नई दिल्ली
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने ग़ाज़ा में महीनों तक चले भीषण रक्तपात के बाद इज़राइल और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के बीच हुए हालिया युद्धविराम को एक “सकारात्मक और आशाजनक क़दम” बताया है। उन्होंने इस युद्धविराम को ग़ाज़ा के पीड़ित और तबाह हो चुके नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत बताया, लेकिन साथ ही चेताया कि जब तक एक स्वतंत्र और पूर्ण संप्रभु फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना नहीं होती, तब तक शांति अधूरी और न्याय अपूर्ण रहेगा।
मीडिया को जारी अपने बयान में उन्होंने कहा,“यह युद्धविराम ग़ाज़ा के लोगों के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित राहत है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि केवल यही पर्याप्त नहीं। फ़िलिस्तीन के लोगों को अपनी ज़मीन पर सम्मान, सुरक्षा और स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने का अधिकार है। दुनिया को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह विराम एक स्थायी और न्यायपूर्ण शांति की बुनियाद बने, न कि एक और तबाही से पहले का विराम।”
मानवता की नैतिक जीत की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इस संघर्ष ने जहां कुछ सरकारों के पाखंड को उजागर किया, वहीं दुनिया भर के आम लोगों में सहानुभूति और विवेक की शक्ति को भी सामने लाया।“दुनिया भर के लोगों की नैतिक बेचैनी, विरोध और एकजुटता ने उम्मीद को ज़िंदा रखा है कि मानवता अभी मरी नहीं है। यह नैतिक चेतना तब तक जिंदा रहनी चाहिए, जब तक फ़िलिस्तीनी जनता को एक ऐसा राज्य नहीं मिल जाता जो कब्जे, घेराबंदी और भय से मुक्त हो।”
उन्होंने ग़ाज़ा में स्थानीय जनआधारित सरकार की स्थापना पर बल देते हुए कहा कि फ़िलिस्तीनी प्रशासन विदेशी हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए।“स्थिरता या निगरानी के नाम पर बाहरी ताक़तों को ग़ाज़ा पर थोपा न जाए। वहाँ की सरकार फ़िलिस्तीनी नागरिकों की इच्छा और आकांक्षाओं का प्रतिबिंब होनी चाहिए।”
मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण को तत्काल प्राथमिकता दिए जाने की मांग करते हुए उन्होंने कहा,“ग़ाज़ा के लोग इस समय भोजन, दवाइयों, आवास और आशा के लिए तरस रहे हैं। स्कूल और अस्पताल खंडहर में तब्दील हो चुके हैं। बच्चों को मलबों के बीच पढ़ना पड़ रहा है। यह प्रतीकात्मक प्रयासों का समय नहीं, बल्कि निर्णायक वैश्विक कार्रवाई का समय है। हर दिन की देरी, और ज़्यादा निर्दोष जानें ले रही है।”
उन्होंने ग़ाज़ा के लोगों के धैर्य और साहस को पूरी दुनिया के लिए एक नैतिक उदाहरण बताया।“इन लोगों ने जिस अकल्पनीय यातना को झेला और फिर भी हिम्मत नहीं हारी, वह एक मिसाल है। उनकी दृढ़ता सिर्फ़ उनकी ज़मीन की रक्षा नहीं, बल्कि मानवीय विवेक की भी रक्षा है।”
अंत में सैयद हुसैनी ने प्रार्थना की कि यह युद्धविराम न्याय और समानता पर आधारित स्थायी शांति की शुरुआत बने।“फ़िलिस्तीनियों ने दुनिया की चुप्पी की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। अब वक़्त आ गया है कि मानवता उनके साथ खड़ी हो — आज़ादी, सच्चाई और इस युग की नैतिकता की रक्षा के लिए।”
उन्होंने भारत सरकार से भी अपील की कि वह युद्ध के बाद ग़ाज़ा के पुनर्निर्माण में सैद्धांतिक और सक्रिय भूमिका निभाए, फ़िलिस्तीन के लिए अपने ऐतिहासिक समर्थन की पुष्टि करे, और एक ऐसे पूर्ण संप्रभु फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की स्थापना की वकालत करे जिसे स्वतंत्र रूप से चुनी हुई सरकार चलाए और जिसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो।