उर्दू पत्रकारों का बलिदान अविस्मरणीय: मासूम मुरादाबादी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-09-2024
  Masoom Moradabadi
Masoom Moradabadi

 

नई दिल्ली. उर्दू पत्रकारिता में साहस और दुस्साहस देश की सभी भाषाओं की पत्रकारिता से कहीं अधिक है और यह उन पत्रकारों के बलिदान का फल है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ अपनी जान हथेली पर रखकर लोहा लिया था. ये विचार आज यहां वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक मासूम मुरादाबादी ने प्रथम शहीद पत्रकार मौलवी मुहम्मद बाकिर की शहादत के संदर्भ में अपने मुख्य भाषण के दौरान व्यक्त किये.

भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के मुख्यालय में उर्दू पत्रकारिता के छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘उर्दू अखबार अन्य भाषाओं की पत्रकारिता की तुलना में सामाजिक जिम्मेदारियों से बंधे हैं. जहां अन्य भाषाओं के अखबारों में नग्न तस्वीरें और सामग्री देखने को मिलती है, वहीं उर्दू अखबारों में समाज सुधार का तत्व प्रमुख होता है. वे नग्न छवियों और सामग्री से अपने पेजों को प्रदूषित नहीं करते हैं.’’

उन्होंने अपना भाषण जारी रखते हुए कहा, ‘‘इस देश में उर्दू पत्रकारिता एक मिशन के तौर पर शुरू की गई थी. संतोषजनक बात यह है कि तमाम कठिनाइयों के बावजूद उर्दू पत्रकारिता अपनी स्थापना के दो हजार साल बाद भी अपनी धुरी और केंद्र पर पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़ी है. इसकी नींव में उन पत्रकारों का महान बलिदान है, जिन्होंने मौत को गले लगाना चुना, लेकिन दमनकारी ताकतों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया.’’

मासूम मुरादाबादी ने आगे कहा कि मौलवी मुहम्मद बाकिर ने पहले पत्रकार के रूप में आजादी की पहली लड़ाई के दौरान अपनी जान कुर्बान की और यह सिलसिला 1947में देश की आजादी तक बना रहा. मौलाना आजाद, मौलाना मुहम्मद अली जौहर, मौलाना जफर अली खान, हसरत मोहानी और मौलवी मजीद हसन जैसे पत्रकारों ने अपने समाचार पत्रों के माध्यम से लगातार ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लिया. उन्होंने न केवल अभूतपूर्व बलिदान दिया बल्कि उर्दू पत्रकारिता के लिए उच्च मानक भी स्थापित किये. उर्दू पत्रकारों की सेवाओं को स्वीकार करने और विश्वविद्यालयों में उन पर शोध के दरवाजे खोलने की जरूरत है. पत्रकार समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी सेवाओं को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

मुख्य भाषण की अध्यक्षता करते हुए आईआईएमसी के उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार भारती ने कहा कि इस भाषण से छात्रों को बहुत ही बुनियादी और महत्वपूर्ण जानकारी मिली है. हम भविष्य में भी मासूम मुरादाबादी की सेवाओं का उपयोग करेंगे.

आईआईएमसी में उर्दू विभाग के शिक्षक मोहम्मद साकिब ने अतिथि वक्ता का परिचय देते हुए कहा कि ‘‘उर्दू पत्रकारिता में मासूम मुरादाबादी का सफर चार दशकों से जारी है. उनकी गिनती शीर्ष उर्दू पत्रकारों में होती है. उर्दू पत्रकारिता पर उनकी पांच किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. समसामयिक विषयों के अलावा वे शोध एवं रचनात्मक गद्य के भी विद्वान हैं. वह स्केचिंग में भी माहिर हैं. हमें खुशी है कि उन्होंने समय निकालकर देश के सबसे बड़े पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थान आईआईएमसी के छात्रों को बहुमूल्य जानकारी प्रदान की.’’ बाद में प्रश्नोत्तर सत्र हुआ और छात्रों को यह उपदेश उनके लिए बहुत उपयोगी लगा.

 

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