जश्न-ए-रेख्ता में बोले जावेद अख्तर, गंगा-जमुनी तहजीब उर्दू में पगी है, उसे बरबाद न होने दीजिए

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 02-12-2022
जश्न ए रेख्ता में जावेद अख्तर
जश्न ए रेख्ता में जावेद अख्तर

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

जानेमाने गीतकार जावेद अख्तर ने कहा है कि हिंदुस्तान की तहजीब उर्दू भाषा में पगी है और अपनी असावधानी से हम इसको बरबाद न करें. उर्दू अदब में भी अपनी खास पहचान रखने वाले अख्तर शुक्रवार को नई दिल्ली में जश्न-ए-रेख्ता के उद्घाटन समारोह में शिरकत कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में उर्दू को लेकर मुताल्लिक भी बहुत सारी गलतफहमियां हैं. इल्म की कोई लिमिट हो तो हो जहालत की कोई लिमिट नहीं होती.

जावेद अख्तर ने जोर दिया कि हिंदी और उर्दू को एक दूसरे से अलग नहीं हैं और उन्हें एकदूसरे के शब्दकोष को जोड़कर चलना चाहिए और तब दुनिया की कोई भाषा इनका मुकाबला नहीं कर पाएगी.

उन्होंने कहा, “उर्दू और हिंदी के ग्रामर लगभग एक जैसे हैं. उर्दू को हिंदुस्तानी के अलावा कौन बोलता है भला? उर्दू और हिंदी जुड़वां बहने हैं. दोनों भाषाओं को एक दूसरे के शब्दकोष का फायदा उठाना चाहिए. दोनों को मिला दें तो दोनों की शब्दावली काफी बड़ी हो जाती है. उर्दू आम लोगों की भाषा है.”

दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में जश्न-ए-रेख्ता की शुरुआत शुक्रवार की शाम को हुई. ठंडक और धुंधलके में लोगों की आमद से स्टेडियम का परिसर भरा हुआ था और जल्द ही अदब की रोशनी से नहा उठा.

और खचाखच भरे मंच पर जावेद अख्तर ने हिंदुस्तानी तहजीब के बारे में भी लोगों का ध्यान खींचते हुए गंगा जमुनी तहजीब की याद दिलाई और कहा, “जितनी खूबसूरत शायरी होली पर उर्दू में है, जितनी बनारस के मंदिरों की जो पोएट्री वह उर्दू में है. हिंदुस्तान का दो सौ बरस का स्ट्रगल रहा है अंग्रेजों के खिलाफ उसके हर मोड़ पर उसके हर वाकए पर उसकी हर बगावत पर उर्दू में लिखा गया है.”

साथ ही अख्तर ने भौतिकतावादी समाज में संस्कृति, कला और विरासत के पीछे छूटने पर दुख जाहिर किया. उन्होंने कहा, “हिंदुस्तान में आजादी के बाद काफी तरक्की हुई है आजादी के बाद. हम दुनिया के ग्यारह सबसे अधिक औद्योगिक देशों में एक हो गए हैं. हमने तरक्की बहुत की है, पहले तो मध्य वर्ग कारों के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. लेकिन हमसे भूल हुई कि इस तरक्की में अदब, शायरी जैसी चीजें पीछे छूट गईं. अपने बच्चों को हमने वह पढ़ाया जिससे पैसे कमाए जा सकते हैं. जो बैंक में नहीं रखी जा सकती वह हमें काम की नहीं लगी.”

उर्दू की लिपि पर विवाद की ओर हल्के से इशारा करते हुए अख्तर ने कहा कि भाषा का लिपि से कोई लेना देना नहीं होता. अंग्रेजी जैसी भाषा को भी दूसरी लिपि रोमन में लिखा जाता है.

उद्घाटन सत्र में आयोजक रेख्ता फाउंडेशन के चेयरमैन संजीव सर्राफ ने पिछले दो साल के अंदर निधन हुए साहित्यकारों गुलजार देहलवी, शम्शुर्रहमान फारुकी, शमीम हनफी और गोपीचंद नारंग को याद करते हुए कहा, “पिछले तीन सालों में, हमारी दुनिया में कई तरह की तकलीफें आएं. पिछले दो साल में हमारे साहित्य के क्षेत्र का काफी नुक्सान पहुंचा. उन्हीं के सफहों की रोशनी की कुछ किरने कम हो गई हैं. जिंदगी चलते रहने और आगे बढ़ते रहने का नाम है.”

सर्राफ ने एक साहिर लुधियानवी के शेर के साथ अपनी बात खत्म की थीः

हजार बर्क़ गिरें, लाख आंधियां उट्ठें

वो फूल खिलकर रहेंगे जो खिलने वाले हैं.

बेशक. आंधियों का दौर गुजर चुका है और जश्न-ए-रेख्ता आयोजन में अदब का फूल खिल चुका है.