साझा प्रतिबद्धता देखी गई.
सूफीवाद और कश्मीरियत पर राष्ट्रीय सद्भावना शांति शिखर सम्मेलन एकता, समझ की शक्ति और संघर्षों को सुलझाने में आध्यात्मिक मूल्यों की भूमिका का एक असाधारण प्रमाण था. यह आयोजन कश्मीर की स्थायी भावना, लचीलेपन और शांति के प्रति उसकी अडिग प्रतिबद्धता के प्रतीक के रूप में खड़ा है.
विशिष्ट वक्ताओं और उपस्थित लोगों के साथ-साथ भारतीय अल्पसंख्यक फाउंडेशन को उम्मीद है कि शांति, प्रेम और सद्भाव का संदेश शिखर सम्मेलन से कहीं आगे तक गूंजेगा, और उन सभी के जीवन को छूएगा, जो कश्मीर के लिए एक उज्जवल और अधिक शांतिपूर्ण भविष्य की तलाश में हैं.
ये भी पढ़ें : बड़ी पहल: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जल्द अपना सेटेलाइट लॉन्च करेगा
ये भी पढ़ें : मिलिए, यूनिक्योर इंडिया लिमिटेड की क्वालिटी उपाध्यक्ष डॉ. कशिश अज़ीज़ से
ये भी पढ़ें : नाजनीन सुल्ताना अहमद महिलाओं को बना रहीं खूबसूरत और आत्मनिर्भर
ये भी पढ़ें : BPSC में 60 मुस्लिम छात्र कामयाब, नाजनीन मुस्तफा सेल्फ स्टडी से बनी ऑफिसर