कर्नाटकः हुसैन साहब की मय्यत पर हुआ गीता और कुरान का पाठ

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 10-02-2022
हुसैन साहब का जनाजा और उनके घर पर भजन करते हुए हिंदू भाई
हुसैन साहब का जनाजा और उनके घर पर भजन करते हुए हिंदू भाई

 

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-बंगलुरू

कर्नाटक में इन दिनों कुछ ताकतें हिजाब विवाद को तूल दे रही हैं, तो मुकाबले पर भगवाधारी भी अब जमे हैं. ऐसे में एक खबर ने खूबसूरत शक्ल हासिल की. यहां एक मुस्लिम शख्स के अंतिम संस्कार में पहले इस्लामिक रीति-रिवाज से कुरान पढ़ी गई, फिर हिंदुओं ने वहां गीता पाठ किया और भजन किए. इसके बाद मय्यत की दीगर रस्में पूरी की गईं.

इतिहास में संत कबीर के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था. उनकी मय्यत पर हिंदू और मुसलमान दावेदारीकर रहे थे. मगर चादर हटाई, तो उसके नीचे फूल निकले. हिंदुओं और मुस्लिमों ने तबअपनी-अपनी रीति से उनका अंतिम संस्कार किया था.

मगर कुकानुर तालुक के तलाबालु गांव के निवासी हुसैन साहब के जनाजे पर किसी ने सिर्फ अपने लिए दावेदारी पेश नहीं की. हुसैन साहब का किरदार रीति-रिवाजों की ऊंचाईयों से भी इतना ज्यादा बुलंद हो चुका था कि हिंदू और मुस्लिमों ने अपने-अपने हिस्से की रस्में निभाईं और कोई विवाद नहीं.

समाजी सौहार्द और सद्भाव की ये मिसाल 80 साला हुसैन साहब जाते-जाते भी दिखा गए. हुसैन साहब काफी समय से कैंसर रोग से पीड़ित थे. उन्होंने कभी मजहब के आधार पर फर्क नहीं किया. वे हिंदुओं और मुस्लिमों के सुख-दुख में शामिल होने वाले सच्चे रहनुमा थे. वे इस्लामी परंपरा और त्योहार को तो मानते-मनाते ही थे, बल्कि हिंदू त्यौहारों पर भी समान भाव से शिरकत करते थे. उन्होंने गांव में सांप्रदायिक सद्भावके ऐसे बीज बोए कि हर तबका उनका कायल था और उनकी इज्जत करता था.

हुसैन साहब ने आखिरी सांस ली, तो गांव और इलाके के लोग उमड़ पड़े. हजारों लोग उनकी मय्यत में शामिल हुए.  

मुस्लिमों ने रिवाज के तौर पर सना, तकबीर और दुरूद शरीफ का पाठ करते हुए हुसैन साहब के लिए दुआ पढ़ी. उसके बाद हिंदुओं ने हुसैन साहब की आरती उतारी. नारियल फोड़कर भजन और गीता पाठ किया.

हुसैन साहब के पुत्र मलकसब नूरबाशा ने बताया कि उनके पिता हिंदू और मुस्लिमों में अपने समाजी कामों के कारण समान रूप से सक्रिय रहते थे. इसलिए उन्हें आखिरी वक्त में दोनों समुदायों का आदर मिला. उन्होंने बताया कि वे हमेशा धर्मनिरपेक्षता के वाहक रहे.

मय्यत के वक्त मौजूद कुकनूर अन्नदानेश्वर जगद्गुरु मठ के महंत महादेव देवारू ने बताया कि हुसैन साहब के कार्यों की सभी लोग प्रशंसा करते हैं. हम भी उनका पूरा सम्मान करते हैं. इसलिए हिंदू भाई भी चाहते थे कि उन्हें हिंदू रिवाज से भी अंतिम विदाई दी जाए.