केरलः इस्लामिक विद्वान टीके अब्दुल्ला का निधन

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
टीके अब्दुल्ला
टीके अब्दुल्ला

 

कालीकट. इस्लामिक विद्वान और जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के वरिष्ठ नेता टीके अब्दुल्ला, 92का आज कालीकट में निधन हो गया. वह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के संस्थापक सदस्य और 1972से आज तक जेआईएच, मरकजी मजलिस-ए-शूरा के सर्वोच्च निर्णय लेने वाले निकाय के सदस्य थे.

मध्यमम डॉट कॉम के अनुसार 1929में केरल के कोझीकोड जिले के एक गांव अयनचेरी में जन्मे अब्दुल्ला ने विभिन्न इस्लामी संस्थानों में अपनी शिक्षा पूरी की. जब वे आलिया कॉलेज, कासरगोड में पढ़ रहे थे, तब उन्होंने 1950में मलयालम में जेआईएच केरल के मुखपत्र प्रबोधनम में प्रवेश लिया. बाद में, वे 1959में पत्रिका के उप मुख्य संपादक बने.

1964में, जब ‘प्रबोधनम’ साप्ताहिक शुरू हुआ, अब्दुल्ला उसके पहले प्रमुख थे और 1995तक संपादक रहे. बाद में वे बोधनम तिमाही पत्रिका के मुख्य संपादक के रूप में शामिल हुए.

वह इस्लामिक विद्वान और इत्तिहाद उलेमा, केरल के राज्य कार्यकारी सदस्य थे. 1959में जमात-ए-इस्लामी हिंद में सदस्यता प्राप्त करने के बाद, वे 1972-79और 1982-84में दो बार इसके केरल अध्याय के अध्यक्ष (अमीर) बने. उनके नेतृत्व के दौरान, जेआईएच केरल को 1975के आपातकाल का सामना करना पड़ा. इसके कई नेताओं को उस समय के दौरान जेल में डाल दिया गया था, जिसमें अब्दुल्ला भी शामिल थे.

उन्होंने मौलाना मौदुदी के कुरानिक व्याख्या पाठ तफीम-उल-कुरान के पहले खंड का उर्दू से मलयालम में अनुवाद करने में योगदान दिया है.

टी इशाक अली मौलवी के इस्लामिक पब्लिशिंग हाउस (आईपीएच), कालीकट द्वारा प्रकाशित ‘इस्लामिक इनसाइक्लोपीडिया प्रोजेक्ट’ के मुख्य संपादक के रूप में भी कार्यरत थे.

उर्दू और मलयालम दोनों में एक विपुल वक्ता के तौर पर अल्लामा मुहम्मद इकबाल के बारे में उनके भाषणों को बाद में इकबालिन कंडेथल (डिस्कवरिंग इकबाल) नामक एक पुस्तक में संकलित किया गया था.

उनके प्रसिद्ध भाषणों को नाजिकाकल्लुकल (माइल स्टोन्स) शीर्षक के तहत संकलित किया गया था, जिसे आईपीएच, कालीकट द्वारा प्रकाशित किया गया था. उन्होंने नवोथाना धर्मंगल (सुधार के कार्य) नामक एक पुस्तक भी लिखी है और एक आत्मकथा जिसका शीर्षक नादनु थीरथा वजिकलील है.

विशाल जन अपील के साथ यह विपुल वक्ता 80के दशक के दौरान केरल में हुई शरिया बहस के संदर्भ में इस्लामी पदों के पैरोकार भी हुआ करते थे.

उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी हैं.