मुंबईः भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने बहुविवाह और हलाला पर की प्रतिबंध की मांग

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 24-09-2022
मुंबईः भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने बहुविवाह और हलाला पर की प्रतिबंध की मांग
मुंबईः भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन ने बहुविवाह और हलाला पर की प्रतिबंध की मांग

 

मुंबई. मुस्लिम महिला अधिकार समूह, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएमए) ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह बहुविवाह और हलाला पर प्रतिबंध लगाने की अपनी मांग को फिर से शुरू करेगा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर बैन की उनकी याचिका पर फैसला करते समय नहीं लिया था.

यह समूह सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ट्रिपल तालक के फैसले का पक्ष में था. समूह ने मुस्लिम पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध करने और समुदाय में शादी की उम्र बाल विवाह रोकथाम अधिनियम (पीसीएमए) के अनुसार करने की भी मांग की. प्रेस कॉन्फ्रेंस मराठी पत्रकार संघ में आयोजित की गई थी और इसमें तुषार गांधी और बीएमएमए के स्वयंसेवकों ने भाग लिया था.

बीएमएमए के सह-संस्थापक नूरजहां साफिया नियाज ने कहा, ‘‘हम बहुविवाह और हलाला पर प्रतिबंध लगाने की मांग को फिर से शुरू करेंगे, जिसे हमारी याचिका में ट्रिपल तलाक से निपटने के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा निपटाया नहीं गया था. हम उसी याचिका को लेने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे. अगर वे चाहते हैं कि हम एक नई याचिका दायर करें, हम वह भी करेंगे. यदि बहुविवाह पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, तो हम मांग करते हैं कि आईपीसी की धारा 494 मुसलमानों पर और पीसीएमए शादी की उम्र पर लागू हो. मुस्लिम पर्सनल लॉ का एक व्यापक संहिताकरण हमारी पहली मांग है.’’

आईपीसी की धारा 494 किसी अन्य व्यक्ति के साथ विवाह होता है, जबकि पहले से ही विवाहित है, तो एक दंडनीय अपराध है. हलाला एक ऐसी प्रथा है, जहां एक महिला को तलाक के बाद अपने पति के पास वापस जाने के लिए किसी अन्य पुरुष के साथ पहले शादी करनी पड़ती है. नूरजहाँ ने कहा, ‘‘जब कम उम्र की शादी के मामलों को पुलिस के पास ले जाया जाता है, तो वे हमें यह कहते हुए दूर कर देते हैं कि हमारे पर्सनल लॉ के अनुसार इसकी अनुमति है. हम पीसीएमए में स्पष्ट रूप से उल्लेख करना चाहते हैं कि मुस्लिम भी कम उम्र में विवाह को रोकने के लिए कवर किए गए हैं.’’

स्वयंसेवकों ने कहा कि कम उम्र की शादी लड़कियों और उनके बच्चों के लिए स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का कारण बन रही थी, जिससे वे निपटने में सक्षम नहीं थीं. दूसरी ओर, बहुविवाह अवसाद और आत्महत्या करने की भावनाओं को जन्म दे रहा था, जिसने बदले में बच्चों की परवरिश को प्रभावित किया.

वसई की नरगिस तारिक ने कहा, ‘‘जब मेरी शादी हुई थी, तब मैं 14 साल की थी. मेरे पति की मृत्यु हो गई. मैं केवल सातवीं कक्षा तक शिक्षित थी, मेरे बच्चों को पालने में बहुत समस्याएँ सामनें आईं.’’ एक अन्य कार्यकर्ता सना पटेल ने कहा, ‘‘पुरुष अक्सर दूसरी शादी के लिए धोखा देते हैं. न तो पहली और न ही दूसरी पत्नी को उसकी मौजूदा शादी की स्थिति के बारे में पता होता है. ऐसे मामलों में महिलाएं उदास हो जाती हैं और कुछ तो आत्महत्या करने का भी मन करती हैं.’’

समूह ने कहा कि, 2015 में उनके द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 92 प्रतिशत नहीं चाहती थीं कि उनके पति पुनर्विवाह करें और 75 प्रतिशत लड़कियों की शादी के लिए 18 वर्ष से अधिक हो. इस बात पर कि समुदाय को उसकी प्रथाओं के लिए पहले से ही निशाना बनाया जा रहा है, नूरजहां ने कहा, ‘‘हम मुद्दों को उठाएंगे. एक लोकतांत्रिक ढांचे में, हमें संसद में जाना होगा. कानून बनाना उनका काम है. हम संसद से संपर्क करेंगे, चाहे कोई भी सत्ता में हो. दोनों पक्षों ने समुदाय का शोषण किया है. जब हर दूसरे धार्मिक कानून को संहिताबद्ध किया जाता है, तो मुसलमानों के साथ ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए? यह संविधान और कुरान के तहत गारंटीकृत महिलाओं की गरिमा के बारे में है.’’