मुसलमान घृणा और हिंसा नहीं, संविधान में यकीन रखेंः मुफ्ती मंजूर जिया

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 20-08-2022
मुसलमान घृणा और हिंसा नहीं, संविधान में यकीन रखेंः मुफ्ती मंजूर जिया
मुसलमान घृणा और हिंसा नहीं, संविधान में यकीन रखेंः मुफ्ती मंजूर जिया

 

मुंबई. महाराष्ट्र राज्य के जाने-माने इस्लामिक विद्वान मुफ्ती मंजूर जिया का कहना है कि मुसलमानों को नफरत और हिंसा के सभी कृत्यों की एक ही शब्दों में निंदा करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हाल ही में अमेरिका में लेखक सलमान रुश्दी पर हुआ हिंसक हमला एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है. सलमान रुश्दी ने अपनी किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज’ में इस्लाम के पैगंबर के खिलाफ अपमानजनक शब्द कहे थे. उन्होंने कहा कि हमने पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के खिलाफ इसी तरह के आरोपों के बाद हिंसा देखी है. मैं दोनों मामलों को एक ही सिक्के के अलग-अलग पहलू के रूप में देखता हूं. इन दोनों लोगों ने जानबूझकर पवित्र पैगंबर (पीबीयूएच) का अपने कार्यों के माध्यम से अपमान किया है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए.

मुफ्ती मंजूर ने कहा, ‘‘मैं यह कहना चाहूंगा कि उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई या हिंसा का आह्वान समान रूप से निंदनीय है. किसी को भी फतवा जारी करने या शारीरिक नुकसान पहुंचाने का अधिकार नहीं है. इस तरह की हिंसा का न तो सभ्य समाज में और न ही इस्लाम में कोई स्थान है.’’

मुफ्ती मंजूर जिया ने कहा कि परिवार, शादी और व्यक्तिगत संबंधों से जुड़े मामलों के अलावा, किसी भी देश में इस्लामी कानून मौजूद नहीं है. इस्लाम कभी भी किसी को देश का कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं देता है. दंडात्मक कार्रवाई संवैधानिक व्यवस्था के दायरे में आनी चाहिए.

न्होंने कहा कि फतवा कोई आदेश नहीं है, यह सिर्फ एक राय है, जो केवल एक मुफ्ती ही दे सकता है, जो इस्लामी कानून का विशेषज्ञ हो. हमारे नेताओं और राय निर्माताओं को मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच इस तरह के मामलों पर अस्पष्टता को दूर करना चाहिए. इस देश का सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना एक मूल्यवान संपत्ति है, भले ही हाल ही में इसे नुकसान पहुंचाने के प्रयास किए गए हों. धार्मिक और राजनीतिक नेताओं को ऐसे हितों को अलग रखना चाहिए.

मंजूर जिया का मानना है कि मुसलमानों को नफरत के हर कृत्य की बराबर ताकत से निंदा करने की जरूरत है. चाहे भारत में निर्दोषों की हत्या हो या अमेरिका में लेखक पर हमला, उदयपुर और अमरावती में हत्या या कहीं और. जब ऐसे प्रत्येक कृत्य की समान रूप से निंदा की जाएगी, तभी हमें न्याय और प्रतिनिधित्व मांगने का नैतिक अधिकार होगा.

उन्होंने कहा कि मेरा जन्म बिहार राज्य के मुंगेर जिले में हुआ है. मैं पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में पला-बढ़ा और पढ़ाई की. मैंने लगभग आधी दुनिया की यात्रा की है और लगातार विभिन्न मंचों पर सद्भाव और शांति के लिए काम किया है. इस लंबी यात्रा में मैंने जो कुछ सीखा और अनुभव किया है, उससे मैं कह सकता हूं कि भारतीय संस्कृति और संविधान इस देश की असली ताकत हैं. इन दो बुनियादों पर हमें राष्ट्र का निर्माण करना है.

उन्होंने कहा कि देश इस समय चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि मुसलमानों के साथ अन्याय हुआ है. राजनीतिक बदला लेने के लिए उनके युवाओं को टाडा और यूएपीए के तहत सभी दलों द्वारा सलाखों के पीछे डाल दिया गया है. लेकिन मुसलमानों को घृणास्पद कॉलों पर ध्यान देने के बजाय खुद को शिक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए और बाबा साहब अंबेडकर द्वारा हमें दिए गए संविधान में विश्वास करना चाहिए. उन्हें सार्वजनिक जीवन में न्याय और प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष करना चाहिए. नफरत हमें केवल मध्यकाल में वापस ले जाएगी.