हैदराबाद (तेलंगाना)
AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाया है कि वह बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुपचाप राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लागू कर रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि इससे कई भारतीय नागरिकों के मताधिकार पर असर पड़ेगा और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को गहरा नुकसान पहुंचेगा।
ओवैसी ने कहा कि नए नियमों के तहत नागरिकों को न केवल अपना, बल्कि अपने माता-पिता का जन्म प्रमाण भी दस्तावेज़ों के माध्यम से साबित करना होगा, जो बिहार के बाढ़ प्रभावित सीमांचल जैसे इलाकों के गरीब नागरिकों के लिए अत्यंत कठिन है।
उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा—"चुनाव आयोग बिहार में NRC को पिछले दरवाज़े से लागू कर रहा है। वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए अब हर नागरिक को यह साबित करना होगा कि वह और उसके माता-पिता कहां और कब पैदा हुए। भारत में सिर्फ तीन-चौथाई जन्म ही रजिस्टर्ड होते हैं। सरकारी दस्तावेज़ों में भी अक्सर गलतियां होती हैं। सीमांचल जैसे इलाकों के लोग तो दो वक़्त की रोटी के लिए जूझते हैं, उनसे यह अपेक्षा रखना कि वे अपने माता-पिता के दस्तावेज़ दिखाएं, एक क्रूर मज़ाक है।"
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में इस प्रकार की प्रक्रियाओं पर सख्त सवाल उठाए थे।
"इस प्रक्रिया का नतीजा यह होगा कि बिहार के लाखों गरीबों के नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए जाएंगे। मतदाता सूची में नाम होना हर भारतीय नागरिक का संवैधानिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1995 के लाल बाबू हुसैन मामले में कहा था कि बिना नोटिस और उचित प्रक्रिया के किसी का नाम वोटर लिस्ट से नहीं हटाया जा सकता।"
ओवैसी के अनुसार, बिहार में नागरिकों को अपनी जन्म तिथि के आधार पर विभिन्न स्तरों पर दस्तावेज़ पेश करने पड़ रहे हैं:
1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोगों को अपनी जन्म तिथि/स्थान का कोई एक मान्य दस्तावेज़ देना होगा।
1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों को अपने जन्म के साथ माता-पिता में से किसी एक का जन्म प्रमाण भी देना होगा।
2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों को अपने जन्म प्रमाण के साथ माता और पिता दोनों के जन्म प्रमाण देने होंगे।
अगर माता-पिता में से कोई भारतीय नागरिक नहीं है, तो उस समय का पासपोर्ट और वीज़ा भी देना अनिवार्य है।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग बिहार में घर-घर जाकर मतदाता जांच एक महीने में पूरी करना चाहता है, जो बिहार जैसे कमज़ोर कनेक्टिविटी और उच्च जनसंख्या वाले राज्य में व्यवहारिक नहीं है।
"बिहार जैसे राज्य में निष्पक्ष रूप से एक महीने में यह कवायद पूरी करना असंभव है। सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि नागरिकता केवल कुछ गिने-चुने दस्तावेज़ों से सिद्ध नहीं की जा सकती—सभी प्रकार के प्रासंगिक साक्ष्यों को स्वीकार किया जाना चाहिए।"
बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर या नवंबर 2025 में होने की संभावना है, हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक आधिकारिक तारीखों की घोषणा नहीं की है।