देश के चार सौ से ज्यादा शहरों में जरूरतमंदों को खाना बांट रही रॉबिनहुड आर्मी, जानें कैसे करती है काम
रावी द्विवेदी
देश-दुनिया में खाने की बर्बादी पिछले दशक में तेजी से बढ़ी और इसे देखकर ही संयुक्त राष्ट्र ने 2019 में खाद्य सुरक्षा और पोषण के प्रति जागरूकता पर जोर देते हुए 29 सितंबर को खाद्य हानि और अपशिष्ट पर अंतरराष्ट्रीय जागरूकता दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की. संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जागरूकता की यह पहल भले ही अभी कुछ साल पहले की गई हो लेकिन दुनिया ने खाने की बर्बादी रोकने की अहमियत दशकों पहले समझ ली थी.
यही वजह है कि दुनियाभर में सरकारी, गैर-सरकारी और व्यक्ति स्तर पर खाना बचाने और उसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाने की मुहिम चलती आ रही हैं. भारत में भी कई गैर-सरकारी संगठन ऐसी मुहिम में सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं, जिसमें रॉबिनहुड आर्मी के प्रयासों को खास उल्लेखनीय माना जा सकता है.
इस पहल की नींव 2014 में दिल्ली में पड़ी और इससे जुड़े लोग अब 400 से ज्यादा शहरों में गरीब और वंचित तबके के लोगों के लिए वाकई में रॉबिनहुड साबित हो रहे हैं. इसके सदस्य देश के 401 शहरों के अलावा विभिन्न देशों में सक्रिय हैं और जब भी जहां भी जरूरत पड़ती है, गरीबों-वंचितों तक पहुंचकर उन्हें खाना मुहैया कराते हैं. पुर्तगाल में चलने वाले इसी तरह के एक अभियान से प्रेरित होकर इस मुहिम की शुरुआत नील घोष, आरुषि बत्रा और आनंद सिन्हा ने की थी.
खाने की बर्बादी रोकने की दिशा में जारी प्रयासों में भारत कभी पीछे नहीं रहा है. गत दिसंबर में केंद्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में एक लिखित सवाल के जवाब में बताया कि केंद्र ने सभी राज्यों से कहा है कि खाने की बर्बादी रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं. यही नहीं, सरकार स्कूली पाठ्यक्रम में प्रिवेंशन ऑफ फूड वेस्टेज नामक चैप्टर जोड़ने की भी तैयारी कर रही है. इसका उद्देश्य बच्चों में शुरू से ही खाना बर्बाद न करने की आदत डालना है.
सरकार की तरफ से जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं. 2017 में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने सेव फूड शेयर फूड नाम से एक सामाजिक पहल शुरू की थी. इसमें खाद्य वितरण एजेंसियों, खाद्य व्यवसायों, कॉरपोरेट सेक्टर, सिविल सोसाइटी संगठनों और वालंटियर से लेकर आम लोगों तक को जोड़ा गया, ताकि प्रारंभिक उत्पादन से लेकर घरेलू खपत तक पूरी सप्लाई चेन के बीच खाने की बर्बादी रोकी जा सके और बचा खाना जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सके.
इसका उद्देश्य बच्चों में शुरू से ही खाना बर्बाद न करने की आदत डालना है. सरकार की तरफ से जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं. 2017 में भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने सेव फूड शेयर फूड नाम से एक सामाजिक पहल शुरू की थी. इसमें खाद्य वितरण एजेंसियों, खाद्य व्यवसायों, कॉरपोरेट सेक्टर, सिविल सोसाइटी संगठनों और वालंटियर से लेकर आम लोगों तक को जोड़ा गया, ताकि प्रारंभिक उत्पादन से लेकर घरेलू खपत तक पूरी सप्लाई चेन के बीच खाने की बर्बादी रोकी जा सके और बचा खाना जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जा सके.
उत्साही युवाओं की पहल एक मुहिम बनी
रॉबिनहुड आर्मी से जुड़े लीड पार्टनरशिप अबुंज आहूजा ने आवाज द वॉयस के साथ फोन पर बातचीत में बताया कि कैसे कुछ उत्साही युवकों ने खाना बचाने की इस पहल को शुरू किया और अब यह दो लाख से ज्यादा रॉबिन्स की फौज बन चुकी है. 2015 से रॉबिनहुड आर्मी के साथ अबुंज बताते हैं कि उनका संगठन सामाजिक भागीदारी के ढांचे पर काम करता है. लोग स्वेच्छा से बिना की किसी आर्थिक लाभ की अपेक्षा के साथ इसके साथ जुड़ते हैं.
संगठन की नींव कैसे पड़ी, इस बारे में अंबुज बताते हैं कि अगस्त 2014 में एक दिन नील, आरुषि, आनंद ने कुछ जरूरतमंदों को खाना पहुंचाने के उद्देश्य से मूलचंद में करीब 150 पराठे बनवाए और फिर उसे आसपास के झुग्गी वाले इलाकों में बांटने पहुंचे. इस दौरान उन्हें जो अनुभव हुआ, उसने उनकी एक छोटी-सी मुहिम को एक मिशन बना दिया. ये पराठे बांटते समय उन्हें अहसास हुआ कि उसे पाकर लोगों के चेहरे किस तरह खिल उठे थे, और साथ ही यह बात भी समझ आ गई कि बस इस तरह थोड़ा-बहुत खाना बांटना ही पर्याप्त नहीं है.
उन्होंने फिर और लोगों को अपने साथ जोड़ा और रेस्टोरेंट और शादी-पार्टियों में बचा खाना एकत्र कर उसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाना शुरू कर दिया है. यह सब कैसे मुमकिन होता है, इस बारे में अंबुज बताते हैं कि रॉबिनहुड आर्मी के वालंटियर का एक पूरा नेटवर्क काम करता है. जैसे ही हमारे पास किसी होटल, रेस्टोरेंट या किसी अन्य जगह से ऐसी जानकारी आती है कि वहां पर खाना बचा हुआ है या फिर कोई स्वेच्छा से बना हुआ या कच्चा खाना लोगों को बांटना चाहता है तो हम उस क्षेत्र के आसपास के रॉबिन को इसकी सूचना देते हैं और वो वहां से खाना लेकर उसे बांटने की व्यवस्था कर देता है.
और फिर धीरे-धीरे बढ़ता गया कारवां
रॉबिनहुड आर्मी की नींव तो दिल्ली में पड़ी लेकिन सोशल मीडिया के भरपूर इस्तेमाल ने बहुत तेजी से उन्हें देश-दुनिया के कई हिस्सों में ऐसे लोगों के साथ जोड़ दिया जो अपनी व्यस्त दिनचर्या के बीच भी कुछ सामाजिक सेवा करना चाहते थे. अंबुज के मुताबिक, ‘संगठन से जुड़े लोग वालंटियर के तौर पर हफ्ते-महीने में कुछ दिन इस काम में दे देते हैं. इसके लिए न तो किसी रॉबिन को कोई पैसा मिलता है और न ही हम किसी संस्था या किसी व्यक्ति से कोई चंदा लेते हैं.’ संगठन सभी समुदायों और धर्मों के लोगों के लिए काम करता है और इसका किसी भी तरह का कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं है.
अंबुज बताते हैं कि बतौर रॉबिन अपनी सेवाएं देने वालों में हर वर्ग के लोग जुड़े है, अच्छे पदों पर काम करने वाले प्रोफेशनल, कारोबारी, नौकरीपेशा लोग और छात्रों से लेकर गार्ड-चौकीदार तक का काम करने वाले तक आरएचए का हिस्सा हैं. रॉबिनहुड आर्मी की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक अगस्त 2014 में दिल्ली में बनी रॉबिनहुड आर्मी अब कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, जयपुर, जबलपुर, पानीपत, गुड़गांव, पुणे देहरादून, फरीदाबाद, अहमदाबाद, सूरत समेत 401 शहरों में फैली है.
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15 फरवरी 2015 को इस आर्मी ने कराची, पाकिस्तान में लोगों की मदद के साथ अपनी गतिविधियां शुरू की थीं. और अब बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों के अलावा मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, मिस्र, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा आदि 13 देशों में इसके चैप्टर शुरू हो चुके हैं. खाना बचाने के लिए जागरूक करने और होटलों-उद्योगों के साथ मिलकर बचा खाना लोगों तक पहुंचाने में जुटी इस आर्मी के साथ जुड़कर 2014-15 में जहां 2314 रॉबिंस ने आठ शहरों में लोगों में खाना पहुंचाने का जिम्मा संभाला, वहीं अब इसके वालंटियर की संख्या 220,878 हो चुकी है और यह आर्मी 11.9 लाख लोगों को खाना पहुंचाने का एक बड़ा मुकाम हासिल कर चुकी है.
जरूरतमंदों तक खाना पहुंचाने की खुशी
अगर आप आरएचए से जुड़े लोगों के सोशल मीडिया प्रोफाइल देखें या फिर उनसे बात करें तो एक ही बात सामने आती है कि वे ये सारा काम सिर्फ खुशी के लिए करते हैं. उनका कहना है कि देश में जहां हर आठ में से एक व्यक्ति भूखे पेट सोने को मजबूर है, खाने को बर्बाद होने से बचाना और उसे जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाना एक बहुत ही नेक काम है. नोएडा की एक सोसाइटी में चौकीदार के तौर पर काम करने वाले साजन ने बताया कि दिनभर सोसाइटी में काम करते हैं और जब भी सोसाइटी के किसी परिवार या आसपास की किसी जगह या आरएचए की तरफ से बचे खाने के बारे में जानकारी दी जाती है तो वह उसे बांटने चले जाते हैं.
यह पूछने पर कि उन्हें यह काम करके कैसा लगता है, साजन ने कहा कि समाज में बहुत से लोग हैं जिन्हें खाने के जरूरत है. इन लोगों का पेट भरना किसी पुण्य से कम नहीं है. आरएचए से पिछले छह साल से जुड़े साजन बताते हैं कि उन्हें खाना बांटकर बहुत ही खुशी मिलती हैं. इसी तरह गुड़गांव में रहने वाले 12वीं कक्षा के छात्र शांतु का कहना है कि वह खुद भी झुग्गी बस्ती के इलाके में रहता है और यहां आसपास तमाम लोग ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त खाना नहीं होता है.
शांतु ने बताया कि वह इस क्षेत्र में रॉबिन के तौर पर काम करता है और जब भी मौका मिलता है, वह आरएचए के अन्य सदस्यों के साथ अपने आसपास के क्षेत्र में खाना बांटता है. शांतु कहता है कि एक तरफ इतना खाना बर्बाद होता है, दूसरी तरफ इतने लोग भूखे रहने को बाध्य है, इसे देखकर बहुत दुख होता है. उसका कहना है कि सभी लोगों को इस तरह की मुहिम से जुड़ना चाहिए और खाना बर्बाद करने के बजाये उसे जरूरतमंदों का पेट भरने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए.