आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
झारखंड ने इस वर्ष अपनी रजत जयंती मनाई, लेकिन इसी साल आदिवासी नेतृत्व एवं राज्य गठन आंदोलन के सूत्रधार शिबू सोरेन के निधन ने पूरे राज्य को शोक में डुबो दिया।
राज्य स्थापना समारोहों के दौरान झारखंड आंदोलन के मूल आदर्शों-भूमि अधिकार, स्वशासन और आदिवासी गरिमा पर फिर से ध्यान केंद्रित हुआ। संयोग से राज्य की रजत जयंती आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के साथ मनाई गई।
इस साल 81 वर्ष की उम्र में शिबू सोरेन के निधन के साथ उस राजनीतिक युग का अंत माना गया, जिसमें आदिवासी आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर उभरा।
रामगढ़ जिले के नेमरा गांव (तत्कालीन बिहार, अब झारखंड) में 11 जनवरी 1944 को जन्मे सोरेन देश के आदिवासी और क्षेत्रीय राजनीतिक परिदृश्य के सबसे प्रभावशाली और दूरदर्शी नेताओं में गिने जाते थे जो ‘दिशोम गुरु’ व झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संरक्षक के रूप में पहचाने जाते थे।
पांच अगस्त को उनके अंतिम संस्कार के दिन पैतृक गांव नेमरा में राजनीतिक दिग्गजों से लेकर आम ग्रामीणों तक समाज के हर वर्ग के लोग श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़े।
वर्ष के अंत में 23 दिसंबर को मंत्रिमंडल ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम यानी पीईएसए के नियमों को मंजूरी दी, जिससे पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को सुदृढ़ करने का रास्ता साफ हुआ।
राज्य के 24 जिलों में से 13 जिले पूरी तरह और दो आंशिक रूप से पांचवीं अनुसूची के तहत आते हैं, जिनमें 16,000 से अधिक गांव और 2,000 से ज्यादा पंचायतें शामिल हैं। पीईएसए अधिनियम जनजातीय समुदायों को प्राकृतिक संसाधनों, स्थानीय शासन और सांस्कृतिक परंपराओं पर अधिक अधिकार देता है।
आर्थिक मोर्चे पर राज्य ने 2025–26 के लिए 7.5 प्रतिशत विकास दर का अनुमान जताते हुए साल को अलविदा कहा। अवसंरचना गतिविधियों, खनिज राजस्व और कल्याणकारी योजनाओं से उपजी खपत ने आर्थिक गति बनाए रखी, लेकिन संसाधनों से समृद्ध होने के बावजूद झारखंड गरीबी, विस्थापन और पर्यावरणीय संकट से जूझता रहा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार 2050 तक झारखंड को विकसित राज्य बनाने की दीर्घकालिक दृष्टि पर काम कर रही है, जिसमें महिलाएं, युवा, किसान और आदिवासी केंद्र में होंगे और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने पर भी जोर दिया जाएगा।