मुंबई
मुंबई में एक चौंकाने वाली घटना के तहत, मैसूर कॉलोनी के पास भारी भीड़ के कारण फंसी मोनोरेल में 582 यात्री करीब तीन घंटे तक अंदर फंसे रहे। इस दौरान बिजली गुल हो गई और भीषण गर्मी में यात्री मोबाइल की टॉर्च और नैपकिन से खुद को हवा झलते नजर आए। अंततः रात 9:50 बजे तक सभी यात्रियों को खिड़कियों के शीशे हटाकर बाहर निकाला गया।
सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में देखा गया कि मोनोरेल के अंदर भयानक गर्मी और अंधेरे के बीच यात्री खुद को राहत पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। कुछ लोग टॉर्च की रोशनी में एक-दूसरे की मदद कर रहे थे, तो कुछ पसीने से लथपथ बैठे नज़र आए। कई यात्रियों ने खिड़कियों से बाहर झांकते हुए राहत कार्य का इंतज़ार किया।
एक यात्री द्वारा ली गई क्लिप में ट्रेन का खचाखच भरा माहौल दिखता है, जहाँ बिजली बंद होने के बाद अंधेरा छा गया था। कई यात्रियों के मुताबिक, ट्रेन में बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
एक यात्री ने समाचार एजेंसी ANI से बातचीत में कहा, "ट्रेन में बहुत घुटन हो रही थी। लोग परेशान थे लेकिन फिर भी धैर्य बनाए रखे थे।"
एक अन्य यात्री ने बताया कि ट्रेन के रुकने के लगभग एक घंटे बाद बचाव कार्य शुरू हुआ। मोनोरेल के चार डिब्बों वाला रेक मैसूर कॉलोनी के पास एक मोड़ पर रुक गया, और ब्रेक जाम हो जाने के कारण उसे पास के स्टेशन तक नहीं ले जाया जा सका।
मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MMRDA) के संयुक्त आयुक्त आस्तिक पांडे ने बताया कि इस घटना की मुख्य वजह मोनोरेल का ओवरलोड होना थी। उन्होंने बताया, "मोनोरेल की अधिकतम वहन क्षमता 109 मीट्रिक टन है, लेकिन मंगलवार को अत्यधिक भीड़ और सामान की वजह से यह क्षमता पार हो गई थी। मोड़ पर अत्यधिक भार के कारण बिजली का करंट मैकेनिकल रूप से कट गया और सुरक्षा कारणों से आपातकालीन ब्रेक लगाना पड़ा। इसके बाद ट्रेन पूरी तरह बंद हो गई।"
एक यात्री ने यह भी बताया कि ट्रेन पहले ही 30 मिनट की देरी से आई थी और इस वजह से इसमें जरूरत से ज्यादा भीड़ जमा हो गई थी। ट्रेन में चढ़ने वालों की संख्या इतनी अधिक थी कि हर डिब्बा ओवरलोड हो गया।
इस अप्रत्याशित घटना में यात्री मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान हो गए। कई लोग पसीने से तरबतर थे और घुटन की स्थिति से जूझ रहे थे। कुछ यात्रियों ने राहत कार्यों की सराहना की, जबकि कुछ ने इस प्रकार की लापरवाही पर सवाल उठाए।
इस घटना ने न केवल मुंबई की मोनोरेल प्रणाली की तैयारियों और संचालन पर सवाल उठाए हैं, बल्कि आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने की क्षमता पर भी गंभीर चिंता जताई है।
मुंबई जैसे महानगर में सार्वजनिक परिवहन की यह दुर्दशा, खासकर अत्यधिक बारिश के मौसम में, यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा पर गहन पुनर्विचार की मांग करती है। यदि समय रहते जरूरी सुधार नहीं किए गए, तो भविष्य में ऐसे हादसे और भी गंभीर रूप ले सकते हैं।